लक्षद्वीप प्रशासन की तरफ से डेरी फर्मों को बंद करने और सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों के मिड डे मील से चिकन और मांस हटाने के आदेश पर केरल हाईकोर्ट ने पिछले हफ्ते रोक लगा दी। प्रशासन के आदेश के खिलाफ पेश की गई जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने लक्षद्वीप के स्कूली बच्चों को अगले आदेश तक भोजन में मांस, चिकन, मछली, अंडे देने और डेरी फर्मों को संचालित करने पर लगी रोक हटाने का फैसला दिया।
अदालत ने अपने फैसले में टिप्पणी की है, ‘हम यह नहीं समझ पा रहे हैं कि बच्चों को दिए जाने वाले खाद्य पदार्थों के मेनू में बदलाव कैसे हो सकता है, जबकि यह स्वास्थ्य से जुड़े महत्वपूर्ण पहलुओं को ध्यान में रखते हुए तैयार किया गया है।’ मामले की अगली सुनवाई 30 जून को होने वाली है। कोर्ट ने 27 जनवरी को मध्याह्न भोजन योजना पर लक्षद्वीप स्तरीय निगरानी समिति और जिला टास्क फोर्स स्तर की बैठक का जिक्र करते हुए कहा कि इसमें आए एक डॉक्टर ने भी कहा था कि मांसाहारी भोजन, विशेष रूप से मछली, चिकन और अंडा बच्चों के विकास के लिए जरूरी हैं। डॉक्टर ने कहा था कि बच्चों के शारीरिक और मानसिक विकास के लिए संतुलित शाकाहारी और मांसाहारी भोजन की जरूरत होती है।

मिड डे मील कार्यक्रम के लक्ष्य में ही शामिल है कि बच्चों को पौष्टिक भोजन उपलब्ध कराया जाए, ताकि उनका सही ढंग से मानसिक और शारीरिक विकास हो। 15 अगस्त 1995 को सरकारी प्राथमिक विद्यालयों में पढ़ने वाले बच्चों को प्रोत्साहित करने के लिए कुछ हजार ब्लॉकों में मिड डे मील की शुरुआत की गई। वर्ष 2002 से पूरे देश में पहली से पांचवीं कक्षा तक पढ़ने वाले बच्चों के लिए यह कार्यक्रम लागू किया गया। बाद में 8वीं कक्षा तक के बच्चों को भी इसका लाभ दिया गया। पहले प्रत्येक बच्चे को भोजन में 300 कैलोरी और 8 से 12 ग्राम तक प्रोटीन देना तय हुआ था। बाद में सितंबर 2004 में बच्चों की थाली में कैलोरी और प्रोटीन की मात्रा बढ़ा दी गई।
हालांकि मिड मील या सरकारी कैंटीन से नॉन-वेज हटाने की बात नई नहीं है। वर्ष 2019 में मध्य प्रदेश के आंगनबाड़ी में पढ़ने वाले बच्चों को वहां की सरकार ने मिड डे मील में अंडे देने का फैसला किया था। इस फैसले के विरोध में बीजेपी के राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय ने ट्वीट किया था, ‘हम इसका विरोध करेंगे। मैं समझता हूं लोगों की धार्मिक मान्यताओं में हस्तक्षेप नहीं होना चाहिए।’ इसी साल मार्च में गुरुग्राम नगर निगम ने ‘हिंदू भावनाओं’ का हवाला देते हुए क्षेत्र के सभी मीट शॉप को बंद करने का फैसला किया। हालांकि थाली से जुड़ी राजनीति पर लंबे समय से बहस चल रही है। मांसाहार या शाकाहार पर जागरूकता फैलाना एक बात है, लेकिन जहां यह लोगों के फूड हैबिट का हिस्सा है, वहां सरकार की ओर से आदेश निकालकर इसमें फेरबदल करना एकदम अलग बात।
यह बात भी याद रखने की है कि कुल मिलाकर देश 70 प्रतिशत से अधिक लोग मांसाहारी हैं। अलग-अलग राज्यों में खान-पान की आदतों में भिन्नताएं हैं। पश्चिम बंगाल, असम, केरल, तेलंगाना जैसे कुछ राज्यों में 90 प्रतिशत से अधिक मांसाहारी हैं। राजस्थान, हरियाणा और पंजाब सबसे कम मांसाहारी राज्य हैं। गुजरात में 40 प्रतिशत से अधिक मांसाहारी आबादी है। दक्षिण भारत के पुरातात्विक साक्ष्य और साहित्य से पता चलता है कि वहां मांस उत्पादों का व्यापक उपयोग प्राचीन काल से ही होता रहा है। मध्य युग के दौरान पहली बार भोजन पर ग्रंथों की रचना की गई। उदाहरण के लिए, मानसोलस्सा (Mansolassa) और लोकोपक्र (Lokopakra) नामक ग्रंथों में इसके भरपूर संदर्भ हैं।
ऐसे में केरल हाईकोर्ट ने बच्चों के पोषण को लेकर जो फैसला दिया है, उसे बच्चों के हित में ही मानना चाहिए। सरकारों को भी चाहिए कि वह लोगों की थाली से छेड़छाड़ करने से बाज आएं, क्योंकि किसी भी क्षेत्र की थाली कोई एक दिन में नहीं बनी है। इसे बनने में कई पीढ़ियां लगी हैं।
डिसक्लेमर : ऊपर व्यक्त विचार लेखक के अपने हैं