लेखकः केसी त्यागी, पूर्व सांसद राज्यसभाजनता पार्टी की टूट की वजह से 1980 में लोकसभा के लिए हुए मध्यावधि चुनाव में कांग्रेस पार्टी को बड़ी सफलता प्राप्त हुई। इंदिरा गांधी फिर से प्रधानमंत्री चुनी गईं। कांग्रेस के टिकट पर जो सांसद जीत कर आए थे, उनमें संजय गांधी की पसंद साफ दिख रही थी। उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, पंजाब सहित 10 राज्यों के विधानसभा चुनावों में भी कांग्रेस पार्टी बहुमत पा चुकी थी, लेकिन सबसे रोचक घटनाक्रम का केंद्र बिंदु उत्तर प्रदेश बना। कांग्रेस पार्टी को वहां दो तिहाई बहुमत मिला, लेकिन आलाकमान पुराने नेताओं पर दांव लगाने को तैयार नहीं था। उस वक्त सीएम पद के लिए जो दावेदार थे, जैसे कमलापति त्रिपाठी, हेमवती नंदन बहुगुणा, नारायण दत्त तिवारी, उनसे हटकर किसी नए चेहरे की तलाश थी। इस बीच संजय गांधी के मित्र अकबर अहमद डंपी ने संजय गांधी के नाम पर गोलबंदी शुरू कर दी, उन्होंने विधानमंडल दल की बैठक में संजय गांधी को मुख्यमंत्री चुने जाने का प्रस्ताव पारित कराया और सभी कांग्रेस विधायकों को चार्टर्ड प्लेन से दिल्ली तक ले गए, लेकिन संजय को मुख्यमंत्री बनाकर इंदिरा गांधी उनकी भूमिका सीमित नहीं करना चाहती थीं। उस वक्त तक केंद्र की राजनीति में इंदिरा गांधी के भरोसेमंद माने जाने वाले तमाम नेता- यशवंतराव चव्हाण, बाबू जगजीवन राम, चंद्रजीत यादव, सरदार स्वर्ण सिंह, ब्रह्मानंद रेड्डी- उनसे अलग हो चुके थे। इंदिरा गांधी ने उत्तर प्रदेश विधानमंडल दल का फैसला नामंजूर कर दिया। इसके बाद कम चर्चित चेहरे के रूप में वीपी सिंह को मुख्यमंत्री पद की शपथ दिलाई गई। वह इंदिरा गांधी के पिछले केंद्रीय मंत्रिमंडल में उप-मंत्री के रूप में कार्य कर चुके थे।
विरोधियों से निपटने के नए तरीकेमंत्रिपरिषद के गठन में संजय गांधी की छाप स्पष्ट नजर आती थी। चुन-चुनकर उनके समर्थकों को टिकट दिए गए थे, काफी विधायक ऐसे भी चुने गए, जिन पर गंभीर आपराधिक मुकदमे दर्ज थे। जनता पार्टी के शासनकाल में विमान अपहरण के मुख्य आरोपी भोला पांडेय भी चुनाव जीत कर विधानसभा की शोभा बढ़ा रहे थे। आपातकाल में जुल्म-ज्यादती के प्रतीक बने अफसरों को महत्वपूर्ण पदों पर स्थापित किया जा रहा था और इसी के साथ अपने राजनीतिक विरोधियों से निपटने के नए तरीके अख्तियार किए जा रहे थे।
18 जून 1980 को चौधरी चरण सिंह के चुनाव क्षेत्र बागपत में एक ऐसी घटना घटी, जिसने राजनीतिक उथलपुथल मचा दी। हालांकि वह एक आपराधिक घटना थी, लेकिन उसका बहुत ज्यादा राजनीतिक प्रभाव था, जिसे माया त्यागी कांड के नाम से चर्चा मिली। हुआ यूं कि ईश्वर त्यागी नाम के एक शख्स अपनी पत्नी के साथ गाड़ी से कहीं जा रहे थे। बागपत चौराहे पर उनकी गाड़ी पंक्चर हो गई तो ड्राइवर पंक्चर बनवाने में लग गया, पत्नी गाड़ी में रहीं और खुद ईश्वर त्यागी पास ही बाजार में कुछ खरीदारी करने लगे। इसी बीच शराब के नशे में धुत्त दो पुलिसकर्मी वहां पहुंचे। पहले उन्होंने ड्राइवर से पूछताछ की और फिर गाड़ी में बैठी महिला से अशालीन व्यवहार शुरू कर दिया। ईश्वर त्यागी लौटे तो पत्नी ने उन्हें पूरा घटनाक्रम बताया। इस बीच वहां भीड़ एकत्र हो गई। अपने को घिरा देख कर दोनों पुलिसकर्मियों ने थाने से फोर्स बुला ली। फोर्स आने के बाद ईश्वर त्यागी और उनके दो साथियों की वहीं गोली मारकर हत्या कर दी गई। कार में बैठी उस महिला को जबरन थाने ले जाया गया, जहां उसके साथ हद दर्जे का अमानवीय कृत्य किया गया। बागपत के उस वक्त के थानाध्यक्ष डीपी गौड़ विधानसभा चुनाव में अपनी कांग्रेस समर्थक भूमिका की वजह से पहले ही काफी विवादास्पद हो चुके थे। चौधरी चरण सिंह के एक निकट संबंधी के साथ चुनाव के दौरान हुई अपमानजनक घटना समूचे क्षेत्र में पहले से आक्रोश का कारण बनी हुई थी। माया त्यागी कांड ने आग में घी का काम किया। पूरा वेस्ट यूपी इस घटना को लेकर गुस्से से उबल रहा था। चौधरी चरण सिंह पूर्व प्रधानमंत्री के साथ-साथ नेता प्रतिपक्ष भी थे। यह उनके संसदीय क्षेत्र का मामला था, लिहाजा उन्होंने संसदीय दल और पार्टी पदाधिकारियों की बैठक बुलाकर संघर्ष करने का ऐलान कर दिया। सत्यपाल मलिक को संघर्ष समिति का संयोजक नियुक्त किया गया था। बागपत के उसी चौराहे पर विरोध सभा आयोजित की गई, जिसे चौधरी चरण सिंह, मधु लिमये, जॉर्ज फर्नांडिस जैसे नेताओं ने संबोधित किया। तय हुआ कि इस घटना के विरोध में सत्यागृह आंदोलन चलेगा। अगले दिन 15,000 से अधिक महिलाओं ने शांतिपूर्वक धरना देकर थानाध्यक्ष समेत सभी पुलिसकर्मियों के खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज करने की मांग की। लोकसभा में भी विपक्ष ने विरोध दर्ज कराया। रवि राय जो बाद में लोकसभा के सभापति बने, वह पहले सत्याग्रह जत्थे का नेतृत्व कर रहे थे। लगभग 2,500 लोगों के साथ वह मेरठ जेल भेजे गए। उनके साथ सत्यनारायण रेड्डी, शरद यादव आदि भी शामिल थे। इटावा में भी मुलायम सिंह 25,000 से अधिक लोगों के साथ इस घटना का विरोध करते हुए जेल गए। लेकिन 23 जून को अचानक एक विमान दुर्घटना में संजय गांधी की मौत हो गई। इस घटना से देश हतप्रभ रह गया। इसके बाद सत्याग्रह आंदोलन स्थगित कर दिया गया, लेकिन तीव्र जनअसंतोष के मद्देनजर सरकार को पूरे मामले की सीबीसीआईडी से जांच करानी ही पड़ी।
आखिर वीपी सिंह ने माफी मांगीमाया त्यागी कांड के वक्त यूपी में वीपी सिंह ही मुख्यमंत्री थे। इस कांड पर मुख्यमंत्री के रूप में उनसे जिस तरह की कार्रवाई की अपेक्षा थी, उन्होंने नहीं की थी। जन मोर्चा बनने के बाद वीपी सिंह जब बागपत एक जनसभा को संबोधित करने पहुंचे थे तो जनता के आक्रोश को भांप कर उन्होंने सार्वजिक तौर पर माफी मांगी थी।
डिसक्लेमर : ऊपर व्यक्त विचार लेखक के अपने हैं