पटना: बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (Nitish Kumar) बुधवार को दिल्ली पहुंचे। घोषित तौर पर उनके दिल्ली में दो कार्यक्रम हैं। पहला कि वे पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की पुण्यतिथि (Atal Bihari Vajpayee) पर उनके समाधि स्थल पर श्रद्धांजलि अर्पित करेंगे और दूसरा आम आदमी पार्टी के नेता और दिल्ली के पूर्व सीएम अरविंद केजरीवाल से मुलाकात करेंगे। चूंकि नीतीश ने विपक्षी एकजुटता की बुनियाद रखी है, इसलिए केजरीवाल से उनकी मुलाकात स्वाभाविक है। लेकिन अटल जी की समाधि पर जाकर उनका श्रद्धांजलि अर्पित करना कई रहस्यों को जन्म देता है। खासकर तब, जब अटल बिहारी वाजपेयी की पार्टी बीजेपी के नीतीश अब कट्टर विरोधी हो गए हैं।नीतीश के मानस में बसे हुए हैं अटलदरअसल नीतीश कुमार के मानस में अटल बिहारी वाजपेयी की स्मृति इस कदर हावी है कि शायद ही वे किसी मौके पर उनको भूले हों। बार-बार उनके मुंह से अटल जी का नाम निकलता है। सच कहें तो भाजपा के लोग अटल जी को जितना याद नहीं करते, उससे कहीं अधिक नीतीश कुमार करते हैं। बीजेपी से अलग होकर 2022 में नीतीश ने जब महागठबंधन के साथ बिहार में सरकार बनाई, तब भी विश्वासमत पर जवाब देते हुए उन्होंने अटल जी को याद किया था। उन्होंने नाम तो नहीं लिया, लेकिन उनके निशाने पर पीएम मोदी ही थे। उन्होंने बीजेपी के साथ अपने संबंधों को याद करते हुए अपने संबोधन में अटल बिहारी वाजपेयी के लिए श्रद्धेय शब्द का इस्तेमाल किया था। अटल – आडवाणी के जमाने की बीजेपी और मोदी-शाह के समय की बीजेपी का फर्क समझाया। उन्होंने कहा कि मौजूदा सरकार काम कम करती है, ढिंडोरा ज्यादा पीटती है। अटल जी ने काम किया था। नीतीश की सदाशयता देखिए कि उन्होंने बिहार में सड़कों का जाल बिछाने का श्रेय अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार को बड़ी ईमानदारी से दिया।पीएम मोदी की तारीफ के साथ खरगे को बताया ‘घमंडिया’, जीतनराम मांझी ने अटल का जिक्र कर नीतीश को दिया खास मैसेजकेंद्रीय मंत्री से सीएम तक के सफर में अटल का साथनीतीश कुमार 1996 में जब लोकसभा के सदस्य निर्वाचित हुए तो अटल जी की सरकार में उन्हें पहली बार केंद्रीय मंत्री बनने का मौका मिला। नीतीश वाजपेयी सरकार में कृषि मंत्री बनाए गए। अटल बिहारी वाजपेयी के कहने पर साल 2000 में बीजेपी ने नीतीश कुमार को समर्थन दिया। बीजेपी के सहयोग से 3 मार्च 2000 को नीतीश पहली बार बिहार के सीएम बने। हालांकि वे सिर्फ सात दिन ही सीएम रहे। हफ्ते भर में उन्हें बहुमत हासिल करना था। नीतीश को बीजेपी के अलावा 20 निर्दलीयों के समर्थन का भरोसा था। निर्दलीयों ने उनका साथ नहीं दिया और उन्हें विश्वास मत से पहले ही इस्तीफा देना पड़ा। हालांकि यह भी कहा जाता है कि नीतीश ने जानबूझ कर निर्दलीयों के समर्थन से परहेज किया, क्योंकि उनमें अधिकतर बाहुबली थे। जिनमें कई पर गंभीर अपराध के आरोप थे। नीतीश उनका समर्थन प्रत्यक्ष तौर पर नहीं लेना चाहते थे, इसलिए बहुमत परीक्षण से पहले ही उन्होंने इस्तीफा दे दिया था।Loksabha Chunav 2024: CM नीतीश ने बता दिया कैसे 2024 में BJP की प्लानिंग करेंगे ध्वस्त, तरकश से निकालेंगे 18 साल पुराना हथियारनीतीश के निशाने पर हमेशा मोदी और शाह ही रहते हैंइसी साल बाबा साहब भीमराव अंबेडकर जयंती पर जेडीयू कार्यालय में कार्यक्रम को संबोधित करते हुए नीतीश ने कहा था कि बीजेपी में सिर्फ दो लोगों की ही अब चलती है। उनका संकेत नरेंद्र मोदी और अमित शाह की ओर था। उन्होंने पहले और अब की बीजेपी का विरोधाभास भी बताया था। कहा था कि इनके पहले वाले जो नेता थे, उनको भी ये लोग नेता नहीं मान रहे हैं। अटल जी हमको कितना मानते थे, यह सबको पता है। नीतीश कुमार ने कहा था कि अटल जी को हम भी बहुत मानते थे। अब की बीजेपी सिर्फ हल्ला मचाती है। कोई काम नहीं होता है। बीजेपी को वोट मत दीजिए। तभी देश का विकास होगा और राज्य का भी विकास होगा। बिहार के सीएम ने कहा था कि केंद्र को हम कब से कह रहे थे कि हमें विशेष राज्य का दर्जा दो। नहीं न दे रहा है। हम लोग तो अपने ढंग से काम कर रहे हैं। अगर भाजपा के लोगों को वोट देंगे तो अपना नाश कर लेंगे। ग्रामीण इलाकों में सड़क बनाने का निर्णय किसने लिया? श्रद्धेय अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार ने लिया था। हम उस सरकार में थे। अटल जी की सरकार ने तय किया कि हम पूरे बिहार में गांव-गांव तक सड़क पहुंचाएंगे। बिहार में सड़कों का जाल अटल जी की ही देन है।Atal Bihari Vajpayee Punyatithi : आंखें बंद, हाथ जोड़ पीएम मोदी ने अटल बिहारी को किया याद, सदैव अटल स्मारक पर कौन-कौन पहुंचाक्या है नीतीश की अटल जी को श्रद्धांजलि के मायने?अटल जी के न रहने पर भी नीतीश कुमार के मन से उनकी स्मृति नहीं गई। उनके मन से न अटल बिहारी वाजपेयी बाहर हो पाए और न बीजेपी। किसी न किसी बहाने दोनों उनकी जेहन में बने रहे हैं। सच तो यह है कि नीतीश को बीजेपी से नहीं, बल्कि उसके दो नेताओं- पीएम नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के प्रति अरुचि है। अक्सर उनकी जुबान से बीजेपी और अटल जी की चर्चा अनायास होती रहती है। बीजेपी की भी कमोबेश यही स्थिति है। बीजेपी को भी नीतीश कुमार का मोह संवरण नहीं हो पा रहा।अमित शाह कहते रहते हैं कि नीतीश जी ने जिस कांग्रेस और आरजेडी का विरोध किया, दुर्भाग्यवश आज उन्हीं की गोद में जाकर बैठ गए हैं। हमारी समझ से इसके तीन मायने हो सकते हैं। अव्वल यह कि अटल जी के बहाने नीतीश कुमार पीएम नरेंद्र मोदी को नीचा दिखाना चाहते हों। दूसरा यह कि अटल के जमाने की बीजेपी का सॉफ्ट रुख बता कर वे बीजेपी में ही फूट डालना चाहते हों। तीसरा कि कहीं अब भी नीतीश के मन में बीजेपी से अलग होने की कसक तो नहीं है?