Rajiv Gandhi Pm Kab Bane,तब प्रधानमंत्री थे राजीव गांधी, अचानक रूम में जब घुस आई थी एक ‘आफत’ – rajiv gandhi became pm after indira gandhi assassination in 1984 then girl entered in his room shouting slogan

निधि शर्मा, वरिष्ठ पत्रकार : 31 अक्टूबर, 1984 का दिन था। देश की पहली महिला प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के बाद देश गमजदा था। राजनीति में तीन साल पहले ही एंट्री करने वाले राजीव गांधी को बतौर प्रधानमंत्री शपथ दिला दी गई थी। अगले साल लोकसभा चुनाव होने वाले थे। हालांकि कांग्रेस चाहती थी कि 1984 के दिसंबर में चुनाव हो जाएं। इस सबके बीच राजीव और दूसरे सीनियर कांग्रेसी लीडर्स राज्य-दर-राज्य कैंडिडेट्स पर मंथन कर रहे थे। राजीव के खास और कंप्यूटर बॉय के नाम से मशहूर अरुण नेहरू एक लिस्ट तैयार कर रहे थे। इसी बीच कमरे के बाहर एक आवाज सुनाई दी। जैसे ही दरवाजा खोला गया, इन लोगों ने अपने सामने एक लड़की को खड़ा पाया जो नारे लगाते-लगाते कमरे में दाखिल हो गई। फिर सुरक्षाकर्मी आए और उसे हटा दिया। दो नेता उसे शांत करने की कोशिश में लग गए।ये जीतेगी नहीं, पर अच्छी फाइट देगीइस सब से स्तब्ध राजीव ने पूछा, ‘यह कौन है?’ अरुण नेहरू ने कहा, ‘हिम्मत देखो। अगर यह लड़की ऐसे ऑफिस में दाखिल हो सकती है, तो यह आफत कर देगी। इसका नाम पश्चिम बंगाल कांग्रेस के अध्यक्ष सुब्रत मुखर्जी ने टिकट के लिए प्रस्तावित किया है। मुझे लगता है कि इसे सोमनाथ चटर्जी के खिलाफ टिकट देना चाहिए। ये जीतेगी नहीं, पर अच्छी फाइट देगी।’ कांग्रेस ने इस छोटी सी पतली-दुबली और सूती साड़ी पहनने वाली लड़की को CPM के सोमनाथ चटर्जी के खिलाफ टिकट दे दिया। इंदिरा गांधी की मौत के बाद कांग्रेस को सहानुभूति लहर का फायदा मिला। पार्टी ने 514 में से 404 सीटें जीतीं। वह लड़की जिसे कांग्रेस का टिकट मिला, ममता बनर्जी थीं। ममता ने CPM दिग्गज सोमनाथ चटर्जी को धूल चटा दी थी। यह उस युवा महिला के तूफानी लेकिन शानदार करियर का आगाज था, जिसने बाद में ना सिर्फ अपनी पार्टी बनाई, बल्कि बंगाल की सड़कों पर हिंसा का भी सामना किया।प्रणब मुखर्जी को मिलनी थी पीएम की कुर्सी, राजीव का प्रधानमंत्री बनना चौंकाने वाला था, मणिशंकर की नई किताब में खुलासाकौन बनेगा मुख्यमंत्री1980 में महाराष्ट्र को पहली महिला चीफ मिनिस्टर मिलते-मिलते रह गई। प्रतिभा पाटिल इस रेस की फिनिश लाइन के इतने करीब थीं कि पति देवी सिंह शेखावत अपने दोनों बच्चों राजेंद्र और ज्योति को बिना कन्फर्मेशन वाले टिकट पर लेकर उस शपथ ग्रहण के लिए मुंबई की ट्रेन यात्रा पर निकले थे, जो कभी हुआ ही नहीं। सीट कन्फर्म नहीं थी इसलिए परिवार को ट्रेन के फर्श पर अखबार बिछा कर सफर करना पड़ा था। 1980 में महाराष्ट्र के विधानसभा चुनाव में इंदिरा गांधी के धड़े वाली कांग्रेस (I) को चुनाव में जीत मिली थी। संजय गांधी चाहते थे कि मुख्यमंत्री की कुर्सी किसी मुसलमान को दी जाए। वह एआर अंतुले को CM बनाना चाहते थे। हालांकि वसंतदादा पाटील कुछ और सोच रहे थे। उन्होंने प्रतिभा पाटिल को बुलाया और कहा कि वह CM की कुर्सी पर दावा ठोक दें।चाय की दुकान, दिल्ली के पहले सीएम को चुनाव में हराया, एक बार फिर चर्चा में सज्जन कुमारतो कांग्रेस नया नाम घोषित नहीं कर सकती थीपाटिल उससे पहले वाली विधानसभा में विपक्ष की लीडर थीं। उन्होंने इंदिरा गांधी से कहा कि विधायक अंतुले जी को CM बनाना नहीं चाहते। वसंत दादा पाटील ने प्रतिभा पाटिल के नाम का प्रस्ताव रख दिया। इंदिरा गांधी मान गईं। उन्होंने आरके धवन को बुलाया और कहा कि किसी केंद्रीय मंत्री को बतौर ऑब्जर्वर भेजा जाए। हालांकि सीताराम केसरी पहले से ही महाराष्ट्र में मौजूद थे और इस बारे में विधायकों की राय ले रहे थे। इस बीच यह खबर लीक हो गई कि किसी दूसरे ऑब्जर्वर को एक स्पेशल विमान द्वारा महाराष्ट्र भेजा जा रहा है। इसके बाद इस विमान को जानबूझकर लेट कराया गया, उसे आधे रास्ते से ही वापस भेज दिया गया। तब तक केसरी अपना काम पूरा कर चुके थे। उन्होंने एलान किया कि अंतुले के नाम पर कांग्रेसी विधायकों में सहमति बन गई है। अब जब अंतुले का नाम बाहर आ चुका था तो कांग्रेस नया नाम घोषित नहीं कर सकती थी। इस घटनाक्रम के बाद सबको लगा कि अब प्रतिभा पाटिल का राजनीतिक करियर फिर से कभी उभर नहीं पाएगा।खरगे की नई टीम से मिला ‘ऑल इज वेल’ का संदेश, समझिए कांग्रेस की नई टीम के मायनेगेस्ट हाउस में मायावतीजून का वह उमस भरा दिन था। रात करीब 11 बजे राजभवन का इंटरकॉम घनघनाया। राज्यपाल मोतीलाल वोरा के लिए यह एक लंबा दिन रहा था। 3 जून, 1995 को उन्होंने मायावती को यूपी की पहली दलित CM के रूप में शपथ दिलाई थी। वह सोने जा चुके थे कि उन्हें बताया गया कि मायावती उनसे मिलने राजभवन आई हैं। यह प्रोटोकॉल के खिलाफ बात थी। राज्यपाल से मिलने के पहले मुख्यमंत्री को एडवांस में अपॉइंटमेंट लेना होता है। लेकिन इससे पहले का राजनीतिक घटनाक्रम भी कुछ कम नाटकीय नहीं रहा था। BSP ने समाजवादी पार्टी सरकार से समर्थन खींच कर खुद सरकार बनाने का दावा ठोक दिया था। BSP ऐसा BJP के सपोर्ट की वजह से करने जा रही थी। 2 जून को SP कार्यकर्ताओं की भीड़ लखनऊ के उस स्टेट गेस्ट हाउस में दनदनाती हुई घुस आई, जहां मायावती अपने पार्टी नेताओं के साथ बैठक कर रही थीं। मुलायम सिंह यादव BSP विधायकों को अपने पाले में करना चाहते थे।DM राजीव खेर और कई पुलिस अफसरों ने घंटों की मशक्कत के बाद इन सभी को बाहर निकाला। खेर की ओर से काफी आश्वासन दिए जाने के बाद कमरे में बंद मायावती ने दरवाजा खोला। अगले दिन कांशीराम और अटल बिहारी वाजपेयी की मौजूदगी में मायावती ने CM पद की शपथ ली। इसके कुछ घंटे बाद ही वह बिना बताए राजभवन के दरवाजे पर थीं। कांग्रेस नेता राशिद अल्वी बताते हैं कि मायावती ने वोरा जी से कहा कि वह सेफ महसूस नहीं कर रहीं और चाहती हैं कि रात राजभवन में बिताएं। वोरा की ओर से मुख्यमंत्री को कहा गया कि उन्हें कुछ नहीं होगा, वह डरें नहीं। लेकिन मायावती नहीं मानीं। इसके बाद राजभवन के गेस्ट क्वॉर्टर उनके लिए खोल दिए गए।(Aleph Book Company से प्रकाशित किताब ‘She, The Leader: Women in Indian Politics’ से साभार)