modi policy on ukraine right or wrong: ‘न काहू से दोस्‍ती न काहू से…’ मास्‍टर स्‍ट्रोक या भारत को वाकई अकेला खड़ा कर देगी मोदी की पॉलिसी? : Modi policy on Ukraine war is different from most other countries: Will Modi policy on Ukraine really make India stand alone: How effective is Modi policy on Ukraine War

Modi Policy on Russia-Ukraine War: यूक्रेन पर हमले के बाद रूस (Russia-Ukraine Crisis) पर अमेरिका और पश्चिमी देश आग-बबूला हैं। उसकी जमकर आलोचना हो रही है। दुनिया के ज्‍यादातर मुल्‍कों का रुख यही है। उस पर प्रतिबंधों की बौछार (Sanctions on Russia) कर दी गई है। जंग से पीछे हटने के लिए रूस को मजबूर करने की कवायद के तहत ऐसा किया गया है। हालांकि, रूस अड़ा हुआ है। हमले की शुरुआत से दुनिया की नजरें भारत के रुख पर थीं। उसने एक नहीं, कई बार साफ कर दिया कि वह इस पूरे मामले में तराजू के किसी एक पलड़े में नहीं बैठेगा। शुरुआत से भारत न्‍यूट्रल (India Neutral Stand) रहा है। यह बात अमेरिका और पश्चिमी देशों को काफी अखरी भी है। उनके सुर में सुर मिलाकर भारत रूस (India-Russia Relations) के साथ अपनी पुरानी दोस्‍ती को एक झटके में खत्‍म नहीं कर सकता है। जब दुनिया के तमाम मुल्‍क रूस के खिलाफ हैं तो क्‍या भारत का ऐसा करना सही है? ‘न काहू से दोस्‍ती न काहू से बैर’ की मोदी की पॉलिसी क्‍या भारत को दुनिया में अलग-थलग तो नहीं खड़ा कर देगी? या यही मोदी का मास्‍टर स्‍ट्रोक है जो उसे दुनिया के तमाम मुल्‍कों के साथ बारगेनिंग करने की हैसियत में रखेगा? संयुक्‍त राष्‍ट्र के अलग-अलग निकायों में जितने भी बार रूस के खिलाफ कोई प्रस्‍ताव आया, भारत ने वोटिंग में हिस्‍सा नहीं लिया। फिर वह सुरक्षा परिषद या महासभा हो या संयुक्‍त राष्‍ट्र मानवाधिकार परिषद। वह न केवल रूस की आलोचना से बचा बल्कि किसी भी पक्ष में खड़े होने से भी दूरी बनाई। कब और कैसे खत्‍म होगी रूस-यूक्रेन के बीच जंग, क्‍या हो सकता है भारत का रोल?समझ‍िए क्‍यों जंग तक पहुंची नौबतबेशक, रूस का कदम अंतरराष्‍ट्रीय नियम-कायदों के खिलाफ है। लेकिन, सिर्फ रूस को कसूरवार ठहराना सही नहीं होगा। इसमें कई तरह के पॉलिटिकल इंटरेस्‍ट शामिल हैं। यूक्रेन रूस से लगा हुआ है। पश्चिमी देशों ने उसे खूब उकसाया। उसे नाटो में शामिल करने की कवायद तेज की गई। रूस को घेरने के प्‍लान के तहत ऐसा किया गया। यही नहीं, यूक्रेन में काफी बड़े न्‍यूक्लियर प्‍लांट हैं। इनकी जितनी अहमियत यूक्रेन के लिए है, उतनी ही रूस के लिए है। जब रूस ने नाटो को अपनी सरहदों के पास आते देखा तो उसकी घबराहट बढ़ गई। अमेर‍िका के नेतृत्‍व वाले नाटो से घिर जाने की चिंता में आकर उसने यूक्रेन पर हमला कर दिया। दुनिया का जज नहीं बनाना चाहता भारतकुल मिलाकर कह सकते हैं कि इसमें पश्चिमी देशों और रूस के हित सीधे जुड़े हैं। इनका भारत से कोई लेनादेना नहीं है। ऐसे में उसका न्‍यूट्रल रहना जायज है। वह किसी की तरफदारी करता तो बात शायद कुछ अलग होती। इस तरह उसने अपने लिए दोनों पक्षों से निगोशिएशन के रास्‍ते खुले रखे हैं। यह सही है कि हाल में भारत ने अमेरिका के साथ अपने संबंधों में बहुत निवेश किया है। लेकिन, न्‍यूट्रल रहकर उसने हर मुसीबत में साथ देने वाले अपने पुराने दोस्‍त रूस को भी नाराज नहीं किया है। जब तक करे पूता-पूता तब तक करे अपने बूता… यूक्रेन वॉर से भारत के लिए सबसे बड़ा सबकहर बार भारत ने यही कहा कि वह युद्ध का पक्षधर नहीं है। रूस और यूक्रेन को बातचीत के रास्‍ते हल निकालना चाहिए। अपनी पॉलिसी से उसने यह भी साफ कर दिया है कि वह दूसरों के मामलों में जज नहीं बनना चाहता। उसके लिए अपने हित सर्वोपरि हैं। यूक्रेन से इतनी बड़ी संख्‍या में भारतीयों की वतन वापसी हो पाने के पीछे भी यही पॉलिसी है। भारत किसी एक तरफ खड़ा हो जाता तो शायद यूक्रेन में भारतीयों की मुश्किलें कहीं ज्‍यादा बढ़ सकती थीं। कहीं अलग-थलग तो नहीं पड़ जाएगा भारत? हालांकि, इस बात की आशंका जताई जा रही है कि दुनिया से उलट रुख रख भारत अलग-थलग हो जाएगा। लेकिन, जैसा दिखता है वैसा होता नहीं है। इतिहास में इसके कई सुबूत हैं। नेहरू के भारत के बहुत सारे दोस्‍त थे। यह और बात है कि जब 1962 में चीन ने हम पर हमला किया तो सबने आंखें मूंद लीं। कोई साथ नहीं खड़ा हुआ। रूस ने भी दो-टूक कहा था कि वह भाई और दोस्‍त के बीच पक्ष नहीं लेगा। भारत को चीन की आक्रामकता को अकेले झेलना पड़ा था। कुल मिलाकर आपकी लड़ाई दूसरा लड़ने नहीं आएगा। दुनिया तीसरा विश्‍वयुद्ध नहीं चाहती है। न ही यह होना चाहिए। इतिहास में ऐसे कई वाकये आए हैं जब अमेरिका और पश्चिमी देशों ने भारतीय हितों पर चुप्‍पी साध ली या फिर उसके मसलों को वैसी तवज्‍जो नहीं दी जैसी वह अपने हितों पर देता है। ‘न काहू से दोस्‍ती न काहू से बैर’ की पॉलिसी आज बहुत प्रासंगिक दिखती है। कोई कितना भी तरफदारी कराने के लिए चीखे-चिल्‍लाए, भारत के पास स्‍पष्‍ट तर्क है। न तो उसने किसी पर हमला किया है न ही वह आसपड़ोस के देशों पर ऐसा करने की नीयत रखता है। उसे दुनिया में अपना साम्राज्‍य भी नहीं फैलाना है। न उसे दुनिया का जज बनना है। मौका आने पर जब सबको किनारा ही कर जाना है तो वह क्‍यों पार्टी बनकर दुश्‍मनों की फेहरिस्‍त बढ़ाए।