Nbt Exclusive Interview,पहली बार देखा तो सेट पर मजदूरों की तरह काम कर रहे थे… नितिन देसाई से पहली मुलाकात पर डॉ. चंद्रप्रकाश द्विवेदी से बातचीत – interview with chandraprakash dwivedi on art director nitin desai suicide

चाणक्य जैसा भव्य धारावाहिक बनाने वाले पद्मश्री डॉ. चंद्रप्रकाश द्विवेदी भारतीय सिनेमा उद्योग का एक जाना-पहचाना नाम हैं। रुपहले पर्दे को उन्होंने जिस कलात्मकता के साथ नया रूप दिया, उसमें नितिन देसाई का बड़ा रोल रहा। ‘लगान’, ‘देवदास’ और ‘जोधा अकबर’ जैसी भव्य फिल्मों का सेट सजाने वाले आर्ट डायरेक्टर नितिन देसाई ने इसी हफ्ते बुधवार को आत्महत्या कर ली। अजय ब्रह्मात्मज ने डॉ. चंद्रप्रकाश द्विवेदी से नितिन देसाई के योगदान सहित सिनेमा और कला के कई पहलुओं पर बात की। पेश हैं अहम अंश:नितिन देसाई से आपकी मुलाकात कैसे हुई?उन दिनों नितिन देसाई तमस और भारत एक खोज में नीतीश रॉय के सहायक थे। इन धारावाहिकों का सुंदर पक्ष कला निर्देशन था। नीतीश रॉय से मिलने की प्रक्रिया में मेरी मुलाकात नितिन देसाई से हुई। तब उनकी उम्र 20-21 साल रही होगी। मैंने देखा कि ‘भारत एक खोज’ के फ्लोर नंबर दो पर वह युवक सेट के निर्माण में लगा हुआ है। काम खत्म होने के बाद वह वहीं रहता और सोता है। वह अन्य मजदूरों के समान जीवन जी रहा है। उसका समर्पण देखते हुए मैंने उसे कला निर्देशन की स्वतंत्र जिम्मेदारी दे दी। 21वें एपिसोड के बाद ‘चाणक्य’ का सबसे बड़ा पाटलिपुत्र का सेट फिल्मसिटी में लगा तो वह सभी के आकर्षण का केंद्र बन गया। उसे देखने रोजाना सैकड़ों लोग आते थे। बाद में तो इतनी चर्चा हो गई कि देश-विदेश के जाने-माने लोग का मुंबई यात्रा में एक पड़ाव ‘चाणक्य’ का सेट हुआ करता था। तब भारत सरकार के जो भी अतिथि मुंबई आते थे, उन्हें ‘चाणक्य’ का सेट दिखाया जाता था। पाटलिपुत्र के सेट पर ही विधु विनोद चोपड़ा की फिल्म ‘1942 ए लव स्टोरी’ के लिए अनिल कपूर और मनीषा कोइराला का स्क्रीन टेस्ट हुआ।’चाणक्य’ और ‘1942 ए लव स्टोरी’ करने के बाद उनकी प्रतिभा में विस्फोट और विस्तार हुआ। इसे कैसे आंकते हैं?’चाणक्य’ के सेट की वजह से नितिन को ‘1942 ए लव स्टोरी’ मिली। वहां विधु विनोद चोपड़ा के सहायक संजय लीला भंसाली थे। संजय लीला भंसाली ने निर्देशक बनते ही नितिन को मौके दिए। हिंदी में बनी तमाम बड़ी फिल्मों के कला निर्देशक नितिन देसाई रहे। वह अपने जीवन काल में ही बहुत बड़े हो गए थे। नितिन देसाई को मीरा नायर की फिल्म ‘बुद्ध’ भी मिली थी। उस फिल्म के लिए नितिन को कपिलवस्तु और राजगृह आदि शहर बसाना था। मैंने वसंत पेंडसे से उनका परिचय करवा दिया था। तब उस फिल्म के आर्ट डायरेक्शन का बजट 19 करोड़ था। आज यह खर्च लगभग ढाई सौ करोड़ होता, सिर्फ सेट लगाने की लागत। अफसोस है कि वह फिल्म प्रारूप तक ही रह गई।Nitin Desai: नितिन देसाई ने अपनी मौत के लिए खुद बनाया था सेट? पत्नी ने लगाया आत्महत्या के लिए उकसाने का आरोपपिछले 30-35 सालों में कला निर्देशन के क्षेत्र में हिंदी फिल्मों ने कितना विकास किया है?पिछले 30-35 सालों में जितने भी कला निर्देशक भारतीय परिदृश्य में मशहूर हुए हैं, वे सभी नीतीश रॉय के शिष्य रहे हैं। उनका ही स्कूल चल रहा है। प्रॉडक्शन डिजाइन में हम दुनिया में सबसे आगे हैं। हमारे डिजाइनर और कारीगर जब विदेश में काम करते हैं तो विदेशी हतप्रभ रह जाते हैं।AI के आगमन ने कला निर्देशन के क्षेत्र में कल्पना को बाधित किया है क्या?मुझे लगता है तकनीक और AI ने कल्पना को ऊंचाई और विस्तार दिया है। आज फिल्मकार कुछ भी सोच ले, कला निर्देशक उसे साकार कर सकता है। निर्देशक और कला निर्देशक की जरूरत हमेशा बनी रहेगी, क्योंकि AI उसी अनुभव और ज्ञान को प्रस्तुत करती है, जो कहीं ना कहीं मौजूद है। मैंने AI द्वारा तैयार प्राचीन भारत के कुछ चित्र देखे हैं। मैं कह सकता हूं कि वे प्रामाणिक नहीं हैं। मौलिकता के लिए मनुष्य ही चाहिए। मशीन प्रतिलिपि तैयार कर सकती है। वह आपकी सहयोगी हो सकती है, और बता सकती है कि इस रास्ते भी जा सकते हैं। हां, समय और धन जरूर बचेगा तकनीक और AI की मदद से।Nitin Desai Suicide: आर्ट डायरेक्टर नितिन देसाई ने किया सुसाइड, ‘देवदास’ और ‘लगान’ से जीते थे 4 नेशनल अवॉर्डहिंदी सिनेमा के वर्तमान परिदृश्य को कैसे देखते हैं?मुझे लगता है कि यह बहुत अच्छा समय चल रहा है क्रिएटिव व्यक्तियों के लिए। जो सिनेमा नहीं बना पा रहे हैं, वे सिनेमा से बड़ी वेब सीरीज बना रहे हैं। दर्शक किसी भी फिल्म के स्टार के बारे में पहले पूछता है। वेब सीरीज देखते हुए हम ध्यान भी नहीं देते कि कलाकार कौन है? मैं यह भी जोड़ना चाहूंगा कि पॉप्युलर स्टार की आक्रामकता और उसके पूर्वाग्रह से फिल्मों को बचाना होगा। इसी के साथ निर्माता के पूर्वाग्रह और अज्ञान से उपजे अति-आत्मविश्वास से भी हिंदी सिनेमा जितनी जल्दी बाहर आए, उतना भला होगा।Nitin Desai Debt: 250 करोड़ रुपये के कर्जे से दबे थे नितिन देसाई, फोन से मिले ऑडियो क्लिप से खुलेंगे कई राज?इन दिनों भावनाएं इतनी आहत हो रही हैं कि किसी भी फिल्म को लेकर आना मुश्किल काम हो गया है। ऊपर से CBFC के सदस्य भी अति संवेदनशील होकर मीन मेख निकालने लगे हैं…मैं हमेशा किसी भी प्रकार के प्रतिबंध के खिलाफ रहा हूं। मैंने ‘चाणक्य’ से लेकर अंतिम रचना तक ऐसे प्रतिबंधों के खिलाफ लड़ाई लड़ी है। मेरा मानना है कि आपको विरोध, बहिष्कार और आलोचना का भी अधिकार है, लेकिन यह कहना गैरवाजिब है कि किसी कृति को समाप्त कर दिया जाए या उसे बनाने की अनुमति ही ना दी जाए। अब प्रश्न यह है कि भावनाएं आहत होती हैं। पहले हर तरह का सिनेमा बनता था, लेकिन कोई आहत नहीं होता था। अभी यह रोज की खबर हो गई है। सोशल मीडिया के विस्तार ने गैर-जिम्मेदार टिप्पणीकारों की संख्या बढ़ा दी है। मुझे लगता है कि जल्दी ही न्यायालय यह जानना चाहेगा कि भावनाओं के आहत होने का क्या मापदंड हो सकता है।क्या सेंसरशिप रहनी चाहिए?देखिए, ऐसी कोई कृति स्वीकार नहीं होगी जो भारतीय संविधान के विरोध में हो। ऐसी कोई फिल्म नहीं बननी चाहिए जो समाज में विद्रूपता या विद्वेष फैलाए और समाज की समरसता को भंग करे। हमारी फिल्में सिनेमैटोग्राफ एक्ट 1952 के अनुसार बननी चाहिए।