Opinion: सारा खेल पैसे का है! नोएडा की लिफ्ट में मौत सोसाइटी में रहने वालों के लिए खतरे की घंटी – noida lift death who is responsible aoa and builder saving money tension for high rise people

नई दिल्ली: अगर आप कभी लिफ्ट में फंसे नहीं हैं तो समझ ही नहीं पाएंगे कि उस बंद डिब्बे के भीतर कैसा लगता है। मिनटों की बात तो दूर सेकेंडों में ही कई लोगों की सांसें फूलने लगती हैं। धड़कनें बढ़ जाती हैं और आप दम घुटने वाली स्थिति में भी पहुंच सकते हैं। नोएडा में कुछ घंटे पहले पारस टिएरा सोसाइटी में लिफ्ट का तार टूटने से अंदर मौजूद 73 साल की सुशीला देवी की मौत हो गई। वह बुजुर्ग लिफ्ट में अकेली थी। उनके सिर के पीछे गंभीर चोट लगी। डॉक्टर की मानें तो दिल का दौरा पड़ने से महिला की मौत हुई। कल शाम साढ़े चार बजे नोएडा सेक्टर 137 की इस सोसाइटी में क्या हुआ होगा, आप ऐसे समझिए कि बहुमंजिला इमारत से लिफ्ट टूटकर बीच में कहीं फंस गई। दो महीने पहले बिल्डर से एओए यानी अपार्टमेंट ओनर्स एसोसिएशन ने हैंडओवर लिया था। उसके बाद पानी और बिजली की समस्या होने लगी। स्थानीय लोगों ने बताया है कि लिफ्ट का मेंटेनेंस ठीक नहीं है। नरेंद्र सिंह ने साफ कहा कि ये पूरी लापरवाही एओए की है। अगर आप टावर में नहीं रहते तो जानना जरूरी है कि AOA क्या और वह क्या काम करता है। सवाल यह भी है कि जब हर महीने निवासी मेंटेनेंस का भुगतान करते हैं तो सोसाइटी में कामकाज ठीक से क्यों नहीं होता है?AOA क्या है, लिफ्ट ठीक क्यों नहीं करातापहले एओए की कार्यप्रणाली के बारे में जान लीजिए। इसे आप निवासियों के द्वारा चुनी गई सरकार समझ लीजिए। जनता के पैसे से पूरी व्यवस्था चलती है। उसका एओए के करीब 9 लोग प्रबंधन करते हैं। इसमें बाकायदा चुनाव होता है। हर साल नई एओए बनती है। इससे पहले तक सोसाइटी में सफाई, गार्ड, बागवानी और दूसरे कार्यों का रखरखाव बिल्डर करता है। कहने के लिए मेंटेनेंस का काम है लेकिन इसमें अच्छा पैसा जमा होता है। नोएडा की सोसाइटियों में 40-50 लाख से लेकर एक करोड़ रुपये तक हर महीने आते हैं। ऐसे में बिल्डर इस पर नजरें गड़ाए रहता है। मेंटेनेंस का रखरखाव करने के लिए व्यवस्था बनाता है। 60-70 या उससे भी ज्यादा गार्ड तैनात किए जाते हैं। बागवानी के लिए अलग टीम होती है। सफाई कर्मी, इलेक्ट्रीशियन और दूसरे काम के लिए भी तैनाती होती है। इसी में एक काम होता है लिफ्ट मेंटेनेंस का। नियम की बात करें तो लिफ्ट, आग बुझाने वाले उपकरणों और डीजी की समय-समय पर सर्विसिंग होती रहनी चाहिए। जिस कंपनी की लिफ्ट आप लगवाते हैं वो मेंटेनेंस की जिम्मेदारी भी उठाती है लेकिन यहां एक पेच है।कुछ ऐसा ही हाल गौर सिटी-2 की सोसायटी आर सिटी रिजेंसी पार्क का भी है। लगभग हर टावर में सिर्फ एक लिफ्ट चलती है, जबकि 15-16 मंजिला ऊंची इमारतें भरी हुई हैं। आए दिन कोई न कोई लिफ्ट खराब ही रहती है। मेंटेनेंस न जाने किन लोगों को बुलाकर ठीक करवाता है कि 2-4 दिन में ही हालात फिर खराब हो जाते हैं। आए दिन कोई न कोई लिफ्ट में फंसा मिलता है। यह बच्चों के लिए अधिक परेशानी वाला है। रेजिडेंट परेशान होते हैं और बार-बार शिकायत करते हैं, लेकिन मेंटेनेंस उसी बैलगाड़ी की चाल में काम करने में विश्वास रखती है।रविंद्र कुमार, निवासी, आर सिटी रिजेंसी पार्क, गौर सिटीलिफ्ट मेंटेनेंस का खेल समझिएग्रेटर नोएडा वेस्ट की एक सोसाइटी में बनी एओए के पदाधिकारी की मानें तो उनसे पहले बनी एओए ने लिफ्ट मेंटेनेंस में बड़ा घोटाला किया था। हुआ यूं कि लिफ्ट जॉनसन की है और उन्हें मेंटेनेंस का काम किसी दूसरी कंपनी को दे दिया। आजकल आपने देखा भी होगा कि 499 में एसी में गैस भरने वाले आ जाते हैं। कुछ उसी तरह का सस्ता इंतजाम लिफ्ट में भी कर दिया गया। इसका असर यह हुआ कि लिफ्ट में आवाज आने लगी। जल्द ही झटके भी लगने लगे। बाद में नई एओए ने दावा किया कि उसने सब ठीक करा दिया है। नई एओए के पदाधिकारी ने बताया कि जॉनसन के इंजीनियरों ने बताया है कि इसमें चाइनीज चीजें लगा दी गई थीं जिसकी वजह से लिफ्ट खराब होने लगी। यह गड़बड़झाला सिर्फ लिफ्ट में नहीं होता, गार्ड 60 कागज में और जमीन पर 5 कम होते हैं। आरोप यह भी लगते हैं कि एओए के लोग गार्ड एजेंसी से कमीशन भी खाते हैं। लिफ्ट सर्विसिंग कब हुई थी, इसकी सूचना चस्पा होनी चाहिए लेकिन अपनी धांधली छिपाने के लिए एनसीआर की सोसाइटियों में सब बंद हो गया है।आप 24 घंटे में देखिए तो 30 मंजिला बिल्डिंग में 1-2 लिफ्ट खराब ही रहती है। बैलेंसिंग भी लेवल में नहीं है इसका मतलब कुछ समस्या है। आवाज भी आती है। एओए और बिल्डर को मिलकर समाधान करना चाहिए। एओए को बोलिए तो कहते हैं कि पिछले वाले ने सारा सामान खराब लगा दिया। ब्लेम गेम नहीं, जनता को समाधान चाहिए वरना घटनाएं कहीं भी हो सकती हैं।अरविंद कुमार, पंचशील ग्रीन्स, ग्रेटर नोएडा वेस्टवैसे, भी 30 मंजिला बिल्डिंग अब एनसीआर में आम बात है। 26-27वें या और ऊपर रहने वाले लोगों के लिए लिफ्ट ही सहारा है। वे चाहकर भी सीढ़ी से रोज उतर नहीं सकते हैं। बुजुर्ग हैं तब तो सोचा भी नहीं जा सकता है। ऐसे में सोसाइटी में प्राथमिकता के लिहाज से लिफ्ट सबसे ऊपर है लेकिन बिल्डर और एओए के कमाने के चक्कर में सारी व्यवस्था का कबाड़ा कर दिया जाता है। आजकल लिफ्ट का गेट ऑटोमेटिक खुलने का सिस्टम है लेकिन पैसे बचाने के चक्कर में उसका इस्तेमाल नहीं किया जाता।लिफ्ट का झंझट रोज का हैपिछले 24 घंटे में ही एक्सटेंशन की दो और सोसाइटियों में लिफ्ट फंसी। पंचशील ग्रीन्स वन में लिफ्ट दो फ्लोर के बीच फंस गई थी। काफी मशक्कत के बाद लोगों को निकाला गया। इसी तरह पास की एक सोसाइटी में लिफ्ट में बच्चे फंस गए थे। दुखद यह है कि निवासी कुछ कर भी नहीं पाते। व्हाट्सएप ग्रुप में गुस्सा निकालते हैं, नारेबाजी होती है लेकिन घर से दूर कमाने के लिए शहर आए लोग EMI के चंगुल में ऐसा फंसे हैं कि नौकरी करें या व्यवस्था सही कराएं। इसी का फायदा बिल्डर और एओए उठाते हैं। हाल यह है कि जब लिफ्ट खराब होती है तो मेंटेनेंस का नंबर नहीं उठता है। वैसे भी लिफ्ट के अंदर से फोन कम ही लग पाता है। गार्ड के पास अलार्म बजता है लेकिन वह भी पास वाले टावर के गार्ड से राजनीति करने या मोबाइल पर वीडियो देखने में ज्यादा व्यस्त दिखते हैं। प्राधिकरण और पुलिस भी बस दूर से बात करती है। नेताओं की बात ही मत कीजिए।नियम जान लीजिएपारस टिएरा सोसाइटी में 24 टावर की लिफ्ट टूटी थी। कल जब एओए प्रेसिडेंट को लोगों ने घेर लिया तब उन्हें बचाने के लिए पुलिस आई। स्थानीय निवासियों ने कैमरे के सामने बताया कि 24, 25, 27 कई टावरों की लिफ्ट खराब है। कभी भी, कुछ भी हो सकता है। पहले एएमसी होती थी तब वहां चस्पा रहता है कि लिफ्ट सर्विस इंजीनियर कौन है, पहले कब सर्विसिंग हुई थी लेकिन अब कुछ नहीं होता है। कोई भी सूचना नहीं है।इस लिहाज से देखिए तो नोएडा, दिल्ली ही नहीं पूरे एनसीआर की सोसाइटियों में रहने वाले लोगों के लिए खतरे की घंटी है। लिफ्ट ठीक करवाने के लिए पूरी कोशिश कीजिए। एओए हो या बिल्डर, लिफ्ट के बिना टावर में रहना किस काम का। पैसे के खेल को बंद करना जरूरी है। अगर लोग मेंटेनेंस दे रहे हैं तो व्यवस्था 100 प्रतिशत चाक-चौबंद क्यों नहीं? अथॉरिटी को भी इस दिशा में सोचना होगा वरना कभी बड़ा हादसा हो सकता है।