PM Modi speech from red-fort on swatantrata diwas 2023

प्रसून जोशी

आज हम एक अभूतपूर्व युग से गुजर रहे हैं। एक ऐसी घड़ी जो पूरी तरह से अद्वितीय है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने संबोधन में लाल क़िले से इस बार इस युग से जुड़े अवसरों और चुनौतियों को विस्तार से देश के सामने प्रस्तुत किया। उन्होंने सिर्फ समस्याओं की बात नहीं की, उनके समाधान और देश के संकल्प की बात भी की। उन्होंने गुलामी के अतीत को पीछे छोड़ कर भविष्य की भव्यता की बात की।
हम मानव सभ्यता के इतिहास से बहुत कुछ सीख सकते हैं, पर आज हमारे सामने जो अवसर हैं वे पहले कभी नहीं थे। यह एक नया इतिहास लिखने का समय है। जब कठिन परिस्थितियां आती हैं तो या तो वे आपको तोड़ देती हैं और आप उनके समक्ष थक कर घुटने टेक देते हैं या फिर आगे बढ़कर आप उन्हें अंगीकार करते हैं। और, मुश्किलों से आंख मिलाना ही हमारे देश की रीति है जो प्रधानमंत्री मोदी के संबोधन में स्पष्ट था।
कल के लिए संघर्ष
एक ओर आंधी है, चुनौती है, झंझावात हैं पर दूसरी ओर दृढ़ संकल्प हैं, निर्णय हैं, नया सूरज है, नया कल भी है। और, हमें आने वाले कल के लिए संघर्ष करना है। हिम्मत को, जीवट को जिताना है, पारदर्शिता से अपने भाषण में प्रधानमंत्री ने इस जीवट को परिलक्षित किया।
वर्षों से हमारे देश को विश्व की ओर ताकने की आदत पड़ गई थी कि पहले देखना कि अन्य देश क्या कर रहे हैं और फिर अपने निर्णय लेना। यह एक प्रकार की ग़ुलामी ही तो थी पर आज का भारत ऐसे नहीं सोचता, संकट की घड़ी में हम अपने समाधान स्वयं सोचने की क्षमता रखते हैं। हम मिलकर वे निर्णय लेते हैं जो हमारे देश के लिए सही हों, उसके लिए हम विश्व का मुंह नहीं ताकते।
जिन्हें भारत पर विश्वास है, अपनी संस्कृति अपनी बुद्धि और विवेक पर अभिमान है, उन्हें कहीं अंतर में अपनी शक्ति का भान है, वे जानते हैं कि भारत आज पीछे पीछे चलने की मानसिकता से मुक्ति चाहता है। देश के प्रधानमंत्री ने इस महान यात्रा में पूरे देश से अपनी भूमिका निभाने की ओर भी संकेत दिया।
यह जागृत भारत है, जो खुली आंखों से सपने देखता और चुनौतियों से दो हाथ करने के लिए आगे बढ़ता है। हमने वर्षों से सुना कि इंडिया तो जुगाड़ से चलता है, इस शब्द जुगाड़ के हल्के प्रयोग से आज हमें आपत्ति होनी चाहिए क्योंकि यह भारत के सामर्थ्य और भारत के गौरवशाली अतीत के साथ न्याय नहीं है। यह मात्र जुगाड़ की नहीं अविष्कार की भूमि है। आज हमारे युवा, हमारे वैज्ञानिक बार-बार यह सिद्ध कर रहे हैं, स्पष्ट हो रहा है कि हमारा देश विश्व को राह दिखाने की शक्ति रखता है।
प्रधानमंत्री ने अपने भाषण में उन कमियों की भी बात की जो हमें पीछे खींच सकती हैं। भ्रष्टाचार, परिवारवाद और तुष्टीकरण के नकारात्मक प्रभाव के प्रति उन्होंने देश को चेताया जिसे हमें भूलना नहीं चाहिए क्योंकि वे समस्याएं जिन पर हम अक्सर बात करते हैं और उनसे लड़ते हैं, उनसे कहीं बड़ी वे समस्याएं होती हैं जिन्हें हम जीवन का हिस्सा मान लेते हैं और कहीं अवचेतन में भी उनसे लड़ना छोड़ देते हैं।
साथ ही, भारत के पास एक शक्ति है जो हमें विश्व से अलग बनाती है और वह है हमारी आध्यात्मिक शक्ति। जब हर तरफ से बाण चल रहे हों तब और मुखरित हो जाती है हमारी ये आत्मिक शक्ति, ये इनर स्ट्रेंथ। यह शक्ति ही है जो हमें संबल देती है और जिसके होने से हमारे अंदर से पराजय की भावना समाप्त हो जाती है। और, एक विजय उठ खड़ी होती है। तब हम एक दूसरे की शक्ति बन जाते हैं, तब करोड़ों भुजाएं, करोड़ों मस्तक एकजुट हो कर एक स्वर में बढ़ चलते हैं। आज हमें उस शक्ति को भी जागृत रखना है।
जब हम आत्मनिर्भर भारत की बात करते हैं तब महत्वपूर्ण है कि हम उसका अर्थ सिर्फ उद्योग से ही जोड़ का संतुष्ट न हो जाएं। यह आत्मविश्वास का भी द्योतक है। एक ऐसे भारत का आत्मविश्वास जिसकी भुजाओं में बल है, जिसकी आंखों में नया कल है, जिसे अपनी सोच पर विश्वास है, जहां युवा ऊर्जा एक दिशा पा रही है। एक ऐसा भारत जिसे आज अपने हित में कदम उठाने में संकोच नहीं है। जिसमें कोई आएगा और बताएगा का भाव नहीं है। जिसमें हर भारतीय कर सकता है का बोध है। जिसको अपने होने पर अभिमान है। जिसमें अपने अस्तित्व को ले कर हीन भावना नहीं है। जिसके पास एक दृष्टि है जो विश्व को भी दिशानिर्देशन दे सकता है।
प्रधानमंत्री के संदेश में उस भारत का चित्र उभरता गया जो इतिहास से चुन-चुन कर अपनी हार के प्रसंगों को नहीं दोहराता। अपनी जीत का, अपनी शक्ति का स्मरण करता है। जहां देशवासी एक दूसरे को सिर्फ अपनी सीमाओं का बोध नही कराते अपने सामर्थ्य का एहसास भी कराते है। इसी सामर्थ्य के बल पर भारत विश्व की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने का लक्ष्य रखता है।
एक नया आत्मविश्वास
आज हर भारतीय को परिवर्तन की पदचाप सुनाई देती है। इसमें कोई संदेह नहीं कि हमें ऐसा देश ही चाहिए जो अभावों को देख कर बस अजस्ट कर लूंगा न कहे, बल्कि नए रास्ते निकालने की बात करे। भारत जहां का युवा संघर्षों से घबराकर देश छोड़ने की बात न करे, अपने देश की प्रगति के लिए काम करना चाहे। और, यह परिवर्तन आज हम देख सकते हैं। हम देख सकते हैं एक ऐसे भारत का उदय जो विश्व से सीखने को हर पल तैयार तो है पर साथ ही विश्व को सिखाने का भी विश्वास रखता है।
हम सब देख देख सकते हैं।
एक नए प्रभात की लालिमा,
एक नए आत्मविश्वास का उदय।
(लेखक कवि, गीतकार और पटकथा लेखक हैं)
डिसक्लेमर : ऊपर व्यक्त विचार लेखक के अपने हैं