रातभर पिंजरे में बंद, 2500 रुपये जुर्माना…शराब पीने वालों को गुजरात के इस गांव में अनूठी सजागुजरात के अहमदाबाद में एक गांव हैं मोतीपुरा। यहां यायावर की तरह जिंदगी गुजारने वाले नट समाज की बहुलता है। समाज के लोगों ने अपने समुदाय के लोगों में शराब की लत को खत्म करने के लिए एक अनूठा सामाजिक प्रयोग किया है। यह एक्सपेरिमेंट है शराब पीने वालों पर जुर्माना लगाना और सजा के तौर पर रातभर पिंजरे में कैद रखना। इसके नतीजे इतने चमत्कारिक हैं कि अब तमाम जिलों के कई गांव इसे अपना रहे हैं।शराब बन चुकी थी गांव के लिए त्रासदीसाणंद से करीब 7 किलोमीटर दूर मोतीपुरा गांव शराब की त्रासदी झेल रहा था। गांव में कम से कम 100 ऐसी महिलाएं हैं जो शराब की वजह से बेवा हो चुकी हैं। इस त्रासदी को खत्म करने के लिए समाज के लोगों ने एक अनूठी पहल की। इसमें महिलाओं की ही मदद ली गई। गांव में एक पिंजरे की व्यवस्था की गई। शराब पीने वाले शख्स को रातभर उसी पिंजरे में कैद कर दिया जाता है। इसके अलावा उस पर 1200 रुपये का जुर्माना लगाया जाता जिसे अब बढ़ा दिया गया है।दूसरे गांव भी अपनाने लगे हैं यही तरीकामोतीपुरा गांव के इस मॉडल की कामयाबी ने बाकी गांवों को भी प्रेरित किया है। अब अहमदाबाद, सुरेंद्रनगर, अमरेली और कच्छ जिलों के 23 से ज्यादा गांवों ने इस सामाजिक प्रयोग को अपना लिया है। जुर्माने की राशि बढ़ाकर 2500 रुपये कर दी गई है जिसका इस्तेमाल स्थानीय सामाजिक कामों में किया जाता है।अनूठे ‘मोतीपुरा मॉडल’ की कामयाबी के पीछे महिलाएंइस अनूठे सामाजिक प्रयोग की शुरुआत नट बजानिया समाज के नेता और मोतीपुरा गांव के सरपंच बाबू नायक ने की। नायक ने बताया कि फिलहाल 24 गांवों ने उनके इस प्रयोग को अपनाया है। इनमें से ज्यादातर गांवों में औसतन 100 से 150 ‘लिकर विडोज’ हैं यानी वे महिलाएं जो पति की शराब की लत की वजह से विधवा हुई हैं। अब इस अनूठे पहल की कामयाबी के पीछे महिलाओं का ही अहम हाथ है। महिलाएं ही शराब पीए हुए गांव के शख्स के बारे में जानकारी देती हैं। सूचना देने वाली महिलाओं की पहचान गुप्त रखी जाती है और जुर्माने के रूप में वसूली गई रकम में से 501 या 1100 रुपये सूचना देने वाली महिला को इनाम के तौर पर दिया जाता है।घरेलू हिंसा के मामलों में 90 प्रतिशत कमी का दावाबाबू नायक ने हमारे सहयोगी अखबार टाइम्स ऑफ इंडिया को बताया, ‘शराबी पतियों की वजह से गृह कलह तो बढ़ता ही था, घरेलू हिंसा भी होती थी। अब गांव में घरेलू हिंसा की घटनाओं में 90 प्रतिशत तक कमी आई है।’पिंजरे में रात+सामाजिक बहिष्कार की चेतावनी+शर्म= शराब से तौबा!गांव का अगर कोई शख्स शराब के नशे में मिलता है तो गांव वाले उसे पुलिस के हवाले नहीं करते। बाबू नायक बताते हैं, ‘गांव के पिंजरे में एक रात गुजारने और समुदाय के नेताओं की तरफ से सामाजिक बहिष्कार की चेतावनी बहुत कारगर साबित हुई है। हम उन्हें पुलिस को नहीं सौंपते। हम सामाजिक और सामुदायिक स्तर पर ही उनसे निपटते हैं।’ रातभर पिंजरे में बंद होने की वजह से संबंधित शख्स शर्म के मारे दोबारा गलती नहीं करता और शराब से तौबा कर लेता है। महिलाओं से सूचना मिलने के बाद गांव के बुजुर्ग औचक छापा मारते हैं। अगर कोई शख्स शराब के नशे में मिलता है तो उसे पिंजरे में रातभर के लिए बंद कर देते हैं। पिंजरे में उसे सिर्फ एक बोतल पानी दिया जाता है।