वैगनर के मालिक येवगेनी प्रिगोजिन की मृत्यु ने इन अटकलों को तेज कर दिया है कि आखिर रूसी शासन के भीतर कितनी एकता है और यूक्रेन युद्ध के लिए इसके निहितार्थ क्या हैं। क्विनसी इंस्टीट्यूट फॉर रिस्पॉन्सिबल स्टेटक्राफ्ट के यूरेशिया कार्यक्रम के निदेशक अनातोल लीवेन ने हमारे सहयोगी अखबार द टाइम्स ऑफ इंडिया (TOI) के रुद्रोनील घोष से बात की कि मॉस्को के पास क्या विकल्प हैं और ये कैसे G20 नेताओं के शिखर सम्मेलन में भी दिख रहे हैं…प्रश्न: प्रिगोजिन की कहानी रूसी स्टेट के बारे में क्या कहती है?उत्तर: यह आश्चर्य की बात थी कि पुतिन को प्रिगोजिन और उनके दुश्मनों, रक्षा मंत्री सर्गेई शोइगु और जनरल स्टाफ चीफ जनरल वलेरी गेरासिमोव के बीच खुलेआम झगड़े को खत्म करने में इतना समय लगा। यह पुतिन की लंबे समय से चली आ रही रणनीति को दर्शाता है कि कैसे इस्टेब्लिशमेंट के अंदर विभिन्न गुटों को संतुलित करने के लिए उन्हें एक-दूसरे के खिलाफ इस्तेमाल किया जाए। लेकिन जब प्रिगोजिन शासन पर भी खुलेआम हमले करने लगे – जिसका स्वाभाविक तौर पुतिन भी शिकार हुए – तो रूसी राष्ट्रपति ने अंततः अपनी हैसियत दिखाने की ठान ली और वैगनर को सीधे रक्षा मंत्रालय के अधीन करने का आदेश दे दिया।जवाब में प्रिगोजिन ने अपनी सैन्य शक्ति दिखाने का फैसला किया ताकि पुतिन, शोइगु को बर्खास्त करने को मजबूर हो जाएं और प्रिगोजिन सबसे शक्तिशाली व्यक्ति बनाने के रूप में उभर जाएं। लेकिन जब कोई रूसी जनरल या सैन्य इकाई विद्रोह में शामिल नहीं हुई – जैसा कि प्रिगोजिन ने शायद उम्मीद की थी – तो सारी प्लानिंग फेल हो गई। इससे स्पष्ट है किचाहे कितने भी रूसी सैनिक उच्च कमान से घृणा करते हों, लेकिन वे विद्रोह नहीं करेंगे क्योंकि इससे यूक्रेन युद्ध में रूस हार सकता है जो शायद ही कोई रूसी चाहता हो।Swaminomics : अर्थव्यवस्था ध्वस्त! यूक्रेन से जंग हार रहा! रूस के बारे में पश्चिमी मीडिया का ये ‘सच के खिलाफ युद्ध’ हैप्रश्न: तो क्या प्रिगोजिन की मृत्यु में क्रेमलिन का हाथ था?उत्तर: खैर, मैं नहीं बता सकता कि लोग कैसे अन्यथा निष्कर्ष निकाल सकते हैं।प्रश्न: क्या पुतिन अब वैगनर जैसे विद्रोही का इस्तेमाल नहीं करेंगे?उत्तर: वो सीरिया और अफ्रीका में वैगनर को एक प्रॉक्सी फोर्स के रूप में उपयोग करना जारी रखेंगे, जहां वे रूस के हितों को चुपचाप साधते रह सकते हैं। सीरिया और अफ्रीका में वैगनर को उजागर किया गया तो वह पुतिन के लिए ही खतरा बन सकता है। मुझे लगता है कि जो कुछ हुआ है, उसके मद्देनजर यूक्रेन में उनका फिर से उपयोग नहीं किया जाएगा।प्रश्न: बेलारूस में स्थानांतरित किए गए वैगनराइट क्या करते हैं? पोलैंड जैसे देश चिंतित हैं।उत्तर: मुझे नहीं लगता कि बेलारूस में वैगनर की उपस्थिति पोलैंड या नाटो के लिए असल में सुरक्षा खतरा है। वैगनर इतना भी मजबूत नहीं है। यह संभव है कि वे बेलारूस से पूर्वी यूक्रेन में सीमित हमलों के लिए उपयोग किए जाएंगे। हालांकि जैसा कि मैंने कहा है, मेरे विचार में इसकी संभावना नहीं है। हालांकि, रूस की प्रॉक्सी के तौर पर वो भविष्य में कभी भी बेलारूस में उथल-पुथल मचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।रूस ने युद्धक ड्यूटी पर तैनात की दुनिया की सबसे खतरनाक परमाणु मिसाइल सरमत, दहशत में नाटो देश, जानें ताकतप्रश्न: जो कुछ हुआ है, वह यूक्रेन युद्ध के प्रति रूस के नजरिए को कैसे प्रभावित करेगा?उत्तर: कुलीन वर्ग हो या आम जनता, अधिकांश रूसी यूक्रेन पर आक्रमण नहीं करना चाहते थे। यह बहुत हद तक एक छोटी सी कोटरी के साथ पुतिन का अपना निर्णय था जिसमें शोइगु भी शामिल हैं। लेकिन युद्ध शुरू हो गया तो कोई रूसी नहीं चाहता कि उनका देश हार जाए। यह कुछ-कुछ देशभक्ति का मामला है, लेकिन बड़ा डर ये है कि अगर रूसी सत्ता का पतन हुआ तो 1990 के दशक की अराजकता और मुसीबत वाले दिन देखने पड़ सकते हैं, यहां तक कि रूसी राज्य का विघटन भी हो सकता है।यूक्रेन में युद्धविराम की उम्मीद में पुतिन ने वैगनर पर सख्ती के साथ कट्टरपंथी राष्ट्रवादी तत्वों को भी नियंत्रित किया है, जो आर-पार की लड़ाई चाहते हैं। यह संकेत दे सकता है कि पुतिन युद्धविराम की तलाश में हैं, बशर्ते रूस के पास 2014 के बाद से अपने कब्जे में आए सभी यूक्रेनी क्षेत्रों को अपने अधीन रखने में कामयाब रहता है तो। हालांकि, यह यूक्रेनियों के लिए पूरी तरह से अस्वीकार्य है। हालांकि, ये अटकलें हैं। यहां तक कि रूस में धनाढ्य वर्ग के मेरे जानने वाले स्वीकार करते हैं कि उन्हें पुतिन की सोच या उनकी अगली चाल के बारे में कुछ नहीं पता।जी-20 में क्यों नहीं आ रहे पुतिन? जिनपिंग से ज्यादा अहम है रूसी राष्ट्रपति का भारत न आना, समझेंप्रश्न: क्या आज रूस के भीतर पुतिन के खिलाफ आक्रोश है?उत्तर: जैसा कि मैंने पहले बताया, यहां तक कि रूस का धनाढ्य तबका जो यूक्रेन पर आक्रमण से बहुत नाखुश था, वो भी शासन के पतन और सोवियत संघ के विघटन के समान अराजकता का जोखिम नहीं उठाना चाहता है। सब कुछ इस बात पर निर्भर करता है कि यूक्रेन में युद्ध के मैदान में क्या होता है। यदि रूस अपनी मौजूदा सीमाओं को बनाए रखता है, तो शासन बच जाएगा। एक और बुरी हार इसे बर्बाद कर सकती है। कट्टरपंथी राष्ट्रवादी, पुतिन से नाराज हैं, लेकिन निश्चित रूप से वो भी हार का जोखिम भी नहीं उठाना चाहते हैं।जनमत सर्वेक्षणों के अनुसार, रूसियों का एक बड़ा बहुमत अभी भी पुतिन का समर्थन करता है। रूसी उदारवादियों की कोई ताकत नहीं बची है क्योंकि उनमें से बहुत से लोग न केवल युद्ध के खिलाफ बल्कि स्पष्ट रूप से यूक्रेन और यूक्रेनी सेना के समर्थन में भी सामने आए हैं जिससे रूस में आम लोगों को तकलीफ ही होती है।प्रश्न: रूस का भविष्य क्या है?उत्तर: रूस ने पश्चिमी देशों के आर्थिक प्रतिबंधों को अच्छी तरह से झेल लिया है, लेकिन उसका पश्चिम के साथ व्यापार लगभग खत्म हो गया है। इसलिए, रूस अब आर्थिक और राजनीतिक रूप से चीन पर ज्यादा से ज्यादा निर्भर हो जाएगा। हालांकि, यह एक साझेदारी रहेगी, गठबंधन नहीं। चीन, रूस के साथ यूक्रेन में नहीं लड़ेगा और रूस चीन के साथ अमेरिका के खिलाफ नहीं लड़ेगा। न ही रूस किसी भी चीनी दबाव को स्वीकार करेगा, उदाहरण के लिए भारत के साथ संबंधों को कम करने के लिए। इसलिए, रूस शायद BRICS के भीतर एक मध्यम आकार की शक्ति होगी।हालांकि, सब कुछ इस बात पर निर्भर करता है कि यूक्रेन में क्या होता है। यदि रूस वहां पराजित हो जाता है, तो एक राज्य के रूप में इसके अपंग होने की आशंका है। दूसरी ओर, यदि नाटो यूक्रेन पर रूस के साथ सीधे संघर्ष में आ जाता है, तो यह परमाणु युद्ध में बढ़ सकता है जिसमें न केवल रूस और पश्चिम बल्कि पूरी आधुनिक सभ्यता का विनाश हो जाएगा।यूक्रेन का नाम भी लिया तो… G20 के लिए भारत आ रहे रूस के विदेश मंत्री लावरोव ने धमकायाप्रश्न: शी और पुतिन की नई दिल्ली जी20 में अनुपस्थिति और संयुक्त वक्तव्य में यूक्रेन के पैराग्राफों पर मतभेद से आप क्या समझते हैं?उत्तर: चीन, रूस और ईरान और कुछ हद तक ब्राजील, दक्षिण अफ्रीका और अन्य, एक नए बहुध्रुवीय व्यवस्था बनाने की कोशिश कर रहे हैं जो पश्चिम के प्रभुत्व में नहीं होगी, हालांकि यह पश्चिम को बाहर नहीं करेगी। वे जी20 का विरोध नहीं करते हैं, लेकिन वो बीआरआईसी को एक तेज विकल्प के रूप में देखते हैं। पुतिन निश्चित रूप से नहीं चाहते हैं कि जी20 में पश्चिमी देश उनके साथ खुलेआम दुर्व्यवहार करें।जहां तक बात संयुक्त वक्तव्य की है तो रूस इसमें यूक्रेन युद्ध के लिए उसकी निंदा को कभी स्वीकार नहीं करेगा। कई अन्य देश भी निंदा का लहजा थोड़ा उदार रखना चाहेंगे। इस कारण खेमेबंदी होगी। इसी वजह से संयुक्त वक्तव्य पर सहमति नहीं बन पाई है। यह संकेत है कि जी20 टूट चुका सिस्टम है और नई वैश्विक व्यवस्था के लिए एक प्लैटफॉर्म की भूमिका निभाने में असमर्थ है।