नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने कांग्रेस नेता राहुल गांधी की लोकसभा सदस्यता बहाल करने का रास्ता साफ करते हुए मानहानि केस में उन्हें दोषी ठहराए जाने के फैसले पर रोक लगा दी। राहुल गांधी को 2019 में मोदी उपनाम को लेकर की गई उनकी टिप्पणी से जुड़े आपराधिक मानहानि केस में सूरत की एक अदालत ने दो साल की सजा सुनाई थी। शीर्ष अदालत ने इस मामले में राहुल गांधी की अपील लंबित होने तक दोषसिद्धि पर रोक लगा दी। लेकिन अदालत ने उन्हें राहत देते वक्त नसीहत भी दी कि भाषण देते वक्त वह सावधानी बरतें क्योंकि इसमें कोई शक नहीं है कि उनके बयान ठीक नहीं थे। राफेल मामले में भी सुप्रीम कोर्ट ने राहुल गांधी को ऐसी ही चेतावनी दी थी।लोकसभा अध्यक्ष अब राहुल गांधी की सदस्यता बहाल कर सकते हैं या कांग्रेस नेता शीर्ष अदालत के आदेश के मद्देनजर एक सांसद के रूप में अपनी सदस्यता बहाल करने की अपील कर सकते हैं।जस्टिस बी. आर. गवई, जस्टिस पी. एस. नरसिम्हा और जस्टिस संजय कुमार की बेंच ने कहा कि निचली अदालत के न्यायाधीश ने राहुल गांधी को दोषी ठहराते समय कोई कारण नहीं बताया, सिवाय इसके कि उन्हें अवमानना मामले में शीर्ष अदालत ने चेतावनी दी थी।पीठ ने कहा कि निचली अदालत के न्यायाधीश से यह अपेक्षा की जाती है कि वह मानहानि कानून के तहत दी गई अधिकतम सजा को लागू करने के लिए कुछ कारण बताएं, जिसके कारण गांधी को दो साल की जेल की सजा सुनाई गई। इससे वह चुनावी कानून के प्रावधानों के दायरे में आ गए क्योंकि दो साल की जेल की सजा पाने वाले विधायक या सांसद स्वत: अयोग्य करार हो जाते हैं।यह भी पढ़ें : राहुल गांधी को मानहानि केस में सुप्रीम कोर्ट से राहत के बाद वे 5 संदेश जो 2024 तक जाते हैंपीठ ने कहा कि अपीली अदालत और उच्च न्यायालय ने गांधी को राहत देने से इनकार करते हुए आदेश पारित करते समय इन पहलुओं पर विचार नहीं किया।शीर्ष अदालत ने राफेल मामले के संबंध में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के खिलाफ उनकी ‘चौकीदार चोर है’ टिप्पणी पर राहुल गांधी की तरफ से बिना शर्त माफी मांगे जाने के बाद उनके खिलाफ अवमानना कार्यवाही बंद करते हुए भविष्य में उन्हें और अधिक सावधान रहने की चेतावनी दी थी।न्यायालय ने कहा कि जहां तक दोषसिद्धि का सवाल है, तो भारतीय दंड संहिता की धारा 499 (मानहानि) के तहत दंडनीय अपराध के लिए सजा अधिकतम दो साल की कैद या जुर्माना या दोनों है और निचली अदालत ने अधिकतम दो वर्ष की सजा सुनाई।पीठ ने कहा, ‘अवमानना मामले में उच्चतम न्यायालय द्वारा दी गई चेतावनी के अलावा निचली अदालत के न्यायाधीश द्वारा इसके (दोषसिद्धि) लिए कोई अन्य कारण नहीं बताया गया। केवल निचली अदालत के न्यायाधीश द्वारा सुनाई गई इस अधिकतम सजा के कारण, वह जन प्रतिनिधित्व अधिनियम के प्रावधानों के दायरे में आ गए।’पीठ ने कहा, ‘यदि सजा एक दिन कम होती, तो प्रावधान लागू नहीं होते, खासकर जब कोई अपराध गैर संज्ञेय, जमानती और समझौता योग्य हो। निचली अदालत के न्यायाधीश से कम से कम यह अपेक्षा थी कि वह अधिकतम सजा देने के लिए कुछ कारण बताते। हालांकि अपीलीय अदालत और उच्च न्यायालय ने दोषसिद्धि पर रोक को खारिज करने के लिए काफी पन्ने भरे हैं, लेकिन उनके आदेशों में इन पहलुओं पर विचार नहीं किया गया है।’जो साजिश की गई थी वह आज विफल हुई… राहुल गांधी पर ‘सुप्रीम’ फैसले के बाद बोले अधीर रंजन चौधरीशीर्ष अदालत ने गांधी के खिलाफ अवमानना मामले में अपने पूर्व के आदेश का हवाला देते हुए कहा कि अवमानना याचिका में अपना हलफनामा दाखिल करते समय उनसे ऐसी टिप्पणियां करने में अधिक सावधान रहने और संयम बरतने को कहा गया था, जो कथित तौर पर मानहानिकारक हों।इसने कहा कि गांधी की दोषसिद्धि और उसके बाद संसद की सदस्यता से अयोग्य करार दिए जाने से न केवल सार्वजनिक जीवन में बने रहने का उनका अधिकार प्रभावित हुआ, बल्कि मतदाताओं के अधिकार को भी प्रभावित किया, जिन्होंने उन्हें अपने निर्वाचन क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करने के लिए चुना था।पीठ ने कहा, ‘इसमें कोई संदेह नहीं कि बयान ठीक नहीं थे और सार्वजनिक जीवन में रहने वाले व्यक्ति से सार्वजनिक भाषण देते समय सावधानी बरतने की अपेक्षा की जाती है। इन पहलुओं को ध्यान में रखते हुए और चूंकि निचली अदालत के न्यायाधीश द्वारा अधिकतम सजा देने के लिए कोई कारण नहीं बताया गया, दोषसिद्धि के आदेश पर अंतिम फैसला आने तक रोक लगाने की जरूरत है।’शीर्ष अदालत ने स्पष्ट किया कि वर्तमान अपील का लंबित रहना अपीली अदालत में अपील की राह में बाधक नहीं बनेगा, जिसका निर्णय कानून के अनुसार उसके गुण-दोष के आधार पर किया जाएगा। पीठ ने कहा, ‘मामले के पक्ष अपील के शीघ्र निपटारे के लिए अपीली अदालत का रुख करने के लिए स्वतंत्र होंगे, जिस पर उसके गुण-दोष के आधार पर विचार किया जाएगा।’सुनवाई शुरू होने पर पीठ ने गांधी की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक सिंघवी और शिकायतकर्ता पूर्णेश मोदी का प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ वकील महेश जेठमलानी को 15-15 मिनट के भीतर अपनी दलीलें पूरी करने को कहा।अपनी दलीलें शुरू करते हुए सिंघवी ने कहा कि मोदी उपनाम भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 499 और 500 के अर्थ के तहत एक पहचान योग्य वर्ग नहीं है, जो मानहानि की शिकायत दर्ज करने के लिए कानून के तहत अधिकृत हैं। उन्होंने कहा कि यह पहली बार है कि 13 करोड़ लोगों (मोदी) के एक अव्यवस्थित समूह ने कथित तौर पर खुद को मुकदमा करने वाला वर्ग माना है।सिंघवी ने यह स्पष्ट किया कि वह मामले के गुण-दोष पर बहस नहीं कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि पूर्णेश मोदी, जो मामले में शिकायतकर्ता हैं, मोध वनिका समाज से हैं।उन्होंने कहा, ‘तीन बार के भाषण में एक वाक्य में जिन लोगों का नाम लिया गया है, उन्हें इसकी कोई चिंता नहीं है। दिलचस्प बात यह है कि 13 करोड़ के इस छोटे से समुदाय में जो लोग पीड़ित हैं, वे भाजपा के पदाधिकारी हैं।’सिंघवी ने कहा कि उस 13 करोड़ में कोई एकरूपता, समरूपता, पहचान नहीं है, कोई सीमा रेखा नहीं है और दूसरी बात, पूर्णेश मोदी ने खुद कहा कि उनका मूल उपनाम मोदी नहीं, बल्कि भुटाला है।Rahul Gandhi को सुप्रीम कोर्ट से मिली राहत तो जीजा रॉबर्ट वाड्रा बोले – अब I.N.D.I.A. और मजबूत बनकर उभरेगाउन्होंने दलील दी कि मामले में मानहानि के लिए ‘इरादे’ का आवश्यक घटक गायब है। वरिष्ठ अधिवक्ता ने कहा कि गवाहों में से एक ने निचली अदालत के समक्ष अपने बयान में स्वीकार किया है कि वह ‘मोदी’ उपनाम वाले सभी लोगों को बदनाम करने के गांधी के इरादे से अवगत नहीं हैं।सिंघवी ने कहा कि आपराधिक मानहानि के लिए अधिकतम दो साल की सजा देना अत्यंत दुर्लभ है, जब यह गैर-संज्ञेय, जमानती और समझौता योग्य अपराध है। उन्होंने कहा कि अधिकतम सजा का प्रभाव गांधी को आठ साल के लिए ‘खामोश’ करने जैसा होगा, क्योंकि यह उन्हें जनप्रतिनिधित्व अधिनियम के अनुसार चुनाव से अयोग्य घोषित कर देगा। इस पर पीठ ने कहा कि निचली अदालत के न्यायाधीश ने आपके मुवक्किल (गांधी के) आपराधिक अतीत के बारे में भी बात की है।सिंघवी ने पीठ से कहा कि उनका मुवक्किल कोई दुर्दांत अपराधी नहीं है और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के कार्यकर्ताओं द्वारा उनके खिलाफ कई मामले दायर कराए जाने के बावजूद उन्हें कभी दोषी नहीं ठहराया गया। उन्होंने कहा कि शीर्ष अदालत में अवमानना का एक मामला था जिसमें गांधी ने बिना शर्त माफी मांगी थी।वरिष्ठ अधिवक्ता ने यह भी दलील दी कि गांधी की सजा का परिणाम यह होगा कि वायनाड निर्वाचन क्षेत्र के लिए उपचुनाव अधिसूचित करना होगा। सिंघवी ने कहा, ‘केरल सीट के लिए चुनाव अभी तक अधिसूचित नहीं किया गया है। शायद वे जानते हैं कि जीत की संभावना कम है…मैं (गांधी) पहले ही लोकसभा के दो सत्र गंवा चुका हूं। अगर उच्चतम न्यायालय ने ना कहा, तो मैं पूरा कार्यकाल गंवा दूंगा।’इसके बाद पीठ ने सिंघवी से कहा कि इस मुद्दे को राजनीतिक न बनाएं।मामले में प्रस्तुत भाषण के सबूतों पर सवाल उठाते हुए सिंघवी ने कहा कि शिकायतकर्ता ने खुद भाषण नहीं सुना है और उसकी जानकारी का स्रोत गौण है जो एक व्हाट्सऐप संदेश और एक अखबार का लेख है।दलीलों का खंडन करते हुए महेश जेठमलानी ने कहा कि कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष के खिलाफ ढेर सारे सबूत हैं। जेठमलानी ने कहा कि भाषण के वीडियो को अदालत के सामने सबूत के तौर पर पेश किया गया और 50 मिनट के गांधी के भाषण को सुनने वाले एक व्यक्ति को गवाह के तौर पर पेश किया गया। उन्होंने कहा कि मोदी एक पहचान योग्य वर्ग है और मोदी उपनाम वाले प्रत्येक व्यक्ति को शिकायत दर्ज कराने का अधिकार है।शीर्ष अदालत ने टिप्पणी की कि उच्च न्यायालय के एकल न्यायाधीश ने कहा कि केवल इसलिए कि कोई सांसद है, रियायत दिए जाने का आधार नहीं है।सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने पीठ से आग्रह किया कि वह गुजरात उच्च न्यायालय पर ‘असामान्य टिप्पणियां’ न करें। उन्होंने कहा, ‘कभी-कभी, उच्चतम न्यायालय पर्याप्त कारण नहीं बताने के लिए उच्च न्यायालयों की आलोचना करता है, इसलिए, उच्च न्यायालय के न्यायाधीश विस्तृत आदेश पारित करते हैं।’शीर्ष अदालत गुजरात उच्च न्यायालय के फैसले को चुनौती देने वाली राहुल की एक याचिका पर सुनवाई कर रही थी। उच्च न्यायालय ने ‘मोदी उपनाम’ से जुड़े मानहानि मामले में कांग्रेस नेता की दोषसिद्धि पर रोक लगाने के अनुरोध वाली उनकी याचिका खारिज कर दी थी।गांधी ने अपनी टिप्पणी के लिए माफी मांगने से इनकार कर दिया था, लेकिन उच्चतम न्यायालय से आग्रह किया था कि उनकी टिप्पणी के कारण शुरू आपराधिक मानहानि मामले में उनकी दोषसिद्धि पर रोक लगाई जाए और जोर दिया था कि वह दोषी नहीं हैं।पूर्णेश मोदी ने 13 अप्रैल 2019 को कर्नाटक के कोलार में एक चुनावी सभा में मोदी उपनाम के संबंध में की गई कथित विवादित टिप्पणी को लेकर राहुल के खिलाफ आपराधिक मानहानि का मुकदमा दर्ज कराया था। राहुल ने सभा में टिप्पणी की थी कि ‘सभी चोरों का एक ही उपनाम मोदी कैसे हो सकता है?’कांग्रेस नेता को 24 मार्च को संसद सदस्य के रूप में तब अयोग्य घोषित कर दिया गया था जब गुजरात की एक अदालत ने उन्हें मोदी उपनाम के बारे में की गई टिप्पणियों के लिए दोषी ठहराया था और आपराधिक मानहानि के लिए दो साल की कैद की सजा सुनाई थी।उच्च न्यायालय ने दोषसिद्धि पर रोक लगाने की गांधी की याचिका यह कहते हुए खारिज कर दी थी कि ‘राजनीति में शुचिता’ समय की मांग है।सूरत की एक मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट अदालत ने 23 मार्च को पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष को भादंसं की धारा 499 और 500 (आपराधिक मानहानि) के तहत दोषी ठहराते हुए दो साल जेल की सजा सुनाई थी। फैसले के बाद, गांधी को जनप्रतिनिधित्व अधिनियम के प्रावधानों के तहत एक सांसद के रूप में अयोग्य घोषित कर दिया गया था।