supreme court on passive euthanasia, इच्छामृत्यु मामले में मैजिस्ट्रेट के सामने लिविंग विल लिखने की शर्त हटी, सुप्रीम कोर्ट ने 2018 के फैसले में किया बड़ा बदलाव – supreme court makes easy the conditions of passive euthanasia for right to die with dignity

नई दिल्ली : पैसिव (निष्क्रिय) इच्छामृत्यु मामले में जारी किए गए गाइडलाइंस में बदलाव कर उसे ज्यादा व्यवहारिक बनाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने मैजिस्ट्रेट के सामने लिविंग विल करने की प्रक्रिया की शर्त को हटा दिया है। साथ ही कोर्ट ने इच्छामृत्यु चुनने के लिए लोगों की शर्तें और आसान कर दी हैं। अग्रिम मेडिकल निर्देश विल (advance medical directives/living will) पर 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने जो आदेश दिया था उसकी शर्ते और आसान कर दी गई हैं।सुप्रीम कोर्ट ने 2018 के आदेश में बदलाव करते हुए डॉक्टरों के रोल को ज्यादा अहमियत दी है। कोर्ट ने कहा कि डॉक्टरो ने इस मामले में खासी परेशानी के बारे में जानकारी दी और यह जरूरी हो गया था कि कोर्ट दोबारा से दिशानिर्देशों पर नजर डाले और बदलाव करे। शीर्ष अदालत ने 2018 में पैसिव यूथेनेशिया यानी परोक्ष इच्छामृत्यु और एडवांस डायरेक्टिव यानी लिविंग विल को मान्यता दी थी और इसके लिए गाइडलाइंस तय किए थे। सुप्रीम कोर्ट में तमाम अर्जी दाखिल कर कहा गया था कि यह गाइडलाइंस व्यवहारिक नहीं है इसलिए इसमें बदलाव की जानी चाहिए। 9 मार्च 2018 को सुप्रीम कोर्ट ने इच्छामृत्या मामले में एक अहम फैसला दिया था और कहा था कि सम्मान के साथ मौत का हक मौलिक अधिकार है और जो लोग कोमा या मरणासन्न स्थिति में पहुंच जाते हैं उनके लाइफ सपोर्ट सिस्टम हटाते हुए मृत्यु को अपनाने की सशर्त इजाजत दी थी। अदालत ने पैसिव यूथेनेशिया यानी परोक्ष इच्छामृत्यु और एडवांस डायरेक्टिव यानी लिविंग विल को मान्यता दी थी और इसके लिए गाइडलाइंस तय किए थे। इंडियन काउंसिल फॉर क्रिटिकल केयर मेडिसीन ने गाइडलाइंस में बदलाव की मांग की थी और कहा था कि मौजूदा व्यवस्था व्यवहारिक नहीं है और यह काम नहीं कर पा रहा है। 2018 के जजमेंट में जो गाइडलाइंस जारी हुए थे उसके बदलाव के लिए मामला दोबारा सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों के सामने आया।क्या है पैसिव यूथेंसिया?यूथेंसिया यानी इच्छा मृत्यु मुख्य तौर पर दो तरह की होती हैं। एक ऐक्टिव यूथेंसिया यानी सक्रिय इच्छामृत्यु और दूसरी पैसिव यूथेंसिया यानी अक्रिय या अप्रत्यक्ष इच्छामृत्यु। दोनों में अंतर ये है कि ऐक्टिव यूथेंसिया में संबंधित व्यक्ति की मौत के लिए कुछ किया जाता है जैसे कोई दवा देना, इंजेक्शन देना आदि। जबकि पैसिव यूथेंसिया में मरीज की जान बचाने के लिए कुछ भी नहीं किया जाता। यानी उसे स्वाभाविक तौर पर मरने के लिए छोड़ दिया जाता है। जैसे मरीज को लाइफ सपोर्ट सिस्टम से हटा देना।क्या क्या बदलाव हुए इसे ऐसे समझें2018 का आदेश: केवल एक गार्जियन या करीबी रिश्तेदार को इसके लिए नॉमिनेट किया जा सकता था. जिन्हें आने वाले दिनों में निर्देश के अमल के समय इलाज करने वाले डॉक्टर बीमारी और उसके परिणाम आदि के बारे में सूचित करेंगे। मौजूदा फैसला: दस्तावेज में एक से ज्यादा गार्जियन या रिश्तेदार का नाम इसके लिए लिया जाएगा जिन्हें डॉक्टर बीमारी की प्रकृति और चिकित्सा की उपलब्धता और परिणाम के बारे में बताएंगे।2018 का आदेश: लिविंग विल लिखने वाले यह विल ज्यूडिशियल मैजिस्ट्रेट (फर्स्ट क्लास )और दो गवाहों की उपस्थिति में यह विल बनाएंगे।अभी का फैसला: लीविंग विल तैयार करने वाले गवाहों की उपस्थिति में तैयार करेंगे और उसे गजेटेड ऑफिसर या नोटरी अटेस्टेड करेंगे। नोटरी और गवाह इस बात को रेकॉर्ड करेंगे कि विल लिखने वाले ने मर्जी से बिना किसी दबाव में यह लिखा है और वह इसके नतीजे जानता है।डिस्ट्रिक्ट कोर्ट के रजिस्ट्री की भूमिका के बारे में2018 का आदेश: ज्यूडिशियल मैजिस्ट्रेट को दस्तावेज की एक कॉपी रजिस्ट्री में फॉरवर्ड करना होगा और वहां इसे रखना होगा। मौजूदा आदेश : इस शर्त को हटा दी गई है।शीर्ष अदालत ने गाइडलाइंस में बदलाव करते हुए यह भी कहा है कि विल एग्जेक्युट करने वाले इसकी कॉपी अपने फैमिली फिजिशिन को दे सकता है। ताकि गंभीर तौर पर मरीज के बीमार होने की स्थिति में लीविंग विल की सत्यता को प्रमाणित कर सके। परोक्ष इच्छामृत्यु यानी पैसिव यूथेनेशिया मामले की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने इस बात पर सहमत हो गया था कि वह वह परोक्ष इच्छामृत्यु मामले में जारी किए गए गाइडलाइंस में बदलाव करेगा।