Technology war intensifies in America and China

हर्ष वी पंत
हर्ष वी. पंत
एक साल पहले अमेरिका की बाइडन सरकार चिप्स एंड साइंस एक्ट 2022 लेकर आई। इसका मकसद चीन की तुलना में बढ़त बनाए रखना, सप्लाई चेन को मजबूत करना और इन सबसे बढ़कर राष्ट्रीय सुरक्षा का मुद्दा है। साफ-साफ कहा जाए तो इस कानून को इसलिए लाया गया ताकि अमेरिका सेमीकंडक्टर मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में चीन को लगातार मिलती बढ़त पर रोक लगा सके। चिप मैन्युफैक्चरिंग के गढ़ के रूप में चीन पहचान बना चुका है। ऐसे में अमेरिका जो एक समय दुनिया का करीब 40 फीसदी चिप बनाता था, अब 10 फीसदी पर आ गया है। यह कानून अमेरिकी सेमीकंडक्टर मैन्युफैक्चरिंग, रिसर्च और डिवेलपमेंट के लिए 53 अरब डॉलर आवंटित कर और इस क्षेत्र में स्किल्ड वर्कफोर्स की तादाद बढ़ाकर समीकरण बदलने का प्रयास कर रहा है।
निवेश पर नजर
इस कानून की पहली वर्षगांठ को रेखांकित करने और इससे हासिल फायदों को आगे बढ़ाने के मकसद से बाइडन सरकार ने इसी 9 अगस्त को कुछ संवेदनशील देशों में राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ी टेक्नॉलजी और प्रॉडक्ट्स में अमेरिकी निवेश को लेकर एक नया एक्जिक्युटिव ऑर्डर निकाला।

ऑर्डर ने इस संबंध में प्रमुख खतरे के रूप में हॉन्गकॉनग और मकाउ के साथ चीन की पहचान की है।
इस ऑर्डर के प्रावधान अमेरिकी वित्त मंत्री को अधिकार देते हैं कि वह चीन में हो रहे ऐसे अमेरिकी निवेशों पर नजर रखें, जो आशंकाओं को जन्म देते हों।
इस तरह की निगरानी के दायरे में मुख्यत: तीन क्षेत्रों की टेक्नॉलजी आती हैं: सेमीकंडक्टर और माइक्रो इलेक्ट्रॉनिक्स, क्वांटम इन्फॉर्मेशन टेक्नॉलजी और आर्टिफिशल इंटेलिजेंस।

बाइडन सरकार की एक बड़ी चिंता यह रही है कि हाई टेक्नॉलजी सेक्टर्स को उन कमजोरियों से कैसे बचाया जाए, जो चीन की ओर जाने वाले निवेश को आसान बना देती हैं। पिछले साल किए गए बाइडन प्रशासन के तमाम प्रयासों के बावजूद ऐसे सूराख रह गए, जिनके जरिए अप्रत्यक्ष रूप से यानी विभिन्न देशों, मैन्युफैक्चरिंग पार्टनरों और अलग-अलग चैनलों से होते हुए कुछ खास चीनी टेक्नॉलजी हाईटेक अमेरिकी डोमेन में पहुंच ही गईं। चिप्स एंड साइंस एक्ट 2022 जैसे कदम और चीनी हाई टेक्नॉलजी सेक्टर्स में अमेरिकी नागरिकों की सहभागिता रोकने वाले ऑर्डर इन्हीं सूराखों को बंद करने के प्रयासों का हिस्सा हैं। हालांकि ये प्रयास नाकाफी लगते हैं, लेकिन फिर भी अमेरिका ने हाई-एंड टेक सेक्टर में टेक्नॉलजी लीक पर काफी हद तक काबू पा लिया है।
वैसे, नया एक्जिक्युटिव ऑर्डर तत्काल प्रभाव से लागू नहीं हो रहा। अमेरिकी वित्त मंत्रालय चाहता है कि इसे अमल में लाए जाने से पहले इस पर लोगों की राय ले ली जाए। राष्ट्रीय सुरक्षा संबंधी चिंताओं के अलावा बाइडन प्रशासन इस तथ्य से भी संचालित हो रहा है कि प्रमुख टेक इंडस्ट्रीज में अनियंत्रित अमेरिकी निवेश चीनी सेना को फायदा पहुंचा सकता है। हालांकि इसके साथ ही उसे यह भी पता है कि इस कदम से अमेरिकी कंपनियों पर भी प्रभाव पड़ेगा। वॉशिंगटन में सेमीकंडक्टर इंडस्ट्री असोसिएशन (SIA) पहले ही चीनी बाजार में पहुंच की अपील कर चुका है, जाहिर है इन आशंकाओं के बीच कि कहीं इस नए ऑर्डर का खामियाजा न भुगतना पड़े।

अमेरिका के इस नए कदम को देखते हुए चीन की बड़ी इंटरनेट कंपनियां अपने AI लक्ष्यों के मद्देनजर चिप्स का भंडार जमा करने में लग गई हैं।
हाल ही में चीनी कंपनियों ने जेनरेटिव आर्टिफिशल इंटेलिजेंस सिस्टम के विकास में काम आने वाले हाई परफॉर्मेंस Nvidia चिप्स के 5 अरब डॉलर के परचेज ऑर्डर दिए हैं।

अमेरिका और चीन के बीच की इस रस्साकशी का बाकी दुनिया पर सबसे बड़ा प्रभाव ग्लोबल वैल्यू और सप्लाई चेंस में आने वाली बाधाओं के रूप में दिख सकता है। इस तरह के किसी बड़े प्रभाव को रोकने के इरादे से अमेरिका ने चीन के साथ ‘डीकपलिंग’ की अपनी घोषणाओं को अब ‘डीरिस्किंग’ में तब्दील कर दिया है। इसके पीछे इस बात का अहसास है कि वैल्यू चेन और सप्लाई चेन नेटवर्क्स को लघु या मध्यम अवधि में चीन से कहीं और शिफ्ट करना कितना मुश्किल साबित होने वाला है। हालांकि यह सिलसिला शुरू हो चुका है, लेकिन फिर भी बाइडन सरकार के ताजा एक्जिक्युटिव ऑर्डर के अंतर्गत आने वाले तीन टारगेट डोमेंस की प्रकृति और इनमें निहित निर्भरता के चलते अमेरिका को सधे कदमों से ही बढ़ना होगा।
अमेरिका-चीन प्रतिद्वंद्विता के इस सबसे तीखे दौर में ज्यादा झगड़ा दोनों के बीच जारी टेक-वॉर और साइबर, स्पेस और मिलिटरी डोमेंस में इसके निहितार्थों को लेकर ही होने वाला है। चीन के खिलाफ बाइडन सरकार के कदमों को अमेरिका में विपक्षी दल रिपब्लिकन पार्टी का भी समर्थन हासिल है। किसी मुद्दे पर वहां की दोनों पार्टियों में ऐसी सहमति शायद ही दिखती है। इसके बावजूद बाइडन सरकार को इस मामले में दोतरफा दबावों से गुजरना होगा।

एक तरफ तो वह इंडस्ट्री लॉबी होगी, जो इन कदमों को प्रतिबंधात्मक मानेगी और इनसे होने वाले आर्थिक नुकसानों से चिंतित होगी।
दूसरी तरफ चीन की तेज बढ़त से चिंतित वे लोग होंगे, जो इन कदमों को निहायत नाकाफी मानेंगे क्योंकि इनमें बायो टेक्नॉलजी और एनर्जी जैसे कई प्रमुख सेक्टर्स को शामिल नहीं किया गया होगा।

चुनावी मुद्दा
अगले साल होने वाले राष्ट्रपति चुनाव को देखते हुए तय माना जा सकता है कि समय के साथ वहां माहौल में राजनीतिक सरगर्मी बढ़ती जाएगी। ऐसे में मौजूदा राष्ट्रपति और डेमोक्रेटिक पार्टी के राष्ट्रपति प्रत्याशी के तौर पर जो बाइडन स्वाभाविक ही चीनी प्रभावों की काट को अपनी चुनावी रणनीति का प्रमुख आधार बनाएंगे।
(लेखक इंग्लैंड के किंग्स कॉलेज में प्रफेसर हैं)
डिसक्लेमर : ऊपर व्यक्त विचार लेखक के अपने हैं