नई दिल्ली: दिल्ली सेवा बिल पर वोटिंग के लिए JDU ने विप जारी किया था। ऐसे में पार्टी के बाउंसर से बचने के लिए राज्यसभा के डेप्युटी चेयरमैन हरिवंश ‘नॉन स्ट्राइकर’ एंड पर चले गए। जी हां, वह उस समय सदन की कार्यवाही संचालित करने लगे। अगर वह चेयर पर नहीं होते तो उन्हें मतदान करना पड़ता। ऐसा न करने पर उन्हें अयोग्य ठहराए जाने का खतरा था। संविधान के अनुच्छेद 89 के मुताबिक सदन को संचालित कर रहे डेप्युटी चेयरमैन पहली बार में वोट नहीं दे सकते। हां, मामला टाई होने पर ही वह वोट डाल सकते हैं। कल देर रात तक उच्च सदन चला। रात में गृह मंत्री अमित शाह ने जब बिल के बचाव में अपना भाषण पूरा किया तो दिनभर की मैराथन डिबेट में सदन में मौजूद रहे चेयरमैन जगदीप धनखड़ चले गए। आगे की कार्यवाही हरिवंश ने निभाई। इस तरह उन्होंने नीतीश के दांव को भी फेल कर दिया।दरअसल, नीतीश की पार्टी जेडीयू ने दिल्ली सेवा बिल पर मतदान करने के लिए पार्टी के राज्यसभा सांसदों को तीन लाइन का विप जारी किया था। दिलचस्प यह था कि इस बार राज्यसभा के उपसभापति हरिवंश नारायण सिंह को भी स्पीड पोस्ट से विप पहुंचाया गया था। उच्च सदन के उपसभापति का पद संवैधानिक है। अब तक कभी भी उपसभापति को विप नोटिस नहीं भेजा गया था। बताते हैं कि नीतीश ने जब बीजेपी से नाता तोड़ा था तो वह चाहते थे कि हरिवंश उपसभापति का पद छोड़ दें लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया।मोदी जी जानते हैं जनता की नाड़ी, तभी मैंने बढ़ाई दाढ़ी… अठावले ने कुछ इस अंदाज में किया दिल्ली बिल का समर्थनऐसे में विप जारी होने के बाद रास्ता एक ही बचा था। उपसभापति संसद की कार्यवाही के समय सभापति के पद पर बैठे रहें। तभी उन पर विप लागू नहीं होगा। कल रात उच्च सदन में भी यही हुआ।तब NDA लाया था अविश्वास प्रस्तावकुछ ऐसा ही विवाद 2008 में हुआ था। तब बीजेपी की अगुआई में एनडीए तत्कालीन यूपीए सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लेकर आया था और सीपीएम के तत्कालीन लोकसभा स्पीकर सोमनाथ चटर्जी ने पार्टी लाइन से इतर जाने का फैसला लिया। चटर्जी को पार्टी से निष्कासित कर दिया गया था लेकिन वह स्पीकर बने रहे क्योंकि वह सांसद बने रहे। इसकी वजह यह थी कि पार्टी ने सदन में विप जारी नहीं किया था।राज्यसभा के एक वरिष्ठ अधिकारी ने TOI को बताया कि संसदीय रेकॉर्ड से साफ है कि पहली बार संवैधानिक पोस्ट पर बैठे किसी शख्स को पार्टी विप के लिए मजबूर किया गया। अब तक 13 में 12 राज्यसभा के उपसभापति कांग्रेस बैकग्राउंड से रहे हैं। हालांकि कांग्रेस ने कभी संवैधानिक पद पर आसीन व्यक्ति को पार्टी विप के लिए मजबूर नहीं किया था।