if AI will do all the work then what will our brain do

अक्षय शुक्ला
दिग्गज टेक कंपनी गूगल के सीईओ सुंदर पिचाई ने हाल ही में जीमेल का आर्टिफिशल इंटेलीजेंस फीचर ‘हेल्प मी राइट’ लॉन्च किया। यह टूल किसी भी ईमेल का जवाब देने में आपकी मदद करेगा। इसके लिए उन्होंने एक उदाहरण भी पेश किया कि मान लीजिए एयरलाइंस कंपनी से मेल आता है कि आपकी फ्लाइट कैंसल हो गई है। अब आपको अपने टिकट के पूरे पैसे वापस चाहिए तो यह सोचने की ज़रूरत नहीं कि क्या लिखें। बस इस फीचर पर क्लिक कर टाइप करें- ‘फुल रिफंड के लिए मेल लिखें’ और कुछ ही पलों में एआई आपके लिए एक स्मार्ट रिप्लाई तैयार कर देगा। यानी आपके दिमाग को कुछ करना ही नहीं पड़ा, सारा काम आर्टिफिशल इंटेलीजेंस ने कर दिया। ठीक वैसे ही जैसे ओपन एआई कंपनी का चैटबॉट चैट जीपीटी करता है। किसी भी विषय की जानकारी के लिए बस एक लाइन लिखिए और ये टूल अलग-अलग वेबसाइट्स से सामग्री जुटाकर उन्हें तुरंत एक विस्तृत आर्टिकल के रूप में आपके सामने पेश कर देगा। पहले हम खुद इंटरनेट पर आर्टिकल्स खोज कर उनमें से ज़रूरी बातें निकालते थे। उससे भी पहले की बात करें तो लाइब्रेरी जाते थे, वहां किताबें ढूंढ कर उनमें से अपने मतलब की चीजें छांटते थे। अब तो अनुवाद करने में भी दिमाग नहीं लगाना पड़ता। यह काम भी एआई तुरंत कर देता है। एआई का अगला फोकस भाषाओं पर ही है। भविष्य में दूसरी भाषाएं सीखने की ज़रूरत ही नहीं होगी। सामने वाला अपनी भाषा में बोलेगा, आप उसे अपनी भाषा में सुन पाएंगे।
फोटोेः lexica AI
अब आपके ईमेल से लेकर ट्रांसलेशन और होमवर्क तक सारे काम एआई ही कर देगा तो दिमाग क्या करेगा। इसमें दो राय नहीं कि तकनीक हमारे जीवन को आसान बना रही है, लेकिन इसके साथ ही ये कई तरह के खतरे भी ला रही है। पुरानी कहावत है- ‘खाली दिमाग शैतान का’। आने वाले समय में जब दिमाग के लिए करने को कुछ होगा ही नहीं तो क्या इंसान शैतान बन जाएगा? वैसे भी, एआई टूल बनाने वाले खुद चेतावनी दे रहे हैं कि इस तकनीक को कंट्रोल नहीं किया गया तो यह मानवता के लिए बड़ा खतरा बन सकती है।
इंटरनेट और मोबाइल फोन आने के बाद से ही दिमाग का इस्तेमाल धीरे-धीरे कम होने लगा था। लैंडलाइन फोन का दौर याद है जब हमें सबके फोन नंबर याद रहते थे। घर, दफ्तर, दोस्त, रिश्तेदार किसी को भी फोन मिलाने के लिए डायरी देखने की ज़रूरत नहीं पड़ती थी। 90 के दशक तक खुद मुझे कम से कम 25-30 लोगों के नंबर याद थे। लेकिन मोबाइल फोन आने के बाद नंबर याद करने की ज़रूरत ही खत्म हो गई और अब हाल यह है कि लोगों को अपने घर में ही एक-दूसरे का नंबर पता नहीं होता है। सब फोन में खोजते हैं।
मनुष्य अपने दिमाग के कितने प्रतिशत हिस्से का उपयोग करता है, इस पर वैज्ञानिकों के अलग-अलग तर्क हैं। एक वर्ग की मानें तो सामान्य इंसान अपने दिमाग का मात्र दस प्रतिशत ही इस्तेमाल करता है। बाकी 90 फीसदी हिस्सा तो इनएक्टिव ही रहता है। सोचिए, अगर इस दस फीसदी का इस्तेमाल भी बंद कर देंगे तो क्या होगा। हम तकनीक के सामने अपने आपको पूरी तरह सरेंडर नहीं कर देंगे क्या? दिमाग को सुपर एक्टिव बनाए रखने की तकनीक पर भी काम करें, तो शायद किसी एआई की ज़रूरत ही न पड़े। हॉलीवुड की फिल्मों ‘लिमिटलेस’ और ‘लूसी’ में यही बताया गया है कि दिमाग का सौ फीसदी हिस्सा एक्टिवेट होने पर कैसी अलौकिक शक्तियां प्राप्त हो जाती हैं।
हालांकि ये तो फिल्में हैं, ज़रूरी नहीं कि वास्तविक ज़िंदगी में भी इंसान को ऐसी ही शक्तियां मिल जाएंगी। लेकिन ये बताती हैं कि दिमाग के रूप में कितना मज़बूत हथियार हमें मिला हुआ है। सोचने-विचारने और फैसले करने की क्षमता ने ही तो इंसान को जानवरों से अलग किया। अंदर की जिज्ञासाओं की वजह से ही इंसान ने नई-नई खोज कर इतनी तरक्की की है। कल्पनाशीलता की इस उड़ान पर तकनीक हावी हो गई तो क्या होगा?
डिसक्लेमर : ऊपर व्यक्त विचार लेखक के अपने हैं