Protection Of Elderly Parents And Senior Citizens,Haq Ki Baat: जिन बच्चों के लिए जिंदगीभर कमाया, अगर बुढ़ापे में बेटे-बहू ही करने लगे तंग तो…जानिए हक की बात – can elderly parents evict son and daughter in laws know the rights of aged parents

नई दिल्ली : मां-बाप खून-पसीने की कमाई से एक-एक पाई जोड़कर बच्चों की परवरिश करते हैं। पढ़ाई-लिखाई से लेकर उनकी तमाम जरूरतों और शौक को पूरा करने के लिए अपनी पूरी जवानी खपा देते हैं। बच्चों का मुस्तकबिल आज से बेहतर हो, इसके लिए हर जतन करते हैं। लेकिन अगर बुढ़ापे में बहू-बेटे ही तंग करने लगे तो? बुजुर्ग को उसके ही घर में बेगाना कर दें तो? अफसोस की बात है कि ऐसे कई मामले देखने, सुनने और पढ़ने को मिल जाते हैं। बुजुर्ग दंपती कई बार लोकलाज के डर से कि समाज क्या कहेगा तो कई बार अपने हक से वाकिफ न होने की वजह से चुपचाप अत्याचार सहते रहते हैं। लेकिन ऐसे मामलों में कानून बहुत साफ है। बुजुर्गों को गरिमा के साथ जीने का अधिकार है और उनकी देखभाल करना बच्चों और रिश्तेदारों का न सिर्फ फर्ज है बल्कि कानून के हिसाब से वो इसके लिए बाध्य भी हैं। अगर बुजुर्ग चाहे तो घर और अपनी संपत्ति से बहू-बेटे या संबंधित रिश्तेदार को बेदखल कर सकता है। राजस्थान हाई कोर्ट ने ऐसे ही एक मामले में दिए अपने हालिया फैसले में कहा है कि बुजुर्ग अपने बेटे, बहू समेत बाकी परिजनों को संपत्ति से बेदखल कर सकते हैं। ‘हक की बात’ (Haq Ki Baat) के इस अंक में बात करते हैं बुजुर्गों के अधिकारों की, उस पर समय-समय पर आए बड़े अदालती फैसलों की।बेटे-बहू समेत रिश्तेदारों को संपत्ति से निष्कासित कर सकते हैं बुजुर्ग : राजस्थान हाई कोर्टराजस्थान हाई कोर्ट ने अपने एक हालिया फैसले में कहा है कि कोई भी बुजुर्ग अपने बेटे-बहू समेत अपने किसी भी परिजन को संपत्ति से निष्कासित कर सकते हैं। चीफ जस्टिस एजी महीस और जस्टिस समीर जैन की बेंच ने कहा कि अपनी संपत्ति से किसी को बेदखल करना बुजुर्ग का अधिकार है। मामले में जिस बुजुर्ग मनभरी देवी के पक्ष में फैसला आया, उनके पति की मौत हो चुकी है। उनकी दो बेटियां हैं, कोई बेटा नहीं। एक बेटी का बेटा (ओम प्रकाश सैनी) बचपन से ही अपनी नानी के यहां रहा। उसकी शादी भी नानी के घर से ही हुई। ओम प्रकाश सैनी के नाना की मौत के बाद उनकी संपत्ति कानून के हिसाब से मनभरी देवी और उनकी दोनों बेटियों के बीच तीन बराबर-बराबर हिस्सों में बंटनी थी। मनहरी देवी नहीं चाहती थी कि संपत्ति में ओम प्रकाश को हिस्सा मिले। मामला ट्राइब्यूनल में पहुंचा जहां मनभरी देवी के पक्ष में फैसला आया यानी ओम प्रकाश को संपत्ति से बेदखल करने का। ओम प्रकाश ने ट्राइब्यूनल के फैसले को राजस्थान हाई कोर्ट में चुनौती दी। उसी मामले में हाई कोर्ट ने फैसला दिया कि बुजुर्ग अगर चाहें तो अपनी संपत्ति से बेटे-बहू या अन्य रिश्तेदारों को बेदखल कर सकते हैं।बुढ़ापे में मां-बाप का ध्यान रखना बेटे का नैतिक फर्ज और कानूनी बाध्यता: सुप्रीम कोर्टनवंबर 2021 में सुप्रीम कोर्ट ने बुजुर्ग पिता को हर महीने 10 हजार रुपये गुजारा भत्ता देने में आनाकानी करने वाले एक बेटे को कड़ी फटकार लगाई थी। कोर्ट ने कहा कि बुढ़ापे में माता-पिता की देखभाल करना न सिर्फ बेटे का नैतिक फर्ज है बल्कि कानूनी बाध्यता भी है। 72 साल के बुजुर्ग राजमिस्त्री का काम करके परिवार की परवरिश की थी। परिवार में 2 बेटे और 6 बेटियां थीं। बुजुर्ग दिल्ली के कृष्णानगर में 30 वर्गगज के एक छोटे से मकान में अपने बड़े बेटे के परिवार के साथ रहते थे। एक तो छोटा सा घर, ऊपर से परिवार के सदस्यों के बीच बंटवारा। हालांकि, शादीशुदा बेटियों ने अपने-अपने हिस्से को पिता के लिए छोड़ रखा था जिस वजह से उन्हें घर के कोने में रहने के लिए एक बहुत ही छोटी सी जगह मिली हुई थी। लेकिन बेटों ने उनके गुजर-बसर और उनकी बुनियादी जरूरतों के लिए खर्च देना बिल्कुल बंद कर दिया। एक बेटा रियल एस्टेट डीलर था। इसके बाद 2015 में बुजुर्ग ने फैमिली कोर्ट का रुख किया। कोर्ट ने उनके रियल एस्टेट डीलर बेटे को आदेश दिया कि वह अपने पिता को गुजारे के लिए हर महीने 6 हजार रुपये गुजारा भत्ता दे। मासिक गुजारा भत्ता का जनवरी 2015 से तय किया। इस तरह बेटे को मासिक गुजारा भत्ता के रूप में 6 हजार रुपये के साथ-साथ एरियर के साथ एकमुश्त 1,68,000 रुपये अदा करना था। लेकिन उसने सिर्फ 50 हजार रुपये जमा किए। बाद में ट्रायल कोर्ट ने गुजारा भत्ता की रकम को 6000 रुपये से बढ़ाकर 10 हजार रुपये महीना कर दिया और बकाया एरियर को नए रेट पर अदा करने को कहा। इसके बाद बेटा गुजारा भत्ता देने से बचने के लिए तमाम फोरमों में याचिकाएं डालने लगा। डिस्ट्रिक्ट कोर्ट, फिर दिल्ली हाई कोर्ट और आखिरकार मामला सुप्रीम कोर्ट में पहुंचा। शीर्ष अदालत में बेटे ने दलील दी कि उसकी आर्थिक स्थिति 10 हजार महीना गुजारा भत्ता देने लायक नहीं है। उसकी बहानेबाजियों पर सुप्रीम कोर्ट ने कड़ी फटकार लगाई। शीर्ष अदालत ने अपने आदेश में कहा कि बुजुर्ग मां-बाप की देखभाल करना बेटे का न सिर्फ नैतिक दायित्व है बल्कि कानूनी बाध्यता भी है।83 साल की उम्र में वंशराम को बहू-बेटों ने बेहसहारा छोड़ दिया!जिन बच्चों के लिए मां-बाप अपने शौक तक की बलि चढ़ा देते हैं, हाड़तोड़ मेहनत करते हैं, हर तरह का जतन करते हैं, वे उन्हें ही बुढ़ापे में बेसहारा छोड़ दें तो इससे शर्मनाक कुछ भी नहीं हो सकता। पिछले साल यूपी के अयोध्या में एक 83 साल के बुजुर्ग ने सरयू नदी में कूदकर खुदकुशी करने की कोशिश की थी। वजह ये कि उसके तीन-तीन बेटे थे लेकिन उसकी देखभाल करने के लिए कोई भी तैयार नहीं था। वंशराम नाम के उस बुजुर्ग को जल पुलिस और स्थानीय मल्लाहों ने बचा लिया था। उनके तीनों बेटे उन्हें अपने साथ नहीं रखना चाहते थे। वंशराम ने अपनी सारी जमीन-जायदाद भी तीनों बेटों के नाम कर रखी थी। हालांकि, वंशराम अगर कानून का सहारा लेते तो वो संपत्तियां फिर से उनके नाम हो जातीं जिसे उन्होंने अपने बेटों के नाम कर दी थी।मैंटिनेंस ऐंड वेल्फेयर ऑफ पैरेंट्स ऐंड सीनियर सिटिजंस ऐक्ट, 2007 एक कानूनी ढालबुढ़ापे में मां-बाप को परेशानी न हो, गरिमा के साथ जीवन का उनका अधिकार सुनिश्चित हो इसके लिए 2007 में एक महत्वपूर्ण कानून बना था- मैंटिनेंस ऐंड वेल्फेयर ऑफ पैरेंट्स ऐंड सीनियर सिटिजंस ऐक्ट, 2007। इस कानून में बच्चों/रिश्तेदारों के लिए माता-पिता/वरिष्ठ नागरिकों की देखभाल करना, उनकी सेहत का ध्यान रखना, रहने-खाने जैसी बुनियादी जरूरतों को पूरा करना अनिवार्य है। मैंटिनेंस ऐंड वेल्फेयर ऑफ पैरेंट्स ऐंड सीनियर सिटिजंस ऐक्ट, 2007 में ये भी प्रावधान है कि अगर किसी बुजुर्ग ने अपनी जायदाद को बच्चों या रिश्तेदारों के नाम किया है, गिफ्ट के तौर पर या किसी भी अन्य वैध तरीके से तो जिनके नाम संपत्ति की गई है, उनकी जिम्मेदारी है कि वे बुजुर्ग की बुनियादी जरूरतों का खयाल रखें। वे इस जिम्मेदारी से बच नहीं सकते। अगर वे ऐसा नहीं करते हैं तो प्रॉपर्टी ट्रांसफर भी रद्द हो सकता है। प्रॉपर्टी ट्रांसफर रद्द होने का मतलब है कि संपत्ति फिर से बुजुर्ग के नाम हो जाएगी। उसके बाद अगर वह चाहे तो बेटे, बेटियों को अपनी संपत्ति से बेदखल भी कर सकते हैं। बुजुर्गों के लिए कानून का ये प्रावधान बहुत ही राहत वाला है। इससे साफ है कि वंशराम ने भले ही संपत्ति अपने तीनों बेटों के नाम कर दी थी लेकिन अगर वह कानून का सहारा लेते तो संपत्ति का ट्रांसफर रद्द भी हो सकता है।कानून के मुताबिक, वे माता-पिता जो अपनी आय या संपत्ति के जरिए खुद की देखभाल करने में सक्षम नहीं हैं और उनके बच्चे या रिश्तेदार उनका ध्यान नहीं रख रहे तो वे भरण-पोषण का दावा कर सकते हैं। उन्हें प्रति महीने 10 हजार रुपये तक का गुजारा-भत्ता मिल सकता है। गुजारे-भत्ते की रकम केस के आधार पर तय होगा और ट्राइब्यूनल या जज की विवेक पर निर्भर करेगा। भरण-पोषण के आदेश का 30 दिनों के भीतर पालन करना अनिवार्य है।60 वर्ष से ऊपर के ऐसे शख्स जिनकी कोई संतान न हो, और उनके रिश्तेदार/ संपत्ति के वारिस उनकी देखभाल नहीं कर रहे हों तो ऐसे बुजुर्ग भी भरण-पोषण का दावा कर सकते हैं।ऐसे मामलों की सुनवाई के लिए मैंटिनेंस ट्राइब्यूनल और अपीलेट ट्राइब्यूनल की व्यवस्था की गई है। ज्यादातर जिलों में ये ट्राइब्यूनल हैं। बुजुर्ग से शिकायत मिलने के बाद ट्राइब्यूनल को 90 दिनों के भीतर यानी 3 महीने के भीतर उस पर फैसला सुनाना होता है ताकि मामला लंबा न खिंचे।इसके अलावा सीआरपीसी 1973 की धारा 125 (1) (डी) और हिंदू अडॉप्शन ऐंड मैंटिनेंस ऐक्ट 1956 की धारा 20 (1 और 3) के तहत भी मां-बाप अपनी संतान से भरण-पोषण के अधिकारी हैं।बहू-बेटे सिर्फ लाइसेंसी, संपत्ति पर बुजुर्ग मां-बाप का ही अधिकार : कलकत्ता हाई कोर्टजुलाई 2021 में कलकत्ता हाई कोर्ट ने ऐसे ही एक मामले में अहम फैसला सुनाया कि संपत्ति पर बुजुर्ग मां-बाप का ही हक है। उसके बेटे-बहू तो संपत्ति के सिर्फ लाइसेंसी मात्र हैं और उन्हें घर से निकाला जा सकता है। हाई कोर्ट ने कहा कि अगर कोई देश अपने बुजुर्गों और कमजोर नागरिकों की देखभाल नहीं कर सकता तो वह पूर्ण सभ्यता हासिल नहीं कर सकता।मां-बाप की देखभाल तो करनी ही होगी: पंजाब ऐंड हरियाणा हाई कोर्टजुलाई 2021 में पंजाब ऐंड हरियाणा हाई कोर्ट ने भी अपने आदेश में कहा कि बच्चों को माता-पिता की देखभाल करनी ही होगी। मामला 76 साल की बुजुर्ग महिला से जुड़ा था, जिनके पति की मौत हो चुकी थी। महिला का आरोप था कि 2015 में उसके बेटे ने फर्जी तरीके से उनकी संपत्ति को अपने नाम करा लिया था। इसके बाद वह उन्हें बात-बात पर पीटा करता था। सुलह के लिए 2-3 बार पंचायतें भी हुईं लेकिन बेटे के रवैये में कोई बदलाव नहीं आया। आखिरकार महिला ने कानूनी रास्ता अपनाया। जस्टिस एजी मसीह और अशोक कुमार वर्मा की बेंच ने अपने फैसले में कहा कि बच्चों को अपने बुजुर्ग माता-पिता की देखभाल करनी ही होगी। इसके साथ ही अदालत ने बेटे के नाम महिला की प्रॉपर्टी के ट्रांसफर को भी रद्द कर दिया।बुजुर्ग की देखभाल नहीं तो बहू-बेटे को मकान में रहने का हक नहीं : छत्तीसगढ़ हाई कोर्टछत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने इसी साल एक मामले में फैसला सुनाया कि अगर बेटे मां-बाप की देखभाल नहीं करते तो उन्हें उनके मकान में रहने का हक नहीं है। मामला रायपुर के कासिमपुरा का था। सेवालाल बघेल सरकारी नौकरी से रिटायर हुए थे। उन्होंने एक घर खरीदा था लेकिन रिटायरमेंट के बाद उनके बेटे-बहू उन्हें तंग करने लगे। उन्हें उनके ही घर से निकालने की धमकी दिया करते थे। बेटे-बहू की प्रताड़ना से आजिज होकर सेवालाल ने रायपुर कलेक्टर के यहां मैंटिनेंस ऐंड वेल्फेयर ऑफ पैरेंट्स ऐंड सीनियर सिटिजन ऐक्ट, 2007 के तहत शिकायत दर्ज कराई। कलेक्टर ने आदेश दिया कि बहू-बेटे एक हफ्ते के भीतर मकान खाली करें और बुजुर्ग को हर महीने 5 हजार रुपये गुजारा भत्ता दें। बेटे ने इस फैसले को हाई कोर्ट में चुनौती दी। लेकिन हाई कोर्ट ने भी मकान खाली करने के हाई कोर्ट के फैसले को सही माना। हालांकि, कोर्ट ने इस आधार पर हर महीने 5 हजार रुपये गुजारा भत्ता देने के आदेश को रद्द कर दिया कि सेवालाल सरकारी सर्विस से रिटायर हुए थे और उन्हें ठीक-ठाक पेंशन मिल रही थी। उनके सामने ऐसा संकट नहीं था कि गुजारा कैसे होगा। छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि अगर कोई बेटा बुजुर्ग माता-पिता की देखभाल नहीं करता है तो उसे उसके मकान में रहने का कोई अधिकार नहीं है। सितंबर 2021 में बॉम्बे हाई कोर्ट ने भी एक ऐसे ही मामले में बुजुर्ग माता-पिता को तंग करने वाले इकलौते बेटे और उसकी पत्नी को एक महीने के भीतर उनका फ्लैट खाली करने का आदेश दिया था।हक की बात के कुछ अन्य आर्टिकलहक की बात: कल्कि धाम मंदिर पर हाई कोर्ट के फैसले ने खींच दी है धार्मिक स्वतंत्रता की बड़ी लकीर, जानें पूरा मामला हक की बात : मामा नहीं दे रहे मां को पिता की संपत्ति में हिस्सा? जानिए क्या करें हक की बात : कमाते हैं खूब मगर घर में कितना कैश रख सकते हैं, जानिए हक की बात: घर में बच्ची को बनाया मेड तो पछताएंगे आप, उम्र-सजा से लेकर हर बात जान लीजिए हक की बात : नाम नहीं पसंद, तो क्या बदलवा सकते हैं? क्या है आपका अधिकार, जानिए हर एक बात Haq Ki Baat : बॉडी पेंटिंग, 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