Questions arising on the exam pattern of UPSC

रहीस सिंह

हाल ही में कार्मिक, लोक शिकायत और कानून एवं न्याय विभाग से संबंधित संसद की स्थायी समिति ने ‘रिव्यू ऑफ फंक्शनिंग ऑफ रिक्रूटमेंट ऑर्गनाइजेशंस ऑफ गवर्नमेंट ऑफ इंडिया’ शीर्षक वाली एक रिपोर्ट संसद में पेश की। इस रिपोर्ट में सिविल सर्विसेज एक्जाम और सिविल सर्वेंट्स को लेकर कुछ बातें कही गई हैं। ये बातें न केवल उन सिविल सर्वेंट्स की मंशा पर सवालिया निशान लगाती हैं जो इंजीनियरिंग व मेडिकल बैकग्राउंड के हैं बल्कि UPSC के परीक्षा पैटर्न को भी कठघरे में खड़ा करती हैं।
परीक्षा पैटर्न पर सवाल
समिति की रिपोर्ट से कुछ अहम बिंदु उभरते हैं, जिन पर गौर करने की जरूरत है।

फिलहाल सिविल सर्विसेज में 70 प्रतिशत से अधिक अभ्यर्थी टेक्निकल स्ट्रीम के सफल हो रहे हैं।
इससे देश हर साल उन सैकड़ों टेक्नोक्रेट्स को गंवा दे रहा है, जिनसे अन्य क्षेत्रों में काम करने की अपेक्षा रहती है।
सरकार ने सिविल सर्वेंट्स के लिए प्रशिक्षण व्यवस्था में कई महत्वपूर्ण बदलाव किए हैं, लेकिन अधिकारियों की दक्षता, ऊर्जा और तीव्रता में अभी भी सुधार की जरूरत है।
एक सिविल सर्वेंट सरकार और आम जनता के बीच ‘इंटरफेस’ होता है, जिसमें लोगों के प्रति मानवीय भाव और संवेदनशील दृष्टिकोण होना चाहिए।
वर्तमान सिविल सर्वेंट्स के पास अपने पूर्व भारतीय सिविल सर्वेंट्स के समान कानूनी कौशल नहीं है।
IAS, IPS, IRS और IFS के लिए पूरी भर्ती प्रक्रिया पर पुनर्विचार करने का यह सही समय है।

समिति की ओर से रेखांकित किए गए ये बिंदु इस बात की तरफ इशारा करते हैं कि सिविल सेवा परीक्षा के पैरामीटर्स और पैटर्न पूरी तरह दुरुस्त नहीं हैं। वास्तव में, समिति की रिपोर्ट से उभरे ये बिंदु कई सवालों को जन्म देते हैं।

पहला, समिति कहती है कि पहले के सिविल सर्वेंट्स में कानूनी कौशल अधिक था तो क्या इसका यह मतलब हुआ कि UPSC में किए गए बदलावों से पहले का परीक्षा पैटर्न बेहतर था?
दूसरा, क्या इस लिहाज से UPSC को अपने परीक्षा पैटर्न पर पुनर्विचार करना चाहिए?
तीसरा, UPSC ने वर्ष 2011 में जिस उद्देश्य को लेकर एप्टिट्यूड टेस्ट को शामिल किया था, क्या वह पूरा हुआ?
चौथा, सीसैट अभ्यर्थी की एनालिटिकल स्किल, इंटरपर्सनल एबिलिटी, डिसिजन मेकिंग, एप्टिट्यूड, जनरल मेंटल एबिलिटी और रीजिनिंग एबिलिटी का स्तर जांचने के लिए था, तो क्या वास्तव में ऐसा हो पा रहा है?
पांचवां, वर्तमान एक्जाम पैटर्न में नॉन-इंग्लिश, नॉन-अर्बन और नॉन-टेक्निकल भारत कहां खड़ा है?

समिति के अनुसार, इंजीनियरिंग बैंकग्राउंड के अभ्यर्थियों का चयन वर्ष 2011 के 46 प्रतिशत से बढ़कर 2020 में 65 प्रतिशत पर पहुंच गया। ह्यूमैनिटी से चयन इसी अंतराल में 27 प्रतिशत घटकर 23 प्रतिशत पर आ गया। 2020 की ही बात करें तो इस वर्ष में चयनित कुल 833 अभ्यर्थियों में से 541 (65 प्रतिशत) इंजीनियरिंग बैकग्राउंड के हैं, 33 (4 प्रतिशत) मेडिकल के और 193 (23 प्रतिशत) ह्यूमैनिटी के, जबकि 66 ( 8 प्रतिशत) अन्य बैकग्राउंड के।
यदि UPSC के प्रश्नपत्रों का गहराई से अध्ययन किया जाए तो इस निष्कर्ष तक पहुंचने में कठिनाई नहीं होगी कि एक्जामिनेशन पैटर्न अंग्रेजी माध्यम और टेक्निकल स्ट्रीम वालों के लिए फेवरेबल है। तीन चरणों में संपन्न होने वाले इस एक्जाम में पहला प्रिलिमनरी है, जिसमें वर्ष 2011 में सीसैट यानी सिविल सर्विसेज एप्टिट्यूड टेस्ट जोड़ दिया गया। सचाई यह है कि UPSC अभ्यर्थी की एनालिटिकल स्किल, इंटरपर्सनल एबिलिटी, डिसिजन मेकिंग और एप्टिट्यूड पर फोकस करने के बजाय मैथ्स और रीजनिंग पर फोकस अधिक करता है। वास्तव में, यह नॉन-इंग्लिश, नॉन-अर्बन और नॉन-टेक्निकल छात्रों के अनुकूल नहीं है। इससे नॉन-टेक्निकल बैकग्राउंड वाले अभ्यर्थी स्क्रीनिंग राउंड में ही बाहर हो जाते हैं। उन्हें मुख्य परीक्षा देने का अवसर ही नहीं मिल पाता जबकि उनकी विषय की जानकारी और अभिव्यक्ति की क्षमता टेक्निकल स्ट्रीम वालों से कम नहीं होती। कुछ और पहलू गौर करने लायक हैं।

एप्टिट्यूड टेस्ट में कॉम्प्रिहेंशन एक महत्वपूर्ण पार्ट है, जिसमें 30 से 35 प्रश्न आते हैं।
कॉम्प्रिहेंशन से जुड़े पैराग्राफ मूलतः अंग्रेजी भाषा में बनाए जाते हैं।
हिंदी एवं अन्य भाषाओं के अभ्यर्थियों के लिए इनका अनुवाद किया जाता है। यह ‘भावानुवाद’ नहीं होता है बल्कि गूगल ट्रांसलेशन जैसा होता है।
अनुवाद के बाद उपजे शब्द अनर्थकारी होते हैं। यह चीज हिंदी माध्यम के अभ्यर्थियों के लिए दिल्ली दूर बना देती हैं। मिसाल के तौर पर एक पेपर में ‘स्टील प्लांट’ का अनुवाद ‘स्टील पौधा’ किया गया, ‘पीसी टैब्लेट’ का अनुवाद ‘पीसी गोली’ किया गया। यह किस तरह की बौद्धिक क्षमता का परीक्षण है?

यदि मुख्य परीक्षा की बात करें तो वहां क्वेश्चन पेपर अच्छे होते हैं जिनमें स्टैटिक और डायनैमिक पार्ट, दोनों ही होते हैं। लेकिन वहां एक्जामिनर अंग्रेजी माध्यम का होता है और उत्तर का मॉडल भी अंग्रेजी भाषा का।
कौन करे मूल्यांकन
सवाल यह है कि अगर हिंदी माध्यम का एक्जामिनर अंग्रेजी माध्यम की कॉपी का मूल्यांकन नहीं कर सकता तो फिर अंग्रेजी माध्यम वाला हिंदी माध्यम की कॉपी का मूल्यांकन कैसे कर सकता है? हिंदी की शब्दावली, अभिव्यक्ति, विश्लेषण और बात कहने का तरीका अंग्रेजी से जुदा होता है। इस तरह के व्यवहार और मानदंड को लेकर सवाल केवल हिन्दी माध्यम वालों का नहीं है बल्कि अन्य भारतीय भाषाओं की ओर से भी हो रहे हैं और विभिन्न स्ट्रीम्स के अभ्यर्थियों की ओर से भी। ऐसे में सबसे बड़ा सवाल यह है कि आज जब भारत ‘थिंक बिग, ड्रीम बिग, एक्ट बिग’ के सिद्धांत को अपनाते हुए तेजी से आगे बढ़ रहा है तो UPSC संकीर्ण नजरिया लेकर क्यों चलना चाहता है?
डिसक्लेमर : ऊपर व्यक्त विचार लेखक के अपने हैं