लखनऊनवंबर 1989 में 9वीं लोकसभा के चुनाव हुए। राजीव 1984 में जबर्दस्त बहुमत के साथ सत्ता में आए थे लेकिन बोफोर्स घोटाले के कलंक ने उन्हें सत्ता से बेदखल कर दिया। जनता ने कांग्रेस को नकार दिया था लेकिन असमंजस बरकार थी, फलत: किसी को बहुमत नहीं मिला। इस त्रिशंकु लोकसभा में जनता दल सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी। बीजेपी ने राममंदिर के मसले पर उसे बाहर से समर्थन दिया और वीपी सिंह नए प्रधानमंत्री बने। वीपी सिंह की सरकार ने वादा किया था कि सत्ता संभालने के चार महीनों के भीतर राम मंदिर विवाद का समाधान खोज लिया जाएगा। लगभग 6 महीने बीत चुके थे पर न तो जनता सरकार की मंशा ऐसी दिख रही थी न इस बारे में स्थिति साफ हो पा रही थी। बीजेपी पर दबाव बढ़ रहा था। जून में राममंदिर आंदोलन के नेताओं ने तय किया कि विवादित स्थल पर 30 अक्टूबर को कारसेवा की जाएगी।राम रथयात्रा में आडवाणी के साथ नरेंद्र मोदी, अटल बिहारी वाजपेयी (फाइल फोटो) लंदन जाने से पहले दिया एक इंटरव्यू जून के पहले सप्ताह में बीजेपी अध्यक्ष लाल कृष्ण आडवाणी को संसदीय प्रतिनिधिमंडल के साथ लंदन जाना था। लंदन रवाना होने से पहले राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के मुखपत्र पांचजन्य के एडिटर तरुण विजय को दिए एक इंटरव्यू में आडवाणी ने उम्मीद जताई कि जनता दल सरकार अभी भी रास्ता निकाल सकती है, नहीं तो अक्टूबर से अयोध्या में कारसेवा होनी तय है। कारसेवा के बारे में आडवाणी ने आगाह किया कि, ‘अगर कारसेवा में बाधा डाली गई तो देश आजाद भारत के सबसे बड़े जनआंदोलन का गवाह बनेगा। ‘कारसेवा, जोश, तनाव…29 साल पहले जब गिरा विवादित ढांचा, अयोध्या में कैसी थी 6 दिसंबर की वो सुबहबीजेपी और सरकार के संबंधों में खटास खैर… उधर आडवाणी लंदन रवाना हुए इधर यह प्रचारित हुआ कि अयोध्या मसले पर बीजेपी अध्यक्ष ने देश भर में विराट जनआंदोलन शुरू करने की धमकी दी है। इससे बीजेपी और सरकार के बीच पहले से ठंडे चल रहे संबंधों में दरार गहरा गई। इसे लेकर आडवाणी ने अपनी आत्मकथा ‘माई कंट्री माई लाइफ’ में अनोखी दुविधा का जिक्र किया है। आडवाणी की आखिरी कोशिश उनका मानना था कि कांग्रेस को हराकर बनी जनता दल सरकार लोकतांत्रिक ताकतों की बड़ी जीत थी। आडवाणी नहीं चाहते कि इस सरकार पर कोई संकट आए। इसी मद्देनजर 13 अगस्त को नई दिल्ली में एक कार्यक्रम में उन्होंने मुस्लिम नेताओं के सामने एक प्रस्ताव रखा कि अगर वे रामजन्मभूमि से अपना दावा स्वेच्छा से हटा लें तो आडवाणी विश्व हिंदू परिषद नेताओं से व्यक्तिगत तौर पर अनुरोध करेंगे कि वे मथुरा, वाराणसी की अपनी मांग पर जोर न दें। लेकिन आडवाणी को घोर अफसोस हुआ जब मुस्लिम नेताओं ने उनकी इस पेशकश को ठुकरा दिया।Siyasat Ke Raja: यूपी की वह लोकसभा सीट जिसने एक राजमाता और युवराज के रास्ते हमेशा के लिए अलग कर दिएअब सारा ध्यान 30 अक्टूबर से अयोध्या में शुरू होने वाली कारसेवा पर केंद्रित कर दिया गया। देश भर में कार सेवा समितियों का गठन होने लगा। देश भर से लोग अयोध्या पहुंचने के लिए उमड़ पड़ रहे थे। अब तक आडवाणी को भरोसा होने लगा था कि यह आंदोलन केवल अयोध्या में एक अदद मंदिर के निर्माण तक सीमित नहीं रहने वाला। उनके हिसाब से यह छद्म धर्मनिरपेक्षता के पटाक्षेप और सही मायनों में सर्वधर्म समभाव के उद्घाटन की शुरुआत थी। एक दिन आए प्रमोद महाजन सितंबर का आगाज हो चुका था। लालकृष्ण आडवाणी अपने पंडारा पार्क स्थित आवास में पत्नी कमला आडवाणी के साथ बैठे थे कि उनसे मिलने बीजेपी महासचिव प्रमोद महाजन आ पहुंचे। आवभगत के बाद औपचारिक बातचीत अयोध्या मुद्दे और कारसेवा पर आकर टिक गई। प्रमोद बताने लगे कि कैसे देश भर में कारसेवा को लेकर हलचल मची हुई है। आडवाणी के शब्दों में प्रमोद सामाजिक-राजनीतिक रुझानों को समाज की सतह पर आने से बहुत पहले ही भांपने में पारंगत थे।प्रमोद महाजन (फाइल फोटो) चर्चा के दौरान आडवाणी ने अपनी मंशा जाहिर करते हुए कहा, ‘मैं सोच रहा हूं कि सोमनाथ से अयोध्या तक की पदयात्रा करते हुए लोगों को इस मुद्दे पर जोड़ता चलूं।’ पदयात्रा को 2 अक्टूबर यानि गांधी जयंती या फिर 25 सितंबर दीनदयाल उपाध्याय जयंती से शुरू होना था। प्रमोद महाजन का अनोखा प्रस्ताव लेकिन न जाने क्यों प्रमोद महाजन को कुछ खटक रहा था। वह अपनी चिरपरिचित मुस्कान के साथ बोले, ‘पदयात्रा का विचार अच्छा है लेकिन आपके दिमाग में जो मकसद है उस लिहाज से बहुत मददगार साबित नहीं होगा। हद से हद आप गुजरात का छोटा सा हिस्सा, राजस्थान, मध्य प्रदेश, दिल्ली और आधे यूपी तक ही पहुंच पाएंगे।’ आडवाणी ने यह कहते हुए उनसे विकल्प पूछा कि कार से यात्रा करने का विचार उन्हें इसलिए अपील नहीं करता क्योंकि वह जनता से वार्ता नहीं कर पाएंगे। हां, जीप में यात्रा की जाए तो कुछ बात बन सकती है।दिया रथयात्रा का आइडियाप्रमोद महाजन कुछ देर तक चुप बैठने के बाद अचानक बोल उठे, ‘हम रथयात्रा क्यों नहीं करते? आखिर यह राम मंदिर का मुद्दा है। हम एक मिनी बस या मिनी ट्रक लेकर उसे रथ का रूप दे देंगे और आप उसमें यात्रा करना। चूंकि हमारा मकसद राम मंदिर निर्माण के लिए जन समर्थन जुटाना है इसलिए इसे नाम दिया जाएगा राम रथयात्रा। इसके साथ ही उन्होंने जोड़ा कि इस रथ की बदौलत आडवाणी कम ये कम 12 राज्यों की यात्रा कर पाएंगे। इससे इससे पश्चिमी, दक्षिणी, केंद्रीय, उत्तरी और पूर्वी भारत का बड़ा भाग कवर हो जाएगा। प्रमोद महाजन बोले, ‘रथयात्रा की प्लानिंग और व्यवस्था का जिम्मा मुझ पर छोड़िए यह बताइए कि आप कब शुरू करना चाहते हैं।’ शुरू में हिचक थी लेकिन बात बन गईलालकृष्ण आडवाणी शुरुआती हिचक के साथ तैयार हो गए और तय हुआ कि दीनदयाल उपाध्याय के जन्मदिन पर रथयात्रा सोमनाथ से कूच करे। आडवाणी ने प्रमोद महाजन से कहा कि वे तुरंत महासचिवों और पार्टी के दूसरे अहम सदस्यों की बैठक बुलाएं। अंतत: 12 सितंबर को बीजेपी अध्यक्ष लालकृष्ण आडवाणी ने 11 अशोक रोड स्थित पार्टी कार्यालय में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस बुलाई। इसमें ऐलान किया गया कि सोमनाथ से 25 सितंबर को रथयात्रा शुरू होगी जो 10 हजार किलोमीटर की दूरी तय करके 30 अक्टूबर को अयोध्या पहुंचेगी और कारसेवा में हिस्सा लेगी।