नई दिल्लीलोक जनशक्ति पार्टी (लोजपा) पिछले दिनों दो गुटों में बंट गई। इसके बाद पशुपति कुमार पारस को संसदीय दल के नेता के रूप में मान्यता दी गई जिसका चिराग पासवान ने विरोध किया और लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला से इसपर पुनर्विचार का आग्रह किया। पार्टी का यह विवाद अब निर्वाचन आयोग के पास भी पहुंच गया है। इसी से जुड़े संवैधानिक पहलुओं पर लोकसभा के पूर्व महासचिव पीडीटी आचार्य ने अपनी राय रखी है।नेता चुनने में लोकसभा अध्यक्ष की क्या भूमिकानेता चुनने में लोकसभा अध्यक्ष की क्या भूमिका होती है। इस पर पीडीटी आचार्य का कहना है कि कोई भी पार्टी अपने नेता को चुनती है और फिर लोकसभा अध्यक्ष को सूचित करती है , कि उसने फलां व्यक्ति को नेता चुना है। इसमें लोकसभा अध्यक्ष की भूमिका नहीं होती है। उनके पास सिर्फ सूचना आती है और फिर लोकसभा अध्यक्ष के कार्यालय की ओर से इसे रिकॉर्ड में डाल दिया जाता है। लोजपा के छह में से पांच सांसदों ने नया नेता चुना और लोकसभा अध्यक्ष को सूचित किया। इसके बाद रिकॉर्ड में लोजपा नेता का नाम बदल दिया गया। यह सामान्य प्रक्रिया के तहत हुआ।LJP Crisis: लोजपा में खींचतान के बीच बोले लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला- दूसरे पक्ष से कोई आपत्ति आती है तो देखेंगेपार्टी के संविधान की बात निर्वाचन आयोग देखेगापशुपति पारस को नेता के तौर पर मान्यता देने के लेकर उनका कहना है कि लोकसभा अध्यक्ष की कोई भूमिका नहीं होती है। इसमें निर्वाचन आयोग की भूमिका होती है। पार्टी के संविधान की बात निर्वाचन आयोग देखेगा। लोकसभा सचिवालय तो पार्टियों की ओर से भेजी गई सूचना पर अमल करता है। लोकसभा अध्यक्ष इसमें यह नहीं देखते हैं कि कितने लोग किसके साथ हैं, यह सब चुनाव इकाई देखेगी।LJP Crisis Latest Update: चाचा के लिए भतीजे को अध्यक्ष पद से हटाना आसान नहीं! चिराग चल चुके बड़ा दांवपार्टी के छह में से पांच सांसदों ने प्रस्ताव पारित कर अपने संसदीय दल नेता को बदल दिया। लोकसभा अध्यक्ष का दायरा सिर्फ संसदीय दल तक ही होता है। अब उन्होंने (पासवान) आग्रह किया है तो लोकसभा अध्यक्ष इसका सत्यापन करेंगे। वह सांसदों के हस्ताक्षर देखेंगे। वह कोई अंतिम निर्णय निर्वाचन आयोग के फैसले के बाद ही करेंगे।किसका होगा अंतिम निर्णयपीडीटी आचार्य ने कहा कि अतीत में ऐसा कोई उदाहरण नहीं मिलता है कि किसी पार्टी के संसदीय दल के नेता के तौर पर कुछ समय के लिए किसी को मान्यता नहीं दी गई हो। लोकसभा अध्यक्ष फौरी तौर पर कोई निर्णय करने के लिए पहले के पत्र (पारस गुट) के साथ जाते हैं या फिर दूसरे पत्र (चिराग गुट) के साथ जाते हैं, यह सब उनके विवेक पर निर्भर है। इतना जरूर है कि असली लोजपा कौन सा गुट है, इसका फैसला होने के बाद ही संसदीय दल के नेता पर अंतिम निर्णय होगा। उदाहरण के तौर पर, अगर निर्वाचन आयोग कहता है कि पासवान का गुट ही असली लोजपा है तो फिर पासवान लोकसभा अध्यक्ष को लिखकर सूचित करेंगे कि निर्वाचन आयोग ने उनके पक्ष में फैसला दिया है और सदन में वह अपनी पार्टी के नेता हैं। इसके बाद लोकसभा अध्यक्ष इसे स्वीकार करेंगे और यही अंतिम निर्णय होगा।LJP Controversy : चिराग की बैठक से पहले पारस ने बनाई नई राष्ट्रीय कार्यकारिणी, बाकी सभी कमेटियां भंगफैसले में कितना वक्तनिर्वाचन आयोग विधायकों और सांसदों का संख्या बल देखेगा। इसके आलावा यह भी देखेगा कि पार्टी के पदाधिकारियों का संख्या बल के किसके साथ है। वह दोनों पक्षों को सुनेगा। इसके बाद फैसला करेगा कि कौन सा गुट असली लोजपा है। अगर निर्वाचन आयोग को लगता है कि दोनों पक्षों के दावे में सत्यता नहीं है तो फिर वह पार्टी का नाम और चुनाव चिह्न फ्रीज भी कर सकता है। फैसले में कितना समय लग सकता है, इस बारे में कुछ नहीं कहा जा सकता क्योंकि आयोग को सभी पक्षों को सुनना होगा और यह एक लंबी प्रक्रिया भी हो सकती है।