Supreme Court Hearing On Article 370,घाटी में अब ‘हड़ताल, कर्फ्यू या पथराव’ नहीं होते…370 पर केंद्र की सुप्रीम कोर्ट में दलील, जानें सुनवाई की खास बातें – no hartal stone pelting or curfew in kashmir valley post revocation of article 370 says govt in supreme court

नई दिल्ली : संविधान के अनुच्छेद 370 के (Article 370 news) तहत जम्मू-कश्मीर को मिले विशेष दर्जे को खत्म करने (Abrogation of Article 370 and 35a) के केंद्र के फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट (Article 370 Hearing in Supreme Court) में सुनवाई चल रही है। मंगलवार को सुनवाई के 12वें दिन सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने केंद्र के फैसले का बचाव करते हुए (Central Govt on Article 370 in SC) कहा कि अब जम्मू-कश्मीर में ‘हड़ताल, कर्फ्यू या पत्थरबाजी’ नहीं होती। पहली बार 2020 में वहां स्थानीय निकाय के चुनाव भी हुए। इस दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि राज्य में चुनाव को अनिश्चित काल के लिए टाला नहीं जा सकता। इस पर मेहता ने कहा कि जम्मू-कश्मीर को केंद्रशासित प्रदेश का दर्जा ‘स्थायी व्यवस्था’ नहीं है। वह 31 अगस्त को वह इस मुद्दे पर कोर्ट में विस्तार से अपनी बात रखेंगे।केंद्र सरकार की तरफ से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने सुप्रीम कोर्ट से कहा कि जम्मू-कश्मीर को केंद्र शासित प्रदेश का दर्जा ‘स्थायी व्यवस्था’ नहीं है। उन्होंने कहा कि वह 31 अगस्त को कोर्ट में इस जटिल राजनीतिक मुद्दे पर विस्तार से बात रखेंगे। इससे पहले चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (CJI) डी. वाई. चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली 5 जजों की संविधान पीठ ने अनुच्छेद 370 को निरस्त करने को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए केंद्र से पूर्ववर्ती राज्य में चुनावी लोकतंत्र बहाल करने के लिए एक विशेष समय सीमा तय करने को कहा था।Article 370 News: 35A के जरिए मूल अधिकार छीन लिए गए, CJI चंद्रचूड़ की अहम टिप्पणीसॉलिसिटर जनरल मेहता ने कहा, ‘जम्मू-कश्मीर का केंद्र शासित प्रदेश का दर्जा कोई स्थायी व्यवस्था नहीं है। जहां तक लद्दाख की बात है, इसका केंद्र शासित प्रदेश का दर्जा कुछ समय के लिए बरकरार रहने वाला है।’ उन्होंने कहा कि वह जम्मू-कश्मीर और लद्दाख के केंद्र शासित प्रदेश के दर्जे के भविष्य पर पीठ के समक्ष 31 अगस्त को एक विस्तृत बयान देंगे।संविधान पीठ में सीजेआई चंद्रचूड़ के अलावा न्यायमूर्ति संजय किशन कौल, न्यायमूर्ति संजीव खन्ना, न्यायमूर्ति बी आर गवई और न्यायमूर्ति सूर्य कांत भी शामिल हैं।मेहता अनुच्छेद 370 को समाप्त किए जाने को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट में केंद्र सरकार का पक्ष रख रहे हैं। वह पूर्ववर्ती राज्य का विशेष दर्जा खत्म करने के केंद्र के फैसले का बचाव कर रहे हैं। सुनवाई के दौरान बेंच ने कहा, ‘लोकतंत्र महत्वपूर्ण है, लेकिन हम सहमत हैं कि राष्ट्रीय सुरक्षा परिदृश्य के आलोक में राज्य का पुनर्गठन किया जा सकता है।’न्यायालय ने कहा कि चुनावी लोकतंत्र के अभाव को अनिश्चित काल तक नहीं रहने दिया जा सकता।बेंच ने कहा, ‘इसे समाप्त होना होगा…हमें विशेष समय सीमा बताइए कि आप कब वास्तविक लोकतंत्र बहाल करेंगे। हम इसे रिकॉर्ड करना चाहते हैं।’ बेंच ने मेहता और अटॉर्नी जनरल आर. वेंकटरमणी से सरकार से निर्देश प्राप्त करने और कोर्ट में वापस आने को कहा।सॉलिसिटर जनरल (एसजी) मेहता ने स्पष्ट किया कि वह अदालत के समक्ष बयान देने के लिए और निर्देश मांगने के लिए अटॉर्नी जनरल के साथ सरकार में हाई-लेवल अफसरों संग बैठक करेंगे।उन्होंने कहा कि केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने संसद में इसी तरह का बयान दिया था। मेहता ने गृह मंत्री के भाषण का जिक्र करते हुए कहा, ‘यह कोई स्थायी स्थिति नहीं है, स्थिति सामान्य होने के बाद हम चाहते हैं कि यह फिर से राज्य बने।’मेहता ने संविधान पीठ को बताया कि जम्मू-कश्मीर के इतिहास में पहली बार 2020 में स्थानीय निकायों के चुनाव हुए जिसमें लगभग 34,000 प्रतिनिधि चुने गए। उन्होंने कहा कि धारा 370 हटने के बाद घाटी में कोई ‘हड़ताल (हड़ताल), पथराव या कर्फ्यू’ नहीं है।इस दौरान सीजेआई चंद्रचूड़ ने मौखिक रूप से पूछा, ‘हम समझते हैं कि ये राष्ट्रीय सुरक्षा के मामले हैं। हम समझते हैं कि आखिरकार राष्ट्र का संरक्षण ही एक सर्वोपरि चिंता है। लेकिन आपको किसी बंधन में डाले बिना, आप (एसजी) और अटॉर्नी जनरल दोनों उच्चतम स्तर पर निर्देश मांग सकते हैं – क्या कोई समय सीमा ध्यान में रखी गई है?’संविधान पीठ ने सवाल किया कि क्या किसी विशेष क्षेत्र में स्थिरता लाने के लिए संघ एक निश्चित अवधि तक नियंत्रण नहीं रख सकता है।सीजेआई चंद्रचूड़ ने टिप्पणी की, ‘क्या हमें संसद को राष्ट्र के संरक्षण के हित में, एक निश्चित अवधि के लिए,… एक निश्चित निर्धारित अवधि के लिए, यह अनुमति नहीं देनी चाहिए कि इस विशेष राज्य को यूटी के दायरे में जाना चाहिए, इस स्पष्ट समझ के साथ कि एक निश्चित समय के बाद यह राज्य की स्थिति में वापस आ जाएगा।’उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार को जम्मू-कश्मीर में हुई प्रगति के बारे में संविधान पीठ के समक्ष एक बयान देना होगा। उन्होंने कहा, ‘यह स्थायी रूप से केंद्रशासित प्रदेश नहीं हो सकता।’अदालत ने कहा, ‘चाहे वह एक राज्य हो या केंद्र शासित प्रदेश, अगर एक राष्ट्र जीवित रहता है तो हम सभी जीवित रहते हैं। यदि राष्ट्र स्वयं जीवित नहीं रहता है, तो राज्य या केंद्रशासित प्रदेश का कोई प्रश्न या प्रासंगिकता नहीं है।’कॉन्स्टिट्यूशनल बेंच 2019 के राष्ट्रपति के आदेश को चुनौती देने वाली कई याचिकाओं पर सुनवाई कर रही है, जिसमें पूर्ववर्ती जम्मू-कश्मीर राज्य का विशेष समाप्‍त करने देने और इसे दो केंद्र शासित प्रदेशों में विभाजित करने का आदेश दिया गया था। लंबित मामले में, कश्मीरी पंडितों की तरफ से पूर्ववर्ती राज्य जम्मू-कश्मीर को दिए गए विशेष दर्जे को छीनने के केंद्र के कदम का समर्थन करते हुए हस्तक्षेप आवेदन भी दायर किए गए हैं।(एजेंसियों से इनपुट के साथ)