नयी दिल्लीसुप्रीम कोर्ट उस याचिका पर सुनवाई के लिए सहमत हो गया है जिसमें केंद्र सरकार को पश्चिम बंगाल (President Rule West Bengal) में दो मई से चुनाव के बाद बिगड़ती कानून-व्यवस्था के मद्देनजर राष्ट्रपति शासन लगाने के लिए निर्देश देने का अनुरोध किया गया है। याचिका में केंद्र को राज्य में हालात सामान्य बनाने में प्रशासनिक अधिकारियों की मदद और किसी गड़बड़ी से उनकी रक्षा के लिए सशस्त्र, अर्द्धसैन्य बलों की तैनाती के लिए निर्देश देने का भी आग्रह किया गया है। कोर्ट ने केंद्र, राज्य और EC को भेजा नोटिस न्यायमूर्ति विनीत सरन और न्यायमूर्ति दिनेश माहेश्वरी की पीठ ने याचिका पर केंद्र, पश्चिम बंगाल और निवार्चन आयोग को नोटिस जारी किए। इस याचिका में राज्य में चुनाव के बाद हिंसा के पीड़ितों और उनके परिवार के सदस्यों को हुए नुकसान का पता लगाकर उन्हें मुआवजा देने के लिए निर्देश देने की भी गुहार लगाई गई है। पीठ ने कहा, ‘हम प्रतिवादी नंबर एक (भारत सरकार), प्रतिवादी नंबर-दो (पश्चिम बंगाल सरकार) और प्रतिवादी नंबर तीन (निर्वाचन आयोग) को नोटिस जारी कर रहे हैं।’ हालांकि पीठ ने प्रतिवादी नंबर-चार तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) पार्टी अध्यक्ष के तौर पर ममता बनर्जी को नोटिस जारी नहीं किया।Violence in Bengal: जादवपुर में उजड़े म‍िले दलितों के घर, NHRC टीम पर हमला…बंगाल में दिखा चुनावी हिंसा का खौफनाक मंजरयाचिका हिंदुओं पर अत्याचार की बात अधिवक्ता विष्णु शंकर जैन के जरिए दाखिल याचिका में कहा गया है कि असाधारण परिस्थितियों में जनहित याचिका दाखिल की गयी है क्योंकि पश्चिम बंगाल के हजारों नागरिकों को विधानसभा चुनाव के दौरान विपक्षी भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) का समर्थन करने के लिए टीएमसी के कार्यकर्ता उन्हें धमका रहे, प्रताड़ित कर रहे। याचिका के अनुसार, ‘याचिकाकर्ता पश्चिम बंगाल के उन हजारों नागरिकों के हितों की वकालत कर रहे हैं जो ज्यादातर हिंदू हैं और भाजपा का समर्थन करने के लिए मुसलमानों द्वारा उन्हें निशाना बनाया जा रहा है क्योंकि वे हिंदुओं को कुचलना चाहते हैं ताकि आने वाले वर्षों में सत्ता उनकी पसंद की पार्टी के पास बनी रहे।’2 मई के बाद से ही अराजकता फैली- याचिका याचिका में कहा गया, ‘भारत की संप्रभुता और अखंडता के लिए खतरा पैदा करने वाली बिगड़ती स्थिति को ध्यान में रखते हुए अनुच्छेद 355 और अनुच्छेद 356 द्वारा प्रदत्त अपनी शक्ति का प्रयोग करने के लिए केंद्र सरकार को निर्देश दिया जाए।’ इसमें कहा गया है कि दो मई को विधानसभा चुनाव के परिणाम घोषित होने के तुरंत बाद, टीएमसी कार्यकर्ताओं और समर्थकों ने अराजकता फैलाना, अशांति पैदा करना शुरू कर दिया और हिंदुओं के घरों और संपत्तियों में आग लगा दी, लूटपाट की और उनका सामान लूट लिया क्योंकि उन्होंने विधानसभा चुनाव में भाजपा का समर्थन किया था। याचिका में कहा गया है कि हिंसा की घटनाओं के दौरान कम से कम 15 भाजपा कार्यकर्ताओं, समर्थकों की जान चली गयी और कई लोग गंभीर रूप से घायल हो गए।West Bengal Violence: बंगाल में चुनाव बाद 15,000 घटनाएं, 25 लोगों की मौत, 7000 महिलाओं से छेड़खानी…जांच रिपोर्ट में खुलासापं बंगाल में हो रहा संविधान का उल्लंघन याचिका में कहा गया, ‘इन परिस्थितियों में, अदालत के तत्काल हस्तक्षेप की आवश्यकता है और अदालत विरोधी पक्षों को आदेश जारी कर सकती है ताकि पश्चिम बंगाल की सरकार संविधान के प्रावधानों के अनुसार कार्य करे और निरंतर उल्लंघन के मामले में भारत सरकार को संविधान के अनुच्छेद 355 और 356 के तहत उचित कार्रवाई करने का निर्देश दिया जा सकता है।’West Bengal Violence: NHRC टीम ने हिंसा प्रभावित इलाकों का किया दौरा, पीड़ितों से मांगी शिकायतपं बंगाल सरकार पर आरोप याचिका में आरोप लगाया गया है कि विधानसभा चुनाव के दौरान, टीएमसी ने “मुसलमानों की भावनाओं को जगाने और उनसे एकजुट रहने और अपने बेहतर भविष्य के लिए अपनी पार्टी को वोट देने की अपील करते हुए” सांप्रदायिक आधार पर चुनाव लड़ा था। शीर्ष अदालत पश्चिम बंगाल में चुनाव बाद हिंसा से जुड़ी कई याचिकाओं पर पहले से सुनवाई कर रही है। इसके अलावा याचिका में राज्य में विधानसभा चुनाव के बाद हिंसा (West Bengal Violence) के कारणों की जांच के लिए एक विशेष जांच टीम (एसआईटी) बनाने का भी अनुरोध किया गया है।