नई दिल्ली: उच्चतम न्यायालय यौन संबंध बनाने के लिए सहमति की उम्र घटाने के खिलाफ एक गैर सरकारी संगठन (एनजीओ) की याचिका पर सुनवाई करने के लिए सहमत हो गया है। याचिका में कहा गया है कि सहमति की उम्र घटाया जाना बड़ी संख्या में यौन शोषण के शिकार बच्चों, खासकर लड़कियों के हितों को खतरे में डालता है। प्रधान न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जे.बी. पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने केंद्र को नोटिस जारी किया और ‘बचपन बचाओ आंदोलन’ की याचिका को राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) द्वारा दायर लंबित याचिका के साथ संबद्ध कर दिया।एनसीपीसीआर ने पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय के पिछले साल के आदेश को चुनौती दी है, जिसमें कहा गया था कि एक नाबालिग मुस्लिम लड़की अपनी पसंद के व्यक्ति से शादी कर सकती है। शीर्ष अदालत ने शुक्रवार को इस मुद्दे पर केंद्र से जवाब मांगा। एनजीओ की याचिका में कई दिशा-निर्देशों की मांग के अलावा, अदालतों को यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (पॉक्सो) अधिनियम के तहत आपराधिक कार्यवाही से निपटने के दौरान नाबालिग पीड़िता के संबंध में टिप्पणियां करने से बचने का निर्देश देने का भी अनुरोध किया गया है।इसने तमिलनाडु के पुलिस महानिदेशक के कार्यालय द्वारा तीन दिसंबर, 2022 को जारी परिपत्र को भी चुनौती दी, जिसमें पुलिस अधिकारियों को ‘प्रेम संबंध के मामलों’ में आरोपियों की गिरफ्तारी में जल्दबाजी नहीं करने का निर्देश दिया गया था। गैर सरकारी संगठन ने यह भी रेखांकित किया है कि आधिकारिक तथ्यों व आंकड़ों के बावजूद, कई एनजीओ, सरकारों, और/या कानून प्रवर्तन एजेंसियां त्रुटिपूर्ण पद्धतियों पर निर्भर हैं और यह गलत व्याख्या की है कि 60 से 70 प्रतिशत पॉक्सो मामले नाबालिगों के बीच सहमति से (बने यौन संबंधों से) संबद्ध हैं। साथ ही, वे किशोर-किशोरियों के बीच ‘आपसी सहमति वाले प्रेम संबंध’ के तहत आते हैं, जिन्हें अक्सर अपराध की श्रेणी में डाल दिया जाता है।क्या दी गई दलीलें?गैर सरकारी संगठन ने दलील दी है कि 60-70 प्रतिशत का कथित आंकड़ा गलत है क्योंकि देश में पॉक्सो के तहत दर्ज कुल मामलों में करीब 30 प्रतिशत ही 16-18 आयु वर्ग के हैं। इसने यह भी दावा किया कि एक सर्वेक्षण में यह खुलासा हुआ है कि पॉक्सो के मामलों में केवल 13 प्रतिशत सहमति की प्रकृति वाले हैं। पिछले साल 17 अक्टूबर को, शीर्ष अदालत पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय के 13 जून, 2022 के आदेश को चुनौती देने वाली एनसीपीसीआर की इस याचिका पर विचार करने के लिए सहमत हुई थी कि एक नाबालिग मुस्लिम लड़की अपनी पसंद के व्यक्ति से शादी कर सकती है।