लखनऊ: उत्तर प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी ने लोकसभा चुनाव 2024 की तैयारियों को पूरा कराना शुरू कर दिया है। इस क्रम में उन सीटों पर विशेष रूप से ध्यान दिया जा रहा है, जहां पार्टी की स्थिति कमजोर है। इन सीटों पर पार्टी ने विशेष रणनीति के तहत काम करने की योजना बनाई है। लोकसभा चुनाव 2019 में भाजपा ने 62 सीटों पर जीत दर्ज की थी। वहीं, सहयोगी दल अपना दल सोनेलाल को दो सीटों पर जीत मिली थी। इस प्रकार एनडीए यूपी की 64 सीटों पर जीत दर्ज करने में कामयाब रही। 10 सीटों पर बसपा, पांच सीटों पर सपा और एक सीट पर कांग्रेस को जीत मिली थी। समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी के गठबंधन ने भाजपा की मुश्किलें बढ़ाई थीं। लोकसभा चुनाव 2024 में इन सीटों पर जीत के लिए पार्टी की ओर से विशेष रूप से रणनीति बनाकर काम किया जा रहा है। दरअसल, लोकसभा चुनाव 2019 में भाजपा को यूपी की 16 सीटों पर हार का सामना करना पड़ा था। बाद में हुए उप चुनाव में भाजपा ने आजमगढ़ और रामपुर लोकसभा सीट पर जीत दर्ज कर इस संख्या को 14 कर लिया है। लेकिन, पार्टी की रणनीति अभी भी लोकसभा चुनाव 2019 के परिणाम के आधार पर रणनीति को तैयार करने का है। इस चुनाव में 10 सीटें ऐसी भी थीं, जहां जीत और हार का अंतर काफी कम था। इसे असुरक्षित सीटों के दायरे में रखाा गया है।कमजोर सीटों पर पकड़ बढ़ाने की कोशिशभारतीय जनता पार्टी ने लोकसभा चुनाव 2024 में हारी हुई 16 सीटों के अलावा 10 सीटों को चिह्नित किया है, जहां पर पार्टी उम्मीदवारों को कांटे के मुकाबले का सामना करना पड़ा था। पार्टी की ओर से ऐसी रणनीति पर काम किया जा रहा है कि आखिरी वक्त में अगर कोई भी गठबंधन विपक्ष की ओर से आकार ले तो उसके खिलाफ पार्टी के उम्मीदवार को जीत दिलाने की रणनीति पर काम किया जा सके। यूपी में भाजपा की कोशिश एक बार फिर 50 फीसदी वोट शेयर के आंकड़े को पार करने का है। लोकसभा चुनाव में भाजपा ने 49 फीसदी से अधिक वोट शेयर हासिल किया था। हालांकि, 10 सीटों पर विपक्षी सपा-बसपा गठबंधन ने भाजपा को कड़ी टक्कर दी थी।चार सीटों पर जीत का अंतर काफी कमलोकसभा चुनाव 2019 में यूपी की चार लोकसभा सीटों पर भाजपा के उम्मीदवारों की जीत का अंतर काफी कम था। ये सीटें मछलीशहर, श्रावस्ती, मेरठ और मुजफ्फरनगर थीं। यहां पर भाजपा उम्मीदवारों को करीबी मुकाबले में जीत नसीब हुई थी। मछलीशहर में भाजपा उम्मीदवार भोला नाथ ने बसपा उम्मीदवार त्रिभुवन राम को महज 181 वोटों के अंतर से हराया था। दोनों के बीच का चुनावी मुकाबला इतना कांटे का था कि आखिरी राउंड के वोटों की गिनती तक सस्पेंस बना हुआ था। हालांकि, लोकसभा चुनाव में हार के बाद त्रिभुवन राम ने यूपी चुनाव 2022 के बाद भाजपा का रुख किया था। वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में इस सीट पर भाजपा के राम चरित्र निषाद से 1.72 लाख वोटों के अंतर से बसपा के भोलानाथ को हार झेलनी पड़ी थी।मेरठ सीट पर राजेंद्र अग्रवाल, मुजफ्फरनगर सीट पर संजीव बालियान और श्रावस्ती सीट पर राम शिरोमणि जैसे भाजपा उम्मीदवारों को भी कड़े मुकाबले का सामना करना पड़ा था। मेरठ में राजेंद्र अग्रवाल 4729 वोटों के अंतर से जीते थे। वहीं, मुजफ्फरनगर में संजीव बालियान 6526 वोटों और श्रावस्ती में राम शिरोमणि 5320 वोटों के मामूली अंतर से जीत दर्ज कर पाने में कामयाब हुए थे।इन सात सीटों पर भी मुकाबला जोरदारलोकसभा चुनाव में सात सीटों पर भी मुकाबला जोरदार था। बदायूं, बांदा, धौरहरा, बाराबंकी, संतकबीर नगर, बस्ती और सुल्तानपुर जैसी सीटों पर जीत का अंतर काफी कम था। इन सीटों पर यूपी में राजनीतिक रूप से कमजोर कांग्रेस के पक्ष में डाले गए कुल वोटों से कम भाजपा की जीत का अंतर था। बदायूं सीट पर भाजपा उम्मीदवार संघमित्रा मौर्य ने सपा के धर्मेंद्र यादव को 18,454 वोटों के अंतर से हराया था। संघमित्रा मौर्य के पक्ष में उनके पिता स्वामी प्रसाद मौर्य ने तब जोरदार प्रचार किया था। अब स्वामी प्रसाद मौर्य समाजवादी पार्टी के साथ हैं। संघमित्रा मौर्य भाजपा में हैं, लेकिन उनके तेवर पिता का साथ देते दिखते हैं। ऐसे में लोकसभा चुनाव 2024 में बदायूं सीट को भाजपा ने खतरनाक की श्रेणी में रखा है। इसके लिए तैयारियों और उम्मीदवार पर भी खासा मंथन चल रहा है।सुल्तानपुर लोकसभा सीट पर भाजपा की मेनका गांधी महज 14,526 वोटों के अंतर से जीत दर्ज करने में कामयाब हुई थीं। बसपा के चंद्र भद्र सिंह सोनू ने उन्हें कड़ी टक्कर दी थी। इस बार के चुनाव में एक बार फिर मेनका गांधी सुल्तानपुर में सक्रिय होती दिख रही हैं। वहीं, भाजपा की ओर से इस सीट को खतरनाक श्रेणी में रखते हुए इसको लेकर रणनीति में बदलाव पर काम किया जा रहा है। कुछ इसी प्रकार की स्थिति संतकबीर नगर और बस्ती सीट की भी है। संत कबीर नगर में भाजपा के प्रवीण निषाद ने बसपा के भीष्म शंकर को 35,749 वोटों के अंतर से हराया था। वहीं, बस्ती लोकसभा सीट पर भाजपा के हरीश द्विवेदी ने बसपा के राम प्रसाद चौधरी को 30,354 वोटों से हराया।बांदा लोकसभा सीट पर भी भाजपा को कड़े मुकाबले का सामना करना पड़ा था। इस सीट पर भाजपा के आरके सिंह पटेल ने सपा के श्यामा चरण गुप्ता को 58,938 वोटों के अंतर से हराया था। बाराबंकी और धौरहरा सीट पर भले ही जीत और हार का अंतर बेहतर हो, लेकिन पिछले विधानसभा चुनाव के बाद से इन सीटों पर भाजपा अपनी बदली रणनीति के तहत उतरने की तैयारी में है। दरअसल, लोकसभा चुनाव 2019 में बाराबंकी सीट पर भाजपा के उपेंद्र सिंह रावत ने सपा के राम सागर रावत को 1,10,140 वोटों के अंतर से हराया। वहीं, धौरहरा लोकसभा सीट पर रेखा वर्मा ने बसपा के अरशद इलियास सिद्दीकी को 1,60,611 वोटों के अंतर से हराया।कर्नाटक चुनाव के बाद से बदली रणनीतिभाजपा ने लोकसभा चुनाव 2024 की रणनीति में बदलाव किया है। इसके लिए कर्नाटक विधानसभा चुनाव के परिणाम को उदाहरण के तौर पर रखा जा रहा है। कर्नाटक में कांग्रेस ने विधानसभा चुनाव में भाजपा को करारी मात दी। देश की सबसे पुरानी पार्टी ने अपनी रणनीति में बदलाव किया। इसका असर दिखा। इसके बाद भाजपा थिंक टैंक ने देश के सबसे बड़े प्रदेश में अपनी रणनीति को नए सिरे से तैयार करना शुरू कर दिया है। लोकसभा चुनाव 2019 में भाजपा को बड़ी जीत के बाद सपा-बसपा गठबंधन टूट गया। प्रदेश में वर्तमान राजनीतिक स्थिति में सपा-रालोद गठबंधन 2019 से बड़ी चुनौती 2024 में देने का दावा कर रहा है। इस स्थिति को ध्यान में रखते हुए पार्टी ने हारी सीटों के साथ-साथ कमजोर मानी जाने वाली सीटों को चिह्नित कर उन पर काम करने का निर्णय लिया है।कमजोर सीटों पर विशेष अभियान2019 में हारी सीटों आजमगढ़ और रामपुर के उप चुनाव में जीत के बाद भी वर्तमान सांसद अपनी चुनावी तैयारियों को शुरू कर चुके हैं। वहीं, अपेक्षाकृत ‘कमजोर’ लोकसभा सीटों पर अपनी स्थिति मजबूत करने की रणनीति पर भी काम शुरू कर दिया गया है। माना जा रहा है कि जून में महाजनसंपर्क अभियान के समापन के बाद जुलाई से इन सीटों पर पार्टी अपने बूथ स्तर तक के कार्यकर्ता और पन्ना प्रमुखों को एक्टिवेट कर जनसंपर्क की रणनीति पर काम शुरू कर देगी। सूत्रों का कहना है कि पार्टी इनमें से हर लोकसभा क्षेत्र के लिए पार्टी पदाधिकारियों का एक डेडिकेटेड ग्रुप बनाने पर विचार कर रही है। ग्रुप में वर्तमान सांसद, सभी मौजूदा और कुछ पूर्व विधायक, एमएलसी और जिला अध्यक्ष शामिल होंगे। साथ ही, पार्टी एक लोकसभा प्रभारी नियुक्त करने की भी योजना बना रही है जो अभियानों पर नजर रखेंगे।2019 में हारी गई 16 लोकसभा सीटों पर पार्टी कार्यकर्ताओं के साथ समन्वय के लिए एक केंद्रीय मंत्री को नियुक्त करने की भाजपा की रणनीति की तर्ज पर होगा। ऐसी सीटें जहां पार्टी को कड़ी चुनौती का सामना करना पड़ा। पार्टी के सीनिय नेता का कहना है कि सभी 80 लोकसभा सीटों को लेकर आने वाले दिनों में संरचनात्मक और रणनीतिक बदलाव हो सकते हैं। पार्टी की सभी लोकसभा सीटों पर 2024 के संसदीय चुनाव में जीत की योजना है।