सुजाता
मिसोजिनी यानी औरत के वजूद से, उसके औरत होने के सभी कारकों से नफरत करना। वह फर्क जो पुरुष को स्त्री की ओर आकृष्ट करता है, वही स्त्री के लिए पुरुष के मन में शंकाएं भी पैदा करता है, द्वेष और डर भी। जिससे डर है या तो उससे जीता जाता है या बचा जाता है। यही स्त्री के साथ पितृसत्ता करती आई है। अंधविश्वास ऐसे ही पैदा होते हैं और अगर हम कहें कि स्त्री-द्वेष एक अंधविश्वास की तरह मानव-सभ्यता में पसरा हुआ है तो इससे हैरान नहीं होना चाहिए। बहुत कम उम्र के लड़के भी अक्सर अपनी बहन के सम्मान और दुनिया की बाकी लड़कियों की इज्जत में फर्क करने लगते हैं। हमारे घर की औरतें पाक हैं और जिसके साथ काम कर रहे हैं, घूम रहे हैं, दोस्ती है, वह उपलब्ध स्त्री है। स्त्री-देह और उससे जुड़ी तमाम बातें छुपाने योग्य हैं। माहवारी गंदी चीज है। दुपट्टा ओढ़ो, पल्ला करो, अंतर्वस्त्र छिपा कर सुखाओ, सैनिटरी नैपकिन छुपाओ, हंसो नहीं, बाल न लहराओ, सरेआम गाना मत गाओ। फिर भी कोई मर्द स्त्री-द्वेष न माने तो उसे जाति-बाहर कर दो। जो पुरुष संवेदनशील है वह जोरू का गुलाम है, डरपोक है या कम मर्द है।
स्त्री के प्रति इस नफरत को पहचानना आसान नहीं क्योंकि पितृसत्ता भाषा, व्यवहार, संस्कृति सबका छ्द्म आवरण अपनाती है। जैसे किसी भी यौनिक-हिंसा में स्त्री की गलती तलाशना, स्त्री के लिए चरित्र और मर्यादा के संस्कृति, धर्म, राष्ट्रीयता पर आधारित विशिष्ट संस्करण तैयार करना और अपने पूर्वाग्रहों के साथ स्त्रियों की तुलनाएं करना, ‘पश्चिमी औरतें नंगी घूमती हैं, तुम भी वही चाहती हो?’ ‘अच्छी औरत’ की बड़ी परिभाषाएं मिलेंगी ‘अच्छे आदमी’ की नहीं।
मिसोजिनी स्त्रियों को नियंत्रण में रखने के लिए एक टूल-किट की तरह इस्तेमाल होती है। नियम यह है कि जब पुरुष समीप न हों तब घर की प्रशिक्षित औरतें नई औरतों पर निगरानी करेंगी और उन्हें मिसोजिनिस्ट बनाएंगी। बाकी जगह औरतें स्वयं पर निगरानी करें। स्त्री-द्वेष पर बने चुटकुलों पर स्त्रियों का खुद हंसना, पति या प्रेमी दूसरी औरतों के लिए सेक्सिस्ट बातें कहे तो उसे सामान्य समझना अपने ही अस्तित्व से घृणा है। औरतों को अपने आजाद फैसले के लिए पछताते, रोते, गिरते, पिटते, गाली खाते देखने, अपमानित होते देखने में, मर्दों के उपहास या मनोरंजन का मुद्दा बनते देखने में अगर आपको जरा भी अच्छा लगा हो कभी, तो यह मिसोजिनी है।
खुद से नफरत करने वाली कौम को ही लम्बे समय तक गुलाम बनाया जा सकता है। जिस जाति की आत्म-छवि हीन होगी, आत्म-विश्वास और ‘सेल्फ-एस्टीम’ कम होगा, वह अपने लिए कभी खड़ी नहीं हो सकती। महाभारत के अनुशासन पर्व में पंचचूड़ा नाम की एक अप्सरा है। उससे नारद नारी स्वभाव के बारे में पूछते हैं तो वह बताती है कि स्त्री चरित्र से अविश्वसनीय है, मर्यादा में नहीं रहती, पापिनी है। एक स्त्री पात्र से समस्त स्त्री-जाति के प्रति यह द्वेषपूर्ण बातें कहलवा पाना ही पितृसत्ता की सफलता है। इन बातों पर औरतों का भरोसा करने लगना और भी बड़ी सफलता।
डिसक्लेमर : ऊपर व्यक्त विचार लेखक के अपने हैं