स्वामीनाथन एस अंकलेसरिया अय्यर
राजस्थान के सीएम अशोक गहलोत ने न्यूनतम गारंटी आय योजना के तहत शहरी रोजगार योजना की घोषणा की है। वह इसे कामयाब बता रहे हैं। अन्य राज्यों में भी विपक्षी दल अब इसी तरह की गारंटीड इनकम का वादा करेंगे। मौजूदा सरकारें भी ऐसी घोषणा करने को आकर्षित होंगी। योजना के समर्थक कहेंगे कि मानवाधिकारों के मामले में यह एक सफलता है। वहीं, आलोचक इसे एक और रेवड़ी बताएंगे।
कैसे होगा नुकसान
यह मुफ्त का ऐसा उपहार है, जिसके फायदे बहुत थोड़े हैं। मैं कहूंगा कि यह कदम कई वजहों से काफी नुकसान पहुंचा सकता है।
शहरी रोजगार गारंटी गलत चीजों को बढ़ावा देती है और इसके गलत परिणाम हो सकते हैं।
भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) के मुताबिक, राजस्थान उन पांच राज्यों में है, जो सबसे अधिक आर्थिक मुश्किलात झेल रहा है।
न्यूनतम गारंटीशुदा आय तीन हिस्सों में आती है। राज्य पहले से ही मनरेगा (MNREGA) के तहत ग्रामीण इलाकों में सौ दिनों का काम देता है। इसके लिए न्यूनतम मजदूरी है 259 रुपये प्रति दिन।
अब शहरी रोजगार गारंटी योजना के तहत शहरी मजदूरों को साल में 125 दिन काम दिया जाएगा। न्यूनतम मजदूरी वही होगी, जो गांवों में है।
जो लोग काम नहीं कर सकते, उन्हें सरकार हर महीने एक हजार रुपये की पेंशन देगी। यह बमुश्किल जीवनयापन लायक मजदूरी है, लेकिन यह न्यूनतम गारंटी है।
ध्यान रहे कि यह यूनिवर्सल बेसिक इनकम नहीं है, जिसका सुझाव कई विचारकों ने दिया था। यूनिवर्सल बेसिक इनकम से लोगों को रहने-खाने लायक वेतन मिलेगा। राजस्थान की योजना उससे बहुत कम इकम देगी। मैंने ऊपर कहा है कि इस योजना से गलत इंसेंटिव मिलेगा, इसकी एक नहीं, कई वजहें हैं।
माना जाता है कि ज्यादातर लोग अभी गांवों से रोजगार के लिए शहरों की ओर पलायन कर रहे हैं। इसलिए मनरेगा का मकसद है शहरों की ओर पलायन को कम करना। लेकिन, शहरी रोजगार गारंटी देकर राजस्थान सरकार शहरों की ओर पलायन को बढ़ावा देगी। इससे मनरेगा का मकसद विफल हो जाएगा।
शहरों में ग्रामीण आबादी के धावा बोलने का मतलब होगा अनधिकृत झुग्गी-झोपड़ियों वाले इलाक़ों का विस्तार, जहां न बिजली होगी न पानी। यह समस्या शहरों में पहले से ही काफी बड़ी है। कोई भी राज्य शहरों में अतिरिक्त ग्रामीण आबादी के लिए तैयार नहीं है। किसी को नहीं पता कि शहरी रोजगार गारंटी से आकर्षित होकर जो लाखों लोग शहरों की ओर पलायन करेंगे, उन्हें सुविधाएं कैसे मुहैया कराई जाएंगी।
कोविड के कारण राज्य की वित्तीय व्यवस्था चरमरा गई है। ऐसे में नई योजना से वित्तीय स्थिति का भट्ठा बैठ जाएगा।
मनरेगा की मज़दूरी 221 रुपये प्रति दिन (छत्तीसगढ़) से लेकर 357 रुपये प्रति दिन (हरियाणा) तक है। कई राज्यों में इसमें महंगाई भत्ता भी जुड़ता है।
शहरी मजदूरी आम तौर पर शॉप्स एंड कमर्शल इस्टैब्लिशमेंट एक्ट से नियंत्रित की जाती है। इसके हिसाब से मजदूरी कहीं अधिक होती है। मसलन, दिल्ली में हर महीने की न्यूनतम मजदूरी है 17 हज़ार 234 रुपये। इस हिसाब से महीने में 26 दिन काम और हर दिन की मजदूरी 770 रुपये बैठती है। इससे कुछ अंदाजा मिलता है कि शहरी गारंटी योजना कितनी महंगी होगी मनरेगा के मुकाबले।
राजस्थान जैसे कुछ राज्यों में शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों के लिए न्यूनतम वेतन समान है। लेकिन इसका कोई मतलब नहीं, क्योंकि शहरों में रहने की लागत बहुत अधिक है। इन मामलों में, शहरी क्षेत्रों में मनरेगा का विस्तार अधिक मजदूरी पर नहीं होगा।
इन हालात में क्या होगा?
आमतौर पर, शहरों में मजदूरी गांवों की न्यूनतम मजदूरी से अधिक होती है। ऐसे में योजना का लाभ लेने वाले बहुत कम हो सकते हैं और रोजगार के मामले में योजना फ्लॉप हो सकती है। इसके बाद शहरों में गांवों के मुकाबले ज़्यादा मजदूरी देने का राजनीतिक दबाव बनेगा। इससे और ज़्यादा प्रवासी आएंगे, लेकिन राज्य की आर्थिक हालत डांवाडोल हो जाएगी।
मनरेगा का उद्देश्य भूमि को समतल करना और मेड़बंदी जैसे कैपिटल असेट का निर्माण करना है। अभी यह साफ नहीं है कि क्या शहरी गारंटी योजना से भी इसी तरह कैपिटल असेट का निर्माण किया जाएगा। शहरों में निर्माण के लिए ज्यादा कुशल श्रमिकों की जरूरत होती है।
FRBM के मानकों के तहत, हर राज्य को अपने कर्ज/GDP का अनुपात घटाकर 20 फीसदी करना है। राजस्थान का अनुपात लगभग दोगुना है और नई योजना से इसमें और इजाफा ही होगा। RBI की एक स्टडी में 2022-23 के लिए राजस्थान का ऋण-जीडीपी अनुपात 39.8 प्रतिशत आंका गया है। इस तरह, शहरी गारंटी जैसी योजना का भार उठाने में राजस्थान सबसे कम सक्षम राज्यों में है।
धीमी होगी रफ्तार
दिव्यांग या वृद्ध लोगों के लिए एक हजार रुपये प्रतिमाह पेंशन की गारंटी दी गई है। इसमें हर साल 15 फीसदी की बढ़ोतरी होगी। इसका मतलब यह है कि पांच साल में यह पेंशन दोगुनी हो जाएगी और 10 साल में चार गुनी। 15 साल बाद पेंशन आठ गुना होगी और 25 साल में 32 गुना बढ़ जाएगी। साल 2043 तक पेंशन हो जाएगी 32 हजार रुपये प्रति माह। क्या इसका कोई मतलब निकलता है? केंद्र और राज्यों का ऋण/GDP अनुपात विकासशील देशों की तुलना में कहीं अधिक है। कुल राजस्व का एक चौथाई हिस्सा ब्याज में चला जाता है, विकासशील देशों की तुलना में दोगुना। इससे निवेश के लिए रकम घटती है। इससे भारत की विकास में तेजी लाने और दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने की क्षमता प्रभावित होगी।
डिसक्लेमर : ऊपर व्यक्त विचार लेखक के अपने हैं