Supreme Court Hearing On Article 370 News,’आर्टिकल 370 में ही उसे खत्म करने की राष्ट्रपति के पास शक्ति…’, साल्वे की दलील, जानिए सुप्रीम कोर्ट में क्या हुआ – article 370 hearing in supreme court harish salve arguements centre on jammu kashmir election all update

नई दिल्ली : आर्टिकल 370 को निरस्त (Abrogation of Article 370) किए जाने को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट में गुरुवार को 13वें दिन सुनवाई हुई। सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार ने शीर्ष अदालत को भरोसा दिया कि जम्मू-कश्मीर में किसी भी समय चुनाव हो सकते हैं। इसके लिए कोई टाइमलाइन नहीं दी जा सकती क्योंकि चुनाव का फैसला इलेक्शन कमिशन पर निर्भर है। केंद्र ने साथ में यह भी कहा कि चुनाव भले ही किसी भी समय हो सकते हैं लेकिन जम्मू-कश्मीर के पूर्ण राज्य के दर्जे की बहाली में अभी कुछ वक्त लगेगा। सुनवाई के दौरान सीनियर ऐडवोकेट हरीश साल्वे ने अनुच्छेद 370 को निरस्त किए जाने का समर्थन करने वाले पक्षों में से एक की तरफ से दलीलें दीं। उन्होंने कहा कि जम्मू-कश्मीर की कॉन्स्टिट्यूएंट असेंबली (संविधान सभा) अब वजूद में नहीं है, लिहाजा राष्ट्रपति को आर्टिकल 370 पर फैसला लेने का अधिकार है। उन्होंने कहा कि अगर कॉन्स्टिट्यूएंट असेंबली वजूद में होती तब भी राष्ट्रपति ही फैसला करते क्योंकि संविधान सभा के पास सिर्फ सिफारिश का अधिकार था। साल्वे ने अपनी दलील में कहा कि जहां तक जम्मू-कश्मीर के विलय की बात है, उससे जुड़े मामलों में आखिरी फैसला केंद्र सरकार ही कर सकती है। 13वें दिन की सुनवाई में और क्या हुआ? हरीश साल्वे ने क्या दलीलें दीं? सॉलिसिटर जनरल और अटॉर्नी जनरल ने केंद्र की तरफ से क्या तर्क रखें? आइए जानते हैं विस्तार से।’जम्मू-कश्मीर की संविधान सभा होती तब भी राष्ट्रपति के पास ही फैसले का अधिकार’आर्टिकल 370 को निरस्त करने के केंद्र के फैसले का समर्थन करते हुए हरीश साल्वे ने अपनी दलील में कहा कि कहा जा रहा है कि राष्ट्रपति सिर्फ कॉन्स्टिट्यूएंट असेंबली की सिफारिश पर ही कार्रवाई कर सकते हैं। तो क्या राष्ट्रपति की भूमिका सिर्फ कॉन्स्टिट्यूएंट असेंबली की इच्छा को अमलीजामा पहनाने की है या उनसे सिफारिश पाने की? निश्चित तौर पर सिफारिश की ही। अगर कॉन्स्टिट्यूएंट असेंबली वजूद में होती तब भी वह राष्ट्रपति को सिफारिश ही भेज सकती है। सीजेआई डीवाई की अगुआई वाली कॉन्स्टिट्यूशनल बेंच में जस्टिस संजय किशन कौल, जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस सूर्यकांत भी शामिल हैं।’370 का प्रावधान राजनीतिक मजबूरी वाला समझौता, इसमें लॉजिक ढूंढना मुश्किल’इस पर सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने सवाल किया कि विधायी शक्तियों के बंटवारे में बदलाव के वक्त सहमति की जरूरत थी। विलय के समझौते (Instrument of Accession) में जिन क्षेत्रों का जिक्र है, उनसे इतर मामलों में केंद्र-राज्य की सहमति का प्रावधान है। आर्टिकल 370 (3) के तहत शक्तियों के इस्तेमाल से 370 को पूरी तरह निरस्त किया जा सकता है। सीजेआई ने यह भी कहा कि 370(1)(b) के तहत संसद को सिर्फ कुछ विशिष्ट विषयों पर कानून बनाने का अधिकार है जिनका इंस्ट्रूमेंट ऑफ एक्सेशन में जिक्र है। बाकी में राज्य की सहमति जरूरी है। इसके जवाब में साल्वे ने कहा कि इस प्रावधान का इतिहास बताता है कि इस प्रावधान में लॉजिक ढूंढना मुश्किल होगा क्योंकि ये एक राजनीतिक समझौता था। आखिर कॉन्स्टिट्यूएंट असेंबली होनी ही क्यों चाहिए थी? इस तरह के राजनीतिक प्रावधानों की संवैधानिक व्याख्या में इस अदालत को हर मुमकिन व्यापक अर्थ देना चाहिए।’विलय समझौते के बाद भी आखिरी फैसला केंद्र का ही’हरीश साल्वे ने दलील दी कि जहां तक विलय समझौते की बात है तो किसी मामले में आखिरी फैसला केंद्र सरकार का ही होगा। सीनियर ऐडवोकेट ने कहा कि सब क्लॉज (डी) में कहा गया है कि संविधान के बाकी दूसरे प्रावधान लागू होंगे। इसमें सहमति की जरूरत नहीं है। अगर आप 370 (1) (b) देखते हैं तो इसमें कंसलटेशन की बात कही गई है, इस तरह शक्तियों का बंटवारा किया गया है।’राष्ट्रपति के पास आर्टिकल 370 को निरस्त करने का पूरा अधिकार’साल्वे ने कहा कि एक कंप्रोमाइज हुआ और विलय अपने आप में पूर्ण है। यह भारत का हिस्सा है और एक भारतीय राज्य है। अब जब कोई राजनीतिक मजबूरी नहीं है तो सब आर्टिकल 3 का प्रावधान है उस राजनीतिक मजबूरी को खत्म करने के लिए। साल्वे ने कहा कि राष्ट्रपति के पास इस आर्टिकल को निरस्त करने का अधिकार सुरक्षित है और इसमें किसी तरह की सहमति की जरूरत नहीं है। साल्वे ने कहा कि आर्टिकल 370 तो संविधान का ही हिस्सा है। उसी में राष्ट्रपति को अधिकार दिया गया है। उन्होंने इस दौरान आर्टिकल 356 के तहत राष्ट्रपति को मिले अधिकारों का भी जिक्र किया। साल्वे ने कहा कि राष्ट्रपति किसी शख्स को बर्खास्त कर सकते हैं, नियुक्त कर सकते हैं, किसी संस्था का गठन कर सकते हैं, विघटन कर सकते हैं।चुनाव किसी भी समय हो सकते हैं, राज्य का दर्जा बहाल होने में कुछ समय लगेगा: केंद्रसुनवाई के दौरान केंद्र सरकार ने उच्चतम न्यायालय से कहा कि जम्मू-कश्मीर में चुनाव ‘अब किसी भी समय’ हो सकते हैं क्योंकि मतदाता सूची पर अधिकांश काम पूरा हो चुका है, और इसके लिए विशिष्ट तारीखों का फैसला करना निर्वाचन आयोग पर निर्भर है। प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति संजय किशन कौल, न्यायमूर्ति संजीव खन्ना, न्यायमूर्ति बीआर गवई और न्यायमूर्ति सूर्यकांत की पीठ से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने यह भी कहा कि जम्मू और कश्मीर का केंद्रशासित प्रदेश का दर्जा ‘अस्थायी’ है और पूर्ण राज्य का दर्जा बहाल करने में ‘कुछ समय लगेगा’।जम्मू-कश्मीर में पंचायत, नगर निकाय और विधानसभा के चुनाव भी होंगे: केंद्रसॉलिसिटर तुषार मेहता ने बेंच को बताया कि जम्मू-कश्मीर में चुनाव तीन स्तरों पर होंगे- पहला पंचायत चुनाव, दूसरा नगर निकाय चुनाव और फिर विधानसभा स्तर पर चुनाव होगा। उन्होंने कहा, ‘केंद्र सरकार अब से किसी भी समय चुनाव कराने के लिए तैयार है… यह भारत निर्वाचन आयोग और राज्य के चुनाव आयोग को निर्णय लेना है कि कौन सा चुनाव पहले होगा और कैसे होगा। मतदाता सूची को अद्यतन करने की प्रक्रिया लगभग पूरी हो चुकी है और एक महीने में यह पूरी तरह संपन्न हो जाएगी।’राज्य का दर्जा बहाल किए जाने के मुद्दे पर मेहता ने कहा कि वह पहले ही एक बयान दे चुके हैं और इसके अलावा संसद के पटल पर गृह मंत्री अमित शाह का बयान था कि जम्मू-कश्मीर में यूटी (केंद्रशासित प्रदेश) एक ‘अस्थायी व्यवस्था’ है।मेहता ने कहा, ‘हम बेहद असाधारण स्थिति से निपट रहे हैं।’पूर्ण राज्य का दरजा बहाल करने की सटीक टाइमलाइन नहीं दे सकते: केंद्रउन्होंने कहा, ‘जम्मू-कश्मीर में पूर्ण राज्य का दर्जा बहाल करने की सटीक समयसीमा फिलहाल नहीं दी जा सकती। इसमें कुछ समय लग सकता है। जम्मू-कश्मीर में राज्य का दर्जा बहाल करने के लिए कई कदम उठाए जा रहे हैं।”आतंकी घटनाओं और घुसपैठ में कमी, अब पथराव, हड़ताल नहीं होते’मेहता ने कहा कि 2018 की तुलना में जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद से संबंधित घटनाओं में 45.2 प्रतिशत की कमी आई है और पूर्ववर्ती राज्य में सबसे बड़ी चिंताओं में से एक रही घुसपैठ में 90.2 प्रतिशत की कमी हो गई है।अधिक आंकड़ों का हवाला देते हुए उन्होंने कहा, ‘पत्थरबाजी और हड़ताल की घटनाएं जो 2018 में 1,767 थीं, अब शून्य हो गई हैं। सुरक्षाकर्मियों के हताहत होने की घटनाओं में 60.9 प्रतिशत की कमी आई है, अलगाववादी समूहों द्वारा समन्वित संगठित बंद की घटनाएं 2018 में 52 थीं जो 2023 में शून्य हो गई हैं।’उन्होंने कहा कि राज्य का दर्जा बहाल करने के लिए कई कदम उठाए जा रहे हैं और लगभग 7,000 करोड़ रुपये के निवेश का वादा किया गया है, जिसमें से 2,000 करोड़ रुपये से अधिक का निवेश पहले ही किया जा चुका है।मेहता ने कहा कि कई परियोजनाएं जारी हैं और 53 प्रधानमंत्री विकास परियोजनाओं में से 32 पूरी हो चुकी हैं।पीठ उनके द्वारा दिए गए आंकड़े दर्ज कर रही थी।मेहता ने कहा कि जहां तक लद्दाख का सवाल है, तो वहां लेह और करगिल दो क्षेत्र हैं। उन्होंने कहा कि लेह से संबंधित पर्वतीय विकास परिषद के चुनाव संपन्न हो गए हैं, और करगिल के लिए चुनाव अगले महीने होगा।सिब्बल ने विकास और शांति से जुड़े सरकार के आंकड़ों को रिकॉर्प पर नहीं लेने की अपील कीजम्मू-कश्मीर नेशनल कॉन्फ्रेंस के नेता मोहम्मद अकबर लोन की ओर से पेश वरिष्ठ वकील अधिवक्ता सिब्बल ने पीठ द्वारा केंद्र सरकार के दिए गए आंकड़ों को रिकॉर्ड करने पर आपत्ति जताई और कहा कि इसे रिकॉर्ड पर नहीं लिया जाना चाहिए क्योंकि यह अदालत के ‘दिमाग को प्रभावित करेगा’ जो अनुच्छेद 370 के संवैधानिक मुद्दे की पड़ताल कर रही है।प्रधान न्यायाधीश चंद्रचूड़ ने सिब्बल को आश्वासन दिया कि सॉलिसिटर जनरल ने जो भी डेटा दिया है, उसका पांच न्यायाधीशों की पीठ द्वारा तय किए जा रहे संवैधानिक मुद्दे पर कोई असर नहीं पड़ेगा।पीठ ने कहा, ‘उन्होंने जो दिया है वह अदालत के सवाल और चुनावी लोकतंत्र को बहाल करने के लिए भारत संघ द्वारा उठाए गए कदमों के अनुरूप है। हमें सॉलिसिटर जनरल के प्रति निष्पक्ष होना चाहिए क्योंकि उन्होंने केवल रोडमैप दिया है।’इसने कहा, ‘जिस विकास की प्रकृति के बारे में सरकार कहती है कि यह अगस्त 2019 के बाद हुआ, यह आपकी संवैधानिक चुनौती के लिए प्रासंगिक नहीं हो सकता और इसलिए, वे संवैधानिक चुनौती पर क्या प्रतिक्रिया देते हैं, इससे स्वतंत्र रूप से निपटना होगा।’5000 लोग नजरबंद तो हड़ताल कैसे होगी? सिब्बल का काउंटरइस दौरान कपिल सिब्बल ने कहा, ‘वे कह रहे हैं कि हड़ताल शून्य हो गई हैं। पांच हजार लोगों को नजरबंद कर दिया गया। हड़ताल कैसे होंगी, जब आप उन्हें अस्पताल जाने तक की इजाजत नहीं देंगे। इस अदालत की कार्यवाही टेलीविजन पर प्रसारित की जाती है और ये आंकड़े एक राय बनाने में मदद कर सकते हैं।’प्रधान न्यायाधीश ने सिब्बल से कहा, ‘ये ऐसे मामले हैं जहां नीतिगत मतभेद हो सकते हैं और होने भी चाहिए लेकिन यह संवैधानिक तर्कों को प्रभावित नहीं कर सकते।’केंद्र ने 29 अगस्त को शीर्ष अदालत से कहा था कि जम्मू-कश्मीर की केंद्रशासित प्रदेश की स्थिति ‘स्थायी’ नहीं है और वह 31 अगस्त को अदालत में इस जटिल राजनीतिक मुद्दे पर एक विस्तृत बयान देगा।अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के केंद्र के फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने सरकार से पूर्ववर्ती राज्य में चुनावी लोकतंत्र की बहाली के लिए एक विशिष्ट समयसीमा निर्धारित करने को कहा था।(भाषा से भी इनपुट)