रविशंकर रवि
मणिपुर में जारी जातीय हिंसा की चिंगारी पड़ोसी राज्यों तक पहुंच चुकी है। मिजोरम में गुस्सा बढ़ रहा है तो नगालैंड में आशंकाएं बढ़ी हैं। अगर हाल यही रहा तो मणिपुर से चली हिंसा की आग में मिजोरम और नगालैंड भी झुलस सकते हैं। मणिपुर के कुकी मिजोरम की तरफ भाग रहे हैं तो मिजोरम से मैतेई समुदाय का पलायन असम की ओर हो रहा है। असम में बसे मैतेई समुदाय के संगठन भी वहां की मिजो आबादी को धमकी दे रहे हैं। असम के कुछ इलाकों में भी तनाव बढ़ गया है।
मिजोरम पर असर
मणिपुर का दो महिलाओं को निर्वस्त्र घुमाए जाने का विडियो वायरल होने के बाद उसका असर मिजोरम पर भी देखा जा रहा है।
हिंसा की वजह से पहले से ही कुकी समुदाय के लोग मिजोरम के सीमावर्ती इलाके में शरण लिए हुए हैं। उनकी जिंदगी राहत शिविरों में सिमट गई है।
राज्य सरकार उन्हें राहत दे रही है, लेकित उसका आरोप है कि कुकी शरणार्थियों को राहत देने की एवज में केंद्र सरकार की तरफ से कोई मदद नहीं मिली है।
कुकी मणिपुर से बाहर जाने के लिए मिजोरम और असम के रास्ते का उपयोग कर रहे हैं। लेकिन अब मिजोरम में स्थायी रूप से बसे मैतेई समुदाय के लोगों पर गंभीर आफत आ पड़ी है।
मिजोरम का मैतेई मणिपुरी समुदाय अपना राज्य छोड़ने के लिए विवश हो गया है। हालांकि मिजोरम सरकार ने राज्य में रहने वाले मैतेई समुदाय के लोगों को सुरक्षा का आश्वासन दिया है।
मिजोरम के एक पूर्व-उग्रवादी संगठन की धमकी के बाद लोग डर गए हैं। आइजल-इंफाल उड़ान सीमित है। इसलिए काफी लोग चुपचाप मिजोरम छोड़ रहे हैं।
आधी रात को मिजोरम छोड़कर काछार पहुंचे लोगों ने बताया कि उन्हें राज्य छोड़ने को कहा गया था। मिजोरम सरकार की ओर से जब सुरक्षा का कोई ठोस आश्वासन नहीं मिला तो रात को चुपके से पत्नी और बच्चों के साथ यहां आ गए। कछार असम का मिजोरम से सटा जिला है। यहां उन्हें दो विधानसभा क्षेत्रों – सोनाई और लखीपुर- में रखा गया है। मीडिया में नाम नहीं प्रकाशित करने की शर्त पर एक ने कहा कि मणिपुर में महिलाओं के साथ जो हुआ, उससे हम भी दुखी हैं। लेकिन उस घटना को केंद्र में रख कर कुछ लोग या संगठन मिजोरम में अशांति का वातावरण बनाना चाहते हैं। इन लोगों ने मिजोरम सरकार की चुप्पी की कड़ी आलोचना की। उनके मुताबिक, जब अधिकांश लोग राज्य छोड़कर परिवार सहित असम चले आए तो अब मिजोरम सरकार सुरक्षा सुनिश्चित करने की बात कहकर महज खानापूर्ति कर रही है। इन पीड़ितों ने बताया कि वे मैतेई समुदाय के जरूर हैं, लेकिन मिजोरम में स्थायी तौर पर बसे ईसाई हैं। इसके बावजूद उन्हें टारगेट करने का प्रयास किया जा रहा है।
कछार के पुलिस अधीक्षक नुमाल महत्ता ने बताया कि पड़ोसी राज्य मिजोरम से आए लोगों को राहत शिविरों में रखा गया है। लखीपुर क्षेत्र के बिन्नाकांदी में शरण लिए सभी संपन्न परिवार से हैं और अपने-अपने वाहनों से आए हैं। इनमें से कुछ कॉलेज के प्रफेसर हैं तो कुछ वरिष्ठ सरकारी अधिकारी। इन लोगों ने माना कि मिजोरम में उन पर हमला नहीं हुआ। मिजोरम सरकार अब उन्हें सुरक्षा दे रही है, लेकिन वे कोई जोखिम नहीं मोल लेना चाहते, इसलिए असम आ गए हैं। इन लोगों ने पुलिस को बताया कि स्थिति सामान्य होने तक वे असम में ही रहेंगे।
असम में भी तनाव
सोनाई के मोहनपुर रोड के नजदीक भी बड़ी संख्या में लोग शरण लिए हुए हैं। उन लोगों ने कहा कि मिजोरम के एजल और लुंगलेई से आए हैं। यहां एक महिला ने बताया कि बेटी उनकी 11वीं की छात्रा है। परीक्षा चल रही थी, लेकिन हालात ने आने के लिए विवश कर दिया। असम ने उन्हें शरण दी। असम सरकार के अधिकारियों ने उनकी सुध ली है। मणिपुरी कंबा लूप (मकाल), असम संगठन ने भी उनकी मदद की है।
मिजोरम की घटनाओं का असर एक और रूप में असम में देखने को मिल रहा है।
मैतेई समुदाय को राज्य छोड़ने की धमकी दिए जाने से आहत ऑल मणिपुरी स्टूडेंट्स यूनियन (आम्सु) ने भी यहां बराक घाटी से मिजो लोगों को धमकी दी कि यहां से निकल जाएं।
इसकी खबर मिलते ही पुलिस-प्रशासन हरकत में आ गया। कछार जिले के पुलिस अधीक्षक नुमाल महत्ता ने छात्र संगठन के लोगों से बात की और उनसे शांति बनाए रखने को कहा है। इसके बाद आम्सु ने अपना बयान वापस ले लिया है।
फिर भी प्रदेश के मैतेई बहुल क्षेत्रों में इसे लेकर आक्रोश है। आम्सु ने मिजोरम सरकार की भूमिका की कड़ी आलोचना करते हुए कहा कि पूर्व उग्रवादी समूहों पर नकेल कसने की आवश्यकता है। छात्र संगठन का आरोप था कि मिजोरम सरकार एक तरफ मैतेई लोगों के लिए चिंता का दिखावा करती है और दूसरी तरफ असहाय मैतेई समुदाय को निशाना बनाने की अनुमति देती है। उसका यह दोहरा खेल ज्यादा समय तक नहीं चल सकता।
नगा संगठनों की बात
नगालैंड अब तक इस मामले में तटस्थ है। लेकिन मणिपुर के नगा बहुल इलाकों में तनाव है। वे लोग कुकी नगारिकों के लिए अपने इलाके में स्थायी राहत शिविर बनाने का विरोध कर रहे हैं। दरअसल, नगा संगठन नहीं चाहते कि हिंसा के नाम पर कुकी लोगों को नगा बहुल इलाकों में प्रवेश करने का मौका मिले। ध्यान रहे, अतीत में कई बार नगा और कुकी समुदायों के बीच हिंसक झड़पें हो चुकी हैं। कुल मिलाकर देखें तो समूचे पूर्वोत्तर में शांति व्यवस्था को बनाए रखने के लिए मणिपुर की इस हिंसा को जल्द से जल्द रोकना जरूरी है।
डिसक्लेमर : ऊपर व्यक्त विचार लेखक के अपने हैं