News About Aditya-l1,आदित्य-L1 क्यों? क्यूबेक की उस घटना में छिपा है जवाब जब एक झटके में कनाडा के पूरे राज्य की हो गई थी बत्ती गुल – why aditya-l1 mission needed answer lie in the great quebec balckout 1989 caused by solar storm

नई दिल्ली : चांद के दक्षिणी ध्रुव पर लैंडर उतारकर इतिहास रचने के बाद भारत ने शनिवार को अपने पहले सूर्य मिशन ‘आदित्य-एल1’ को सफलता से लॉन्च कर दिया है। इस मिशन का मकसद सूर्य से जुड़े रहस्यों से पर्दा उठाना है। आखिर सूर्य मिशन जरूरी क्यों है? सूरज का अध्ययन करना धरती पर रह रहे लोगों के लिए आखिर क्यों महत्वपूर्ण है? इसकी जरूरत ही क्या है? हो सकता है कि इस तरह के सवाल आपके जेहन में भी आते हों या आप किसी अन्य के ऐसे सवालों से होकर गुजरे हों। इसका जवाब यही है कि सूर्य मिशन सिर्फ एक वैज्ञानिक अध्ययन की कवायद नहीं है, ये मानवता की बड़ी सेवा भी है। ये मानव के अस्तित्व, धरती पर जीवन के लिए जरूरी है। सूर्य का अध्ययन, उसके रहस्यों के समझने के पीछे एक बड़ी वजह सूरज का धरती पर पड़ने वाला नुकसानदेह असर है। सूरज पर सौर तूफान आते रहते हैं। इनसे सौर ज्वालाएं निकलती हैं। अगर ये सौर ज्वालाएं धरती की तरफ बढ़ती हैं तो ये बड़ी तबाही ला सकती हैं। करीब 34 साल पहले कनाडा के एक राज्य में घटी घटना के जरिए सूर्य मिशन की अहमियत को समझा जा सकता है।जब अचानक हुई थी बत्ती गुल, बंद हो गई मेट्रो, एयरपोर्ट भी ठपकनाडा के क्यूबेक प्रांत में 1989 में घटी घटना ये बताने के लिए काफी है कि किस तरह सूरज पर हो रही गतिविधियां धरती पर उथल-पुथल मचा सकती हैं, जीवन को प्रभावित कर सकती हैं। 13 मार्च 1989 को कनाडा का समूचा क्यूबेक प्रांत अंधेरे में डूब गया। अचानक बत्ती गुल हो गई। लाखों लोग जहां-तहां अंधेरे में कैद हो गए। कोई ऑफिस में तो कोई घर में। कोई अंडरपास में घुप्प अंधेरे में फंसा था तो कोई अचानक रुक चुके एलिवेटर पर फंसा था। स्कूल बंद हो गए। दुकान, शो रूम, बिजनस सब ठप। मॉन्ट्रियल मेट्रो बंद हो गई, डोरवल एयरपोर्ट भी बंद करना पड़ा। 12 घंटे तक बिजली गायब रही। वैसे तो उत्तरी अमेरिका के कुछ हिस्सों में हर साल ब्लैकआउट यानी बत्ती गुल होने की सैकड़ों घटनाएं होती हैं। लेकिन ये घटना अलग थी। क्यूबेक ब्लैकआउट की वजह सोलर स्टॉर्म यानी सौर तूफान थी। अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी ‘नैशनल ऐरोनॉटिक्स ऐंड स्पेस ऐडमिनिस्ट्रेशन’ (NASA) ने बताया कि ब्लैकआउट की वजह सूरज पर हुई घटना है। नासा ने इसकी पूरी कहानी बताई।रेडियो सिग्नल भी हो गया जाम, रूस का हाथ माना गया मगर हकीकत कुछ और निकली10 मार्च 1989, शुक्रवार को अंतरिक्ष वैज्ञानिकों को सूरज पर एक ताकतवर विस्फोट का पता चला। कुछ ही मिनटों में सूरज के मैग्नेटिक फोर्सेज ने अरबों टन गैस छोड़ा। एक ही वक्त पर हजारों परमाणु बम विस्फोट जितना ताकतवर था वो सौर विस्फोट। विस्फोट से पैदा हुई विशाल गैस बादलों की शक्ल में तेजी से सीधे धरती की तरफ बढ़ीं। 10 लाख मील प्रति घंटे की रफ्तार से। सौर ज्वालाओं की वजह से शॉर्ट-वेव रेडियो बाधित हो गईं। यूरोप में रेडियो सिग्नल जाम हो गया। रेडियो तरंगों के जाम होने को शुरुआत में रूस की करतूत मानी गई लेकिन हकीकत तो कुछ और ही थी।दो दिन बाद यानी 12 मार्च 1989, सोमवार को सोलर प्लाज्मा वाला विशाल बादल आखिरकार धरती के चुंबकीय क्षेत्र में फंस गया। सोलर प्लाज्मा विद्युत आवेशित कणों वाली गैस होती हैं। इस जियो-मैग्नेटिक स्टॉर्म यानी भू-चुंबकीय तूफान की वजह से जो चुंबकीय विक्षोभ हुआ या मैग्नेटिक डिस्टर्बेंस हुआ, वह बहुत ताकतवर था। इसकी वजह से नॉर्थ अमेरिका में जमीन के नीचे इलेक्ट्रिकल करेंट पैदा हो गई। 13 मार्च को तड़के पौने 3 बजे के करीब इस इलेक्ट्रिकल करेंट ने क्यूबेक के पावर ग्रिड को ठप कर दिया और अचानक पूरा राज्य अंधेरे में डूब गया।अमेरिका में भी दिखा था असरऐसा नहीं था कि उस सौर तूफान का असर सिर्फ कनाडा के क्यूबेक राज्य में ही पड़ा। अमेरिका में भी न्यू यॉर्क, न्यू इंग्लैंड जैसे कुछ इलाकों में भी लगभग उसी वक्त बिजली सप्लाई बाधित हुई थी। लेकिन क्यूबेक जैसा असर नहीं दिखा।अंतरिक्ष में भी इसका असर दिखा। कुछ सैटलाइट कई घंटों तक कंट्रोल के बाहर हो गए। नासा के टीडीआरएस-1 कम्यूनिकेशन सैलटलाइट मे 250 से ज्यादा गड़बड़ियां आ गईं। स्पेस शटल डिस्कवरी में भी रहस्यमय समस्याएं पैदा हुईं। हालांकि, सौर तूफान थमने के साथ ही ये गड़बड़ियां भी रहस्यमय ढंग से दूर हो गईं।उसी साल, 16 अगस्त को एक अन्य सौर तूफान की वजह से टोरंटो स्टॉक एक्सचेंज में सभी तरह की ट्रेडिंग बंद हो गई।इस साल अप्रैल में हिंद महासागर में रेडियो सिग्नल हो गए थे फेलइस साल अप्रैल में भी सौर ज्वालाओं की वजह से हिंद महासागर के ऊपर शॉर्ट वेव रेडियो सिग्नल ठप हो गए थे। हालांकि, ये क्यूबेक ब्लैकआउट की तुलना में बहुत ही छोटी घटना थी। हिंद महासागर के ऊपर शॉर्टवेव रेडियो ब्लैकआउट की वजह M क्लास की सौर ज्वालाएं थीं। ये मध्यम श्रेणी को होती हैं जिनसे कुछ समय के लिए रेडियो सिग्नल प्रभावित हो सकते हैं। NASA के मुताबिक, सौर ज्वालाओं में सबसे ताकतवर ज्वालाएं X-क्लास की होती हैं। उसके बाद M-क्लास की सौर ज्वालाएं होती हैं जो X-क्लास के मुकाबले 10 गुनी छोटी होती हैं। उसके बाद सी-क्लास, बी-क्लास और ए-क्लास की सौर ज्वालाएं होती हैं जो इतनी कमजोर होती हैं कि धरती पर कोई खास असर नहीं डाल पाती हैं। सौर ज्वालाएं यानी सोलर फ्लेयर सूर्य पर हुए विस्फोटों से बनती हैं जो अंतरिक्ष में ऊर्जा, प्रकाश और हाई स्पीड वाले कणों को भेजती हैं।आदित्य-एल1 का उद्देश्यसोलर डिस्टर्बेंस की वजह से धरती पर बड़ी तबाही मच सकती है। क्यूबेक ब्लैकआउट उसका एक छोटा सा नमूना था। आदित्य-एल1 इन सोलर डिस्टर्बेंसेज के बारे में जो कुछ भी वैज्ञानिक जानकारी पहले से मौजूद हैं, उसमें कुछ और जोड़ेगा। यह सूरज से जुड़ीं रहस्यमय पहेलियों की गुत्थी सुलझाने में मदद कर सकता है। ‘सूर्ययान’ 125 दिन में धरती से तकरीबन 15 लाख किलोमीटर लंबी यात्रा करने के बाद लैग्रेंजियन बिंदु ‘एल1’ के आसपास एक प्रभामंडल कक्षा में स्थापित होगा, जिसे सूर्य के सबसे करीब माना जाता है। यह वहीं से सूर्य पर होने वाली विभिन्न घटनाओं, गतिविधियों का अध्ययन करेगा। लैग्रेंजियन पॉइंट पर धरती और सूर्य का गुरुत्वाकर्षण बल संतुलित होता है।आदित्य-एल1 पर लगे 7 उपकरणआदित्य-एल1 मिशन के प्रमुख उद्देश्यों में सूर्य के परिमंडल की गर्मी और सौर हवा, सूर्य पर आने वाले भूकंप या ‘कोरोनल मास इजेक्शन’ (सीएमई), धरती के नजदीक अंतरिक्ष मौसम वगैरह का अध्ययन करना शामिल है। वैज्ञानिक अध्ययन को अंजाम देने के लिए ‘आदित्य-एल1’ अपने साथ 7 वैज्ञानिक उपकरण लेकर गया है। इनमें से ‘विजिबल एमिशन लाइन कोरोनाग्राफ’ (VELC) सूर्य के परिमंडल और सीएमई की गतिशीलता का अध्ययन करेगा।VELC सूर्ययान का प्राथमिक उपकरण है, जो इच्छित कक्षा तक पहुंचने पर विश्लेषण के लिए हर दिन 1,440 तस्वीरें धरती पर स्थित केंद्र को भेजेगा। यह आदित्य-एल1 पर मौजूद ‘सबसे बड़ा और तकनीकी रूप से सबसे चुनौतीपूर्ण’ वैज्ञानिक उपकरण है।‘द सोलर अल्ट्रावॉयलेट इमेजिंग टेलीस्कोप’ यानी SUIT सूर्य के प्रकाशमंडल और वर्णमंडल की तस्वीरें लेगा और सौर विकिरण विविधताओं को मापेगा।‘आदित्य सोलर विंड पार्टिकल एक्सपेरिमेंट’ (ASWPEX) और ‘प्लाज्मा एनालाइजर पैकेज फॉर आदित्य’ (PAPA) नाम के उपकरण सौर पवन और ऊर्जा आयन के साथ-साथ ऊर्जा वितरण का अध्ययन करेंगे।‘सोलर लो एनर्जी एक्स-रे स्पेक्ट्रोमीटर’ और ‘हाई एनर्जी एल1 ऑर्बिटिंग एक्स-रे स्पेक्ट्रोमीटर’ (एचईएल1ओएस) विस्तृत एक्स-रे ऊर्जा क्षेत्र में सूर्य से आने वाली एक्स-रे फ्लेयर का अध्ययन करेंगे।‘मैग्नेटोमीटर’ नाम का उपकरण ‘एल1’ बिंदु पर अंतरग्रहीय चुंबकीय क्षेत्र को मापेगा। ‘आदित्य-एल1’ के उपकरण इसरो के अलग-अलग केंद्रों के सहयोग से स्वदेशी रूप से विकसित किए गए हैं।