urban planning to save cities from drowning

वरुण गांधी

बीते हफ्तों में देश के प्रमुख शहरों- दिल्ली, अहमदाबाद, मुंबई- ने बाढ़ का बड़ा संकट देखा। शहरी बाढ़ अब भारत में एक नियमित घटना है। हालिया सर्वे से पता चला कि 94 फीसदी शहर जलभराव के संकट से जूझ रहे हैं। इसके पीछे कई कारण हैं। अनियोजित शहरीकरण और जनसंख्या में बेतहाशा वृद्धि, खासकर निचले इलाकों में बेतहाशा निर्माण से जल निकायों का नुकसान हुआ है। जैसे-जैसे शहर कंक्रीट के जंगल में बदल रहे हैं, बारिश के पानी का जमीनी रिसाव घट गया है। ये सारी लापरवाहियां अब तूफानी जल बहाव की शक्ल में हमारी परीक्षा ले रही हैं।
नदियों के किनारे की जमीन
ज्यादातर भारतीय शहर बाढ़ के मैदानों और आर्द्रभूमियों के साथ किसी न किसी नदी के किनारे स्थित हैं। एक आदर्श दुनिया में, ऐसे क्षेत्रों को अछूता छोड़ दिया जाता, पर भारत ने तो पिछले 30 वर्षों में अपनी 40 फीसदी आर्द्रभूमि तक खो दी है।

2005 और 2018 के बीच बड़ौदा ने अपनी 30 फीसदी आर्द्रभूमि खो दी।
हैदराबाद ने पिछले दशक में अपने 55 फीसदी जलस्रोत खो दिए।
चेन्नै ने अनियोजित शहरीकरण के कारण अपनी 90 फीसदी आर्द्रभूमि गंवा दी है।
1997 में दिल्ली में 1,000 जल निकाय थे, लेकिन अब 700 ही हैं।
शहरीकरण के कारण गुवाहाटी ने अपने आधे जलस्रोत खो दिए और इसी अवधि में वहां बाढ़ की पांच बड़ी आपदा आई है।

इसके समाधान के लिए कई मोर्चों पर कार्रवाई की जरूरत है।

नदियों सहित तमाम जल निकायों, भूमि उपयोग से जुड़े जलग्रहण क्षेत्र और बाढ़ के जोखिम को समझने के लिए सभी शहरों में अलग से अध्ययन होने चाहिए। इसके बाद इसे लघु, मध्यम और दीर्घकालिक उपायों से जोड़ा जा सकता है।
झील और नदी प्रबंधन योजनाओं को परिभाषित किया जाना चाहिए और इनके रखरखाव में स्थानीय नागरिकों की भागीदारी और अतिक्रमण हटाने पर जोर होना चाहिए।
भौगोलिक सूचना प्रणाली (GIS) का उपयोग स्थानीय जल निकायों को टैग करने, अतिक्रमणों पर नजर रखने और उनकी मौसमी स्थिति को समझने में मदद करने के लिए किया जा सकता है।
स्थानीय स्तर पर मौसम के बदलते पैटर्न पर वास्तविक समय के अपडेट को सक्षम करने के लिए अधिक प्रारंभिक चेतावनी प्रणालियों (डॉपलर रडार सहित) में निवेश की आवश्यकता है।
स्थानीय वर्षा डेटा को केंद्रीय जल आयोग और क्षेत्रीय बाढ़ नियंत्रण प्रयासों के साथ एकीकृत किया जा सकता है।
जैसे-जैसे वर्षा का पैटर्न बदल रहा है, सिमुलेशन की आवश्यकता होगी, विशेष रूप से फ्लडिंग हॉटस्पॉट के लिए। आदर्श रूप से इसे बाढ़ जोखिम मानचित्रों और बीमा उत्पादों से जोड़ा जा सकता है।
हमें शहर-व्यापी डेटाबेस में भी निवेश करना चाहिए, जो बाढ़ से संबंधित आपदा की स्थिति में तत्काल राहत को कारगर बनाएगा।
हमें अपने शहरों में मौजूदा जल निकासी और तूफानी जल नेटवर्क का पुनर्निर्माण और विस्तार करना चाहिए। भारत के 5000 से अधिक शहरों और कस्बों में से अधिकांश में अच्छी तरह से काम करने वाला सीवरेज नेटवर्क नहीं है। दिल्ली का जल निकासी नेटवर्क 24 घंटे में अधिकतम 50 मिमी तक पानी ले जा सकता है।
मध्यम से दीर्घावधि तक के लिए शहरी नियोजन में सुधार की दरकार है। दिल्ली में कई सिविक एजेंसियां शहर की नालियों का प्रबंधन करती हैं, इससे आपसी समन्वय की कठिनाई पैदा होती है। अक्सर जानकारी साझा नहीं की जाती है या देर से साझा की जाती है, जिससे जल निकासी नेटवर्क के बारे में पारदर्शिता की कमी आती है।

इस बीच, केंद्र सरकार द्वारा की गई प्रगति को देखकर खुशी होती है। स्वच्छ गंगा के लिए राष्ट्रीय मिशन पर जोर, जल निकायों की अखिल भारतीय जनगणना, जल निकायों के संरक्षण के लिए दिशानिर्देश स्वागत योग्य कदम हैं। वैसे हमें शहरी स्थानों में जल प्रबंधन का मार्गदर्शन करने के लिए एक सुपरिभाषित शहरी जल नीति की दरकार है। यहां कुछ उदाहरणों पर गौर करना बेहतर होगा।

2000 के दशक के मध्य तक मैंगलोर में शहरी उपभोग से निकलने वाला अपशिष्ट जल खुली नालियों के माध्यम से और शहर के जल निकायों में बह जाता था, जिससे मीठे पानी के स्रोत प्रदूषित हो जाते थे। इसके बाद मैंगलोर सिटी कॉरपोरेशन (MCC) ने मैंगलोर स्पेशल इकॉनमिक जोन लिमिटेड (MSEZL) के भीतर स्थापित उद्योगों के साथ अंतिम-उपयोगकर्ता लिंकेज के साथ अपशिष्ट जल उपचार संयंत्र स्थापित किए। MCC ने अपनी औद्योगिक जरूरतों को पूरा करने के लिए MSEZL को उपचारित अपशिष्ट की आपूर्ति करने की पेशकश की, निजी खिलाड़ियों ने पंपों और सीवेज उपचार संयंत्र के संचालन और रखरखाव की 70 फीसदी लागत के लिए सोर्सिंग की पेशकश की। इनपुट वॉटर की बढ़ती मांग के कारण जल्द ही दो अतिरिक्त उपचार संयंत्रों की स्थापना हुई और नेटवर्क का विस्तार 350 किमी पाइपलाइनों तक हो गया।
ऐसा ही उदाहरण उदयपुर का है। 1559 से शहर ने कैस्केड सिस्टम से जुड़ी झीलों की एक श्रृंखला का निर्माण और रखरखाव किया है, जिससे वहां शुष्क क्षेत्र में जल आपूर्ति में आत्मनिर्भरता आई है। शहर की झीलों से दैनिक जरूरत, सिंचाई और यहां तक कि औद्योगिक उपयोग के लिए भी पानी उपलब्ध है।
बेंगलुरु की कैकोंद्रहल्ली झील गंभीर सीवेज प्रवाह से पीड़ित थी। BBMP ने धन आने पर चरणबद्ध तरीके से झील को पुनर्जीवित करने के लिए समुदाय-संचालित दृष्टिकोण अपनाया। अतिक्रमण करने वालों को बेदखली का नोटिस दिया गया। सीवेज प्रवाह को एक टैपिंग पाइपलाइन के माध्यम से दूर किया गया। झील में उगने वाली वनस्पति को हटाने और झील की गहराई को एक मीटर तक बढ़ाने के लिए झील से गाद निकालने का काम भी हुआ।

जल निकासी में निवेश
हमारे शहरों को अब जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों से निपटने की राह पर आगे बढ़ना होगा। स्मार्ट सिटी के आकर्षण के बजाय हमें वर्षा जल संचयन और बेहतर जल निकासी में निवेश करना चाहिए। अब समय आ गया है कि हम अपनी बुनियादी समझ को दुरुस्त करें।
(लेखक बीजेपी सांसद हैं)
डिसक्लेमर : ऊपर व्यक्त विचार लेखक के अपने हैं