Opposition Mumbai Meeting News In Hindi

नई दिल्ली: विपक्षी गठबंधन I.N.D.I.A की तीसरी बैठक मुंबई में चल रही है। 26 दलों के इस गठबंधन की पहली बैठक के बाद ही इसके एक मजबूत साथी एनसीपी दो फाड़ हो गई। खैर, इस कारनामे में तो सत्ताधारी बीजेपी का हाथ होने का दावा किया जाता है, लेकिन पश्चिम बंगाल में तो खुद ही सिर फुटव्वल हो रहा है। साथी दलों के कमजोर होने की बात अलग है, लेकिन जब बात चेहरे की होती है तो बहुत बड़ा प्रश्नचिह्न खड़ा हो जाता है और जवाब दूर-दूर तक मिलता नहीं दिखता है। क्षेत्रीय दलों की अपनी-अपनी महत्वाकांक्षा और उनके बीच घोर वैचारिक मतभेद, विपक्षी एकजुटता की राह बहुत कठिन बनाए है। दूसरी तरफ, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बेहद प्रभावी नेतृत्व में बीजेपी की अगुवाई वाले सत्ताधारी गठबंधन एनडीए की कमजोरी के कोई संकेत नहीं मिल रहे। यही वजह है कि खुद पीएम मोदी ने इस बार स्वतंत्रता दिवस के भाषण के दौरान लाल किले के प्रचीर से कह दिया- आएगा तो मोदी ही। सवाल है कि क्या विपक्ष का नया गठबंधन I.N.D.I.A मोदी के इस हुंकार को गलत साबित कर पाएगा? क्या विपक्ष इस बार मोदी का विजय रथ रोक देगा?मतदाताओं का मन मोहे तो कौन, कैसे?कहते हैं किसी रजानीतिक दल के ‘चाल, चरित्र, चेहरा’ को लेकर मतदाताओं के मन में जो धारणा बैठ जाती है, उसी से उसका भविष्य तय होता है। यह नियम दलों के गठबंधन पर भी लागू होता है। अच्छी बात है कि मतदाताओं की धारणा बदलने में बहुत देर नहीं लगती। कोई एक बड़ा मुद्दा हाथ लगा और उसे ठीक से संभाल लिया तो मतदाताओं का मिजाज तुरंत बदल जाता है। तो क्या विपक्षी गठबंधन में इतनी कुव्वत है कि वह न केवल ऐसे किसी बड़े मुद्दे की तलाश कर सके बल्कि उसे अपने फायदे में कायदे से उछाल भी सके?यही सवाल विपक्ष की सबसे बड़ी परेशानी का सबब है जिसका कोई निश्चित और ठोस जवाब नहीं मिल पा रहा है। बीजेपी और उसका पूरा तंत्र छवि निर्माण कार्यक्रमों में विपक्ष के मुकाबले बहुत आगे है। उसे मोदी सरकार की कुछ ठोस उपलब्धियों का बड़ा सहारा मिल जाता है। दूसरी तरफ विपक्ष के किसी दल में इतनी सलाहियत नहीं दिख रही कि वो कोई ऐसा मुद्दा उठा सके जो सीधे जनता के दिलों में पैठ जाए। इसकी एक बड़ी वजह विपक्ष में एक ऐसे चेहरे का घोर अभाव का होना है जो अपने व्यक्तित्व के जादू से जनता को कनेक्ट कर सके। घूम-फिरकर एक राहुल गांधी का चेहरा सामने आता है, लेकिन उस पर भी आम सहमति नहीं बनती दिख रही है। खुद कांग्रेस ही चुप्पी साधे रहना ही ठीक समझ रही है।NDA के बेहद करीब पहुंचा I.N.D.I.A., महज 2% का फासला, जानिए सर्वे में किसको कितनी सीटपूरब-पश्चिम, उत्तर-दक्षिण; विपक्ष को कहां से कितनी उम्मीद?देश के चौहद्दी में चारों दिशाओं में नजर दौड़ाएं तो दक्षिण को छोड़कर विपक्षी गठबंधन कहीं पर्याप्त मजबूत नहीं दिखता है। सात बहनों का पूरब विपक्ष बुरी तरह एनडीए के हाथों खो चुका है। असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्व सरमा तो बीजेपी के ब्रैंड ही बन गए हैं। मणिपुर में हुई हिंसा से वहां एन. बीरेन सिंह की बीजेपी सरकार पर उंगलियां जरूर उठी हैं, लेकिन सवाल फिर वही है कि क्या विपक्ष के पास इतनी कुव्वत है कि वो चुनावों में इस मुद्दे को अपने फायदे में भुना सके? इसी तरह, पश्चिम के प्रदेशों में पंजाब और राजस्थान के सिवा किसी भी प्रदेश में विपक्ष की सरकार नहीं है।उत्तरी राज्यों में दिल्ली, हिमाचल प्रदेश और बिहार में विपक्ष की सरकार जरूर है, लेकिन अगले चुनाव में बढ़त की गुंजाइश सिर्फ बिहार में ही दिख रही है। प. बंगाल में टीएमसी का दबदबा है, लेकिन पिछली बार बीजेपी ने वहां अच्छा प्रदर्शन किया। देखना होगा कि क्या वहां गठबंधन के बाद टीएमसी और उसके सहोयगी मिलकर बीजेपी की सीटें छीन पाएंगे या नहीं।महाराष्ट्र में विपक्ष को झटके पर झटकाराष्ट्रीय स्तर पर इन समस्याओं के अलावा क्षेत्रीय स्तर पर भी मुश्किलों का अंबार है। महाराष्ट्र में एनसीपी टूट गई। विपक्षी खेमे की मुख्यतः महाराष्ट्र आधारित पार्टी के टूटने का यह दूसरा उदाहरण था। इससे पहले उद्धव ठाकरे की पार्टी शिवसेना का बड़ा हिस्सा अलग होकर सत्ताधारी गठबंधन एनडीए के धड़े में चला गया। इस तरह, विपक्ष के कब्जे से एक मजबूत राज्य महाराष्ट्र निकल गया। बात सिर्फ महाराष्ट्र की सत्ता छिनने तक सीमित नहीं है, वो तो बहुत पहले हो चुका था, एनसीपी की टूट से विपक्ष के एक कद्दावर चेहरे शरद पवार की पावर अचानक बहुत कम हो गई। कितनी, इसका जवाब खुद पवार के रुख से ही पता चल जाता है।भतीजे अजीत पवार की अगुवाई में एनसीपी के कई बड़े चेहरे पार्टी से अलग हो गए तब चाचा शरद पवार ने कहा था कि उनमें जान बाकी है और वो जल्द ही पार्टी को फिर से खड़ी कर देंगे। लेकिन अब वो कह रहे हैं कि पार्टी तो टूटी ही नहीं है, बस कुछ लोगों ने अलग धारा पकड़ी है। यह उनकी बेचारगी और कमजोरी का ही प्रतीक है।नरेंद्र मोदी के सामने प्रधानमंत्री का चेहरा कौन? जवाब से क्यों बच रहे हैं I.N.D.I.A. के नेता, मुंबई मीटिंग से पहले जानिए रणनीतिप. बंगाल में सुलह के कोई संकेत नहींविपक्ष के हिस्से के एक मजबूत राज्य पश्चिम बंगाल की बात करें तो वहां सत्ताधारी टीएमसी का वामदलों से छत्तीस का आंकड़ा है। लेकिन हैरत की बात है कि राष्ट्रीय गठबंधन में दोनों दल शामिल है। यही वजह है कि गठबंधन की घोषणा के बावजूद दोनों दल एक-दूसरे के खिलाफ आग उगलते रहते हैं। यहां तक कि कांग्रेस पार्टी भी मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और उनकी सरकार पर निशाना साधने का कोई मौका नहीं चूकती है। अगर क्षेत्रीय दलों को क्षत्रप माना जाए तो कांग्रेस पार्टी इनकी छतरी है जिनके नीचे सभी एकजुट हुए हैं। अगर प्रमुख पार्टी ही गठबंधन के दूसरे दिग्गज के साथ तालमेल नहीं बिठा पा रही है तो विपक्ष की मुश्किल समझी जा सकती है।तमिलनाडु में बढ़त की गुंजाइश ही नहींविपक्ष का एक और मजबूत किला है, दक्षिण का राज्य तमिलनाडु। वहां द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (DMK) का शासन है। पार्टी ने 2019 के लोकसभा चुनाव में डीएमके ने 24 सीटों पर उम्मीदवार उतारे और सभी के सभी जीत गए। उसके विरोधी दल एआईएडीएमके 22 सीटों पर चुनाव लड़कर सिर्फ एक सीट जीत पाई थी। ध्यान रहे कि एआईएडीएमके एनडीए का हिस्सा है और प्रदेश में इस गठबंधन के हिस्से यही एक सीट आई थी जबकि विपक्षी गठबंधन ने कुल 39 में 38 सीटें लपक ली थीं। यानी तमिलनाडु में विपक्ष के पास अधिकतम एक सीट बढ़ाने की गुंजाइश है।तेलंगाना की बीआरएस विपक्षी गठबंधन से दूरदक्षिण के एक और राज्य तेलंगाना की बात करें तो वहां के मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव (केसीआर) कुछ महीनों तक मोदी सरकार और बीजेपी के मुखर विरोधी हुआ करते थे। केसीआर भी ममता बनर्जी की तरह केंद्र पर तीखा हमला करते थे और नीतीश कुमार की तरह घूम-घूमकर विपक्षी दलों को एक मंच पर लाने की कवायद में जुटे थे। लेकिन अचानक उन्होंने इन सारी कवायदों से खुद को किनारा कर लिया। फिलहाल वो विपक्षी गठबंधन में शामिल नहीं हैं।यूपी की राजनीति में अकेली पड़ती जा रही है कांग्रेस? सबसे बड़े राज्य में सबसे बड़े विपक्षी दल का क्या होगा भविष्ययूपी, एमपी, राजस्थान जैसे बड़े प्रदेशों में क्या होगा?उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और राजस्थान- ये तीन ऐसे बड़े प्रदेश हैं जहां से लोकसभा की 134 सीटें हैं। विपक्ष इन तीनों प्रदेशों में अपना प्रदर्शन किस हद तक सुधार पाएगा, इसे लेकर कुछ कहा नहीं जा सकता है। उत्तर प्रदेश में पिछली बार सपा-बसपा का गठबंधन हुआ तो बसपा के हिस्से 10 सीटें आ गई थीं। इस बार बसपा गठबंधन में शामिल नहीं है। वहीं, मध्य प्रदेश और राजस्थान में बीजेपी को एकतरफा जीत मिली थी। तो क्या विपक्ष इस बार अपनी एकजुटता के दम पर बाजी पलट पाएगा?विपक्ष करे तो क्या?ऐसे बहुत से सवाल हैं जिनके जवाब में विपक्ष की कमजोरियां ही झलकती हैं। ऊपर से पीएम मोदी के चेहरे पर जनता का अटूट विश्वास उसकी मुश्किलें और बढ़ा रहा है। अमेरिकी थिंक टैंक प्यू रिसर्च के हालिया सर्वे में सामने आया कि 80 फीसदी भारतीय नरेंद्र मोदी को ही फिर से प्रधानमंत्री बनाना चाहते हैं। वहीं, 70 प्रतिशत भारतीयों का मानना है कि मोदी सरकार में भारत का दुनिया में मान बढ़ा है। इसका साफ संदेश है कि मोदी के रूप में सत्ताधारी गठबंधन के पास बहुत मजबूत चेहरा है। हालांकि, राहुल गांधी बीते कई वर्षों से प्रयास में हैं कि मोदी के व्यक्तित्व पर दाग लगाया जा सके। वो कभी राफेल युद्धक विमान खरीद में घोटाले की बात करते हैं तो कभी उद्योगपति गौतम अडानी का मुद्दा उछालते हैं। लेकिन उन्हें इस प्रयास में सफलता दूर-दूर तक हासिल होती नहीं दिख रही है। जवाब में बीजेपी उनकी देशविरोधी छवि बनाने में जुटी रहती है। उन पर विदेशों और एंटि-इंडिया ब्रिगेड से मिलीभगत का आरोप मढ़ा जाता है। ऐसे में सवाल है कि आखिर विपक्ष करे तो क्या?I.N.D.I.A गठबंधन की ताकतेंयह एक बड़ा गठबंधन है जिसमें 26 दल शामिल हैं। इससे उसे देश के विभिन्न हिस्सों में व्यापक आधार मिलता है। कांग्रेस, टीएमसी, आप, डीएमके जैसे मजबूत दलों के एकसाथ होने से चुनावों में फर्क पड़ सकता है क्योंकि इन दलों के पास एक मजबूत संगठन और वोट बैंक है। इसके सिवा, गठबंधन ने महंगाई, बेरोजगारी और किसान जैसे मुद्दों पर एकजुट होकर लड़ने का संकल्प लिया है। ये मुद्दे आम लोगों के लिए महत्वपूर्ण हैं और इससे गठबंधन को लोकप्रियता हासिल करने में मदद मिल सकती है।