Isro Moon Mission,Opinion : भारत का चांद पर पहुंचना तो सिर्फ ट्रेलर है, पिक्चर तो अभी बाकी है – immense opportunity for india and world to explore mars and beyond after chandrayaan 3 successfully landed on the moon

लेखक : प्रकाश चंद्रभारत के अंतरिक्ष वैज्ञानिकों का हौसला सातवें आसमान पर है। चंद्रयान-3 की सफल सॉफ्ट लैंडिंग के साथ भारत अमेरिका, पूर्व सोवियत संघ (अब रूस) और चीन के बाद अंतरिक्ष अनुसंधान के क्षेत्र में इतनी बड़ी उपलब्धि हासिल करने वाला चौथा देश बन गया है। इसके साथ ही, इसने चंद्रमा के दक्षिण ध्रुवीय क्षेत्र मेंउतरने वाला पहला देश बनकर विश्व कीर्तिमान स्थापित कर दिया है। पिछली लैंडिंग चंद्रमा की भूमध्य रेखा के साथ या उसके दोनों ओर हुए थे। वह अमेरिका का मानवयुक्त अपोलो मिशन था।इसरो ने लैंडर विक्रम की चंद्रमा पर लैंडिंग उस वक्त कराई है जब वहां सूर्य की पूरी रोशनी पहुंच रही होगी ताकि चंद्रमा के दिन (14 पृथ्वी दिनों के बराबर) के दौरान पैदा हुए सौर ऊर्जा का अधिकतम लाभ उठाया जा सके। इसलिए, लैंडर विक्रम अपने साथ ले गए रोवर प्रज्ञान और अन्य वैज्ञानिक उपकरणों को चंद्रमा पर तैनात करेगा जो चंद्रमा की मिट्टी या रेगोलिथ में खुदाई करेंगे। रेगोलिथ में धूल, चट्टान और ज्वालामुखीय कांच के टुकड़े होते हैं। खुदाई का मकसद दिन के दौरान विभिन्न गहराई पर इसका तापमान मापाना है। मिशन कंट्रोलर विक्रम और प्रज्ञान का उपयोग करके जितनी जल्दी हो सके उतना डेटा जुटाने का प्रयास करेंगे, इससे पहले कि चंद्रमा पर रात शुरू हो जाए।Opinion : चंद्रयान-3 ने बना दिया विश्व कीर्तिमान, अब इसरो के लिए आगे क्या?चंद्रयान-3 के चंद्रमा के करीब पहुंचने में इसलिए भी ज्यादा दिलचस्पी थी क्योंकि रूस ने भी लूना-25 को चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव के पास ही उतरने के लिए भेजा था। हालांकि, लूना-25 लैंडिंग करते समय शनिवार को दुर्घटना का शिकार हो गया। पृथ्वी का अकेला प्राकृतिक उपग्रह चंद्रमा, अंतरिक्ष यान की लैंडिंग के लिहजा से कभी भी अनुकूल स्थान नहीं रहा है। चंद्रमा अक्सर लैंडिंग उपकरणों के लिए कब्रिस्तान साबित होता है- कभी-कभी टचडाउन से कुछ मिनट पहले।1960 के दशक के सोवियत संघ और अमेरिका के कई मून मिशन इसके शिकार हुए। कई लैंडर चंद्रमा की सतह पर मुश्किल लैंडिंग की परीक्षा पास नहीं कर सके। 3 फरवरी, 1966 को पहली बार सोवियत संघ के लूना 9 को चंद्रमा पर सॉफ्ट लैंडिंग में सफलता मिली थी। अनजान दुनिया में अंतरिक्ष यान की लैंडिंग या उसकी पृथ्वी पर वापसी की गति बहुत धीमी होनी चाहिए ताकि गुरुत्वाकर्षण उसे अपने आगोश में ले सके। पृथ्वी जैसे ग्रहों के पास वायुमंडल होने पर, पैराशूट और रेट्रो रॉकेट गति को पर्याप्त रूप से कम कर देते हैं ताकि सॉफ्ट लैंडिंग हो सके।चूंकि चंद्रमा का गुरुत्वाकर्षण पृथ्वी के मुकाबले 1/6 ही होता है, इस कारण वहां का वायुमंडल बहुत पतला होता है। इसलिए एडवांस कैमरों और सॉफ्टवेयर की मदद से भी चंद्रमा की सतह पर उतरना बहुत जटिल हो जाता है। इसके अलावा, चंद्रमा की सतह के नीचे द्रव्यमान सांद्रता (Mass Concentrations) हैं जो चंद्रमा के गुरुत्वाकर्षण क्षेत्र को बदलते हैं और अंतरिक्ष यान लक्ष्य से भटक जाता है। ऊपर से लैंडर के पास सीमित ईंधन और उसमें गड़बड़ी पैदा होने की आशंका से लैंडिंग और भी मुश्किल हो जाती है। यहां तक कि अगर यान पैंतरेबाजी से भी उपयुक्त लैंडिंग साइट खोजने में कामयाब हो जाता है, तो भी उसे एक और चुनौती से पार पाना होगा, वो है धूल।चांद पर लगी ‘मेक इन इंडिया’ का मुहर, देसी तकनीक से बने विक्रम और प्रज्ञान की सटीक चाल की दुनिया कायलचंद्रमा की सतह पर कम गुरुत्वाकर्षण के कारण रेट्रो रॉकेट बहुत अधिक धूल फेंकते हैं जो सेंसर को नुकसान पहुंचा सकता है और संभावित रूप से दुर्घटना का कारण बन सकता है। यही कारण है कि चंद्रयान-2 की असफल लैंडिंग के अंतिम चरण को पूर्व इसरो प्रमुख के. सिवन ने ’15 मिनट का आतंक’ कहा था। इसरो ने अपनी दूसरी कोशिश में इसे बेहतर बनाने के लिए बहुत होमवर्क किया। नवंबर 2008 में लॉन्च हुए चंद्रयान-1 ने मुख्य रूप से चंद्रमा के सतह पर पानी के बर्फ की मौजूदगी की पुष्टि की थी। इसने वीडियो कैमरों और एक रडार अल्टिमीटर को ले जाने वाले एक छोटे से प्रोब को जानबूझकर चंद्रमा पर क्रैश कर दिया था। इसने जुलाई 2019 में चंद्रयान-2 को लॉन्च करने में मदद की, जिसमें एक ऑर्बिटर, एक लैंडर और एक रोवर शामिल था।हालांकि, लैंडर एक एल्गोरिदम की विफलता के कारण अपने लैंडिंग को नियंत्रित नहीं कर सका और चंद्रमा के दूर के हिस्से में दुर्घटनाग्रस्त हो गया, लेकिन मिशन से प्राप्त डेटा इसरो के लिए चंद्रयान-3 के सेमुलेशन एक्सरसाइज के लिहाज से बहुत कारगर रहा है। उधर, चंद्रयान-2 ऑर्बिटर, पृथ्वी पर मिशन कंट्रोलरों के साथ संवाद करने में विक्रम को मदद कर रहा है।टेक्नॉलजी में एक बड़ा कदम उठाने के अलावा चंद्रयान-3 पर बेहद कम खर्च इसरो की सफलता में चार चांद लगा देता है। अपने पहले के चंद्रमा और मंगल मिशनों की तरह, इसरो ने कथित तौर पर चंद्रयान-3 को लगभग 7 करोड़ डॉलर (करीब 5.78 अरब रुपये) के बजट पर तैयार किया है। यह रकम स्पेस साइंस पर बनी हॉलीवुड की फिल्म पर आई लागत से भी कम है।चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर इस रहस्‍यमय जगह हुई चंद्रयान-3 की लैंडिंग, जानिए क्‍यों इन गड्ढों के पास उतरा यानचंद्रमा की वैज्ञानिक और आर्थिक क्षमता का पता लगाने की दुनियाभर में जगी रुचि के मद्देनजर इसरो को मिली सफलता का महत्व बहुत ज्यादा बढ़ जाता है। चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव के पास की सतह पर छाया है जबकि वहां पर्वत की चोटी पर धूप पहुंचता है। सोलर पैनल इस धूप को बिजली में परिवर्तित कर सकते हैं, जिसे माइक्रोवेव पुलों के जरिए पृथ्वी की ओर मोड़ा जा सकता है। इससे स्थलीय जीवाश्म ईंधन को बदलकर स्वच्छ ऊर्जा मिल सकती है।चंद्रमा पर भारी मात्रा में उपलब्ध बर्फ को पिघलाकर पीने का पानी तैयार किया जा सकता है। उसे ऑक्सीजन (सांस लेने के लिए) और हाइड्रोजन (ईंधन के लिए) में विभाजित किया जा सकता है। ठीक उसी तरह जैसे कि प्रचुर मात्रा में हीलियम-3 का इस्तेमाल परमाणु ईंधन के रूप में किया जा सकता है। चंद्रमा का भूगर्भशास्त्र ऐसा है कि चंद्रमा के चट्टानों से सांस लेने योग्य हवा भी निकाली जा सकती है क्योंकि चंद्रमा के चट्टानों में ऑक्सिजन फंसा होता है। ये सभी चीजें चांद पर आत्मनिर्भर स्टेशन स्थापित करने में मदद कर सकती हैं। चंद्रमा से मिशनों को लॉन्च करने के लिए कम ईंधन की आवश्यकता होती है (क्योंकि इसका गुरुत्वाकर्षण कम होता है), इसलिए पृथ्वी का निकटतम पड़ोसी गहरे स्पेस टेक्नॉलजी के लिए परीक्षण का मैदान हो सकता है। वहां से मंगल और उससे आगे की ओर कदम बढ़ाने का भी रास्ता मिल सकता है।लेखक विज्ञान विषय पर नियमित रूप से लिखते हैं। मूल अंग्रेजी लेख हमारे सहयोगी अखबार द इकनॉमिक टाइम्स (ET) में प्रकाशित हुआ है।