अमित मजमूदार का लेख: 30 जनवरी को राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की पुण्यतिथि है। उनकी पुण्यतिथि के साथ वो कड़वी यादें भी सामने आती हैं जो उनकी हत्या से जुड़ी हैं। कैसे कोई सिरफिरा ऐसे इंसान की हत्या कर सकता है जो सहिष्णुता की जीती-जागती मूर्ति हो। जिसके लिए सभी लोग एक हों। जो धर्म-जाति से ऊपर बढ़ चुका हो। गांधी जी की एक भारत और राष्ट्रीय पहचान की सोच धर्म-जाति को गौड़ बनाती थी। उन्होंने ऐसे भारत की कल्पना की थी जो कराची, दिल्ली से लेकर ढाका तक फैला हो। हालांकि, 1947 का विभाजन दिखाता है कि गांधी अपने करियर में पूरी तरह सफल नहीं हुए। अगर ऐसा होता तो ब्रिटिश राज का पूरा क्षेत्र एक राष्ट्र होता। अलग देश चाहने वाले मोहम्मद अली जिन्ना के मंसूबे पूरे नहीं होते। हम सभी जानते हैं कि क्या हुआ। लेकिन, सोचने वाली बात यह है कि गांधी इस मल्लयुद्ध में कैसे हार गए। यह देखते हुए कि वह उस वक्त जिन्ना से कहीं बड़े सेलिब्रिटी थे। दुनियाभर में लाखों-करोड़ लोग उनके प्रशंसक थे। गांधी अपने ‘वन इंडिया’ विजन को साकार कर सकते थे। लेकिन, इसके लिए अन्य समूहों के खिलाफ हिंदुओं को एकजुट करने की जरूरत थी। पाकिस्तान के लिए जिन्ना ने वैसा ही किया। हिंदुओं की संख्या देश में उस वक्त भी अन्य से कई गुना ज्यादा थी। फिर गांधी ने ऐसा क्यों नहीं किया? इसके कई कारण थे। उनमें से एक यह भी है कि ‘हिंदू’ शुरुआती 20वीं सदी की वास्तविकता को दिखाने वाला पॉलिटिकल टर्म नहीं था। आज भी बीजेपी को अक्सर हिंदू राजनीतिक दल कहा जाता है। लेकिन, हिंदू बहुल दक्षिण भारतीय राज्यों में बीजेपी जगह बनाने की कोशिश ही कर रही है। सभी हिंदुओं को एक करना आज भी टेढ़ी खीर है। 75 साल पहले यह कितना मुश्किल होगा, इसकी कल्पना की जा सकती है। तब जातियों, भाषाओं और क्षेत्रीय संस्कृति का प्रभाव कहीं ज्यादा था। बजट पेश करने वाले पहले वित्त मंत्री नहीं थे कांग्रेसी, नेहरू ने एक आलोचक को क्यों दिया था मौका?हिंंदू महासभा से गांधी ने किया किनाराहिंदू महासभा और वीर सावरकर ने उस तरह की हिंदू राजनीतिक एकता की कल्पना की थी। लेकिन, इसे जमीन पर उतार पाना आसान नहीं था। गांधी ने हिंदू महासभा से दूरी बनाई। उसके विचारों से किनारा किया। इसी के एक प्रमुख चेहरा थे वीर सावरकर। गांधी का हत्यारा उनके विचारों से प्रेरित था। गांधी ने अपने सैकड़ों भाषणों और लेखों में कभी हिंदुओं को एक छतरी के नीचे आने की बात नहीं की। न ही उन्होंने कभी उकसाने वाली बातों का इस्तेमाल किया। उन्होंने हिंदुओं को राष्ट्रीय अभियान का हिस्सा माना। बेशक, वह रोजाना भागवत गीता पढ़ते या सुनते थे। लेकिन, प्रार्थना सभाओं में बाइबल और कुरान को रखने की भी बात करते थे। गांधी के विफल होने के पीछे भी उनके सिद्धांत ही कारण थे। उन्होंने कई बातों को नजरअंदाज किया। उन्होंने जनजातीयता के सिद्धांत को नकारा। इसने गांधी को उस दौर के दूसरे राजनीतिक नेताओं से अलग किया। गांधी के सबसे शक्तिशाली शत्रु न जिन्ना थे न ही ब्रिटिश साम्राज्य। असल में वह थी लोगों का मानसिकता। उसे हराना असंभव था और है। चक्कर में पड़ गए थे धीरूभाई अंबानी… वित्त मंत्री वीपी सिंह का वो कदम जिसके बाद राजीव गांधी ने छीन ली थी कुर्सीजिन्ना और अंग्रेजों का लक्ष्य था साफमुस्लिम लीग और ब्रिटिश साम्राज्य के लक्ष्य साफ थे। उन्होंने सिर्फ अपने हितों को साधा। अंग्रेज मुनाफा चाहते थे और जिन्ना जमीन। अंदर से बंटे भारत ने एक को तिजोरियां दे दीं और दूसरे को अपना क्षेत्र। चर्चिल और टोरी पाकिस्तान मूवमेंट के साथ जुड़े। दिसंबर 1946 में चर्चिल जब सत्ता से अस्थायी तौर पर बाहर आ गए तो भी अपने प्रभाव से उन्होंने जिन्ना की मुलाकात किंग और क्वीन से करा दी। यह वही चर्चिल थे जिन्होंने 1943 में बंगाल में अकाल पड़ने पर कनाडाई और ऑस्ट्रेलियाई खाद्यान्न को भारत आने से रोका था। अलबत्ता, इसका रुख गोरे यूरोपीयों की तरफ कर दिया था। जिन्ना ने भी वही किया जिससे मुस्लिमों के हित सधते थे। इसके उलट गांधी अलग-अलग जातियों, धर्मों और समूहों में पहचान तलाशते रहे। वह चाहते थे कि लोग एक सूत्र में बंध जाएं। लेकिन, ऐसा करने में उन्होंने सदियों पुरानी पहचानों को भुला दिया। गांधी ने राजनीति में सबसे मुश्किल चीज करने की कोशिश की थी। वह थी किसी चीज के लिए कई गुटों को एक करना। वहीं, जिन्ना ने किसी चीज के खिलाफ एक गुट तैयार किया था। जिन्ना ने वास्तिकताओं को समझा जिन्ना ने दक्षिण एशियाई मुसलमानों से पाकिस्तान मूवमेंट का समर्थन करने के लिए कहा था। इसके लिए जिन्ना ने गांधी को हिंदू राजनेता और कांग्रेस को हिंदूवादी राजनीतिक दल के तौर पर प्रस्तुत किया था। जिन्ना की इस रणनीति ने काम किया था। जिन्ना ने जनजातीयता की बुनियादी बात पर फोकस किया था। अपने शुरुआती करियर में जिन्ना भी मुस्लिम लीग और कांग्रेस के बीच मध्यस्थता चाहते थे। लेकिन, इसमें वह नाकाम साबित हुए थे। कुछ ही सालों में जिन्ना ने भारत के मुस्लिमों को ब्लॉक में तब्दील कर दिया। वह धमकी के साथ अपनी मांगें रखने लगे। इस धमकी ने ही अलग पाकिस्तान की राह तैयार की। 1947 में पार्टिशन के समय हिंसा को कोई भुला नहीं सकता है। इसको टाला जा सकता था। जिन्ना इंसानी दिमाग की वास्तविकताओं को समझकर पाकिस्तान तक पहुंच गए। गांधी काल्पनिक भारत के भंवर में उलझकर रह गए। गांधी जी जैसी बड़ी शख्सीयत आसानी से अपने राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी या विदेशी ताकत का विरोध कर सकती थे। लेकिन, मानवीय व्यवहार का विरोध नहीं किया जा सकता है। महात्मा भी ऐसा नहीं कर सके। (मजमूदार पुस्तक ‘द मैप एंड द सिजर’ के लेखक हैं।)