अनु जैन रोहतगी
कई सालों से पेंडिंग चल रहे असिस्टिव रिप्रॉडक्टिव बिल के साथ सरोगेसी बिल संसद से पास हो गया है। ये कानून आईवीएफ और सरोगेसी करने वाले क्लिनिकों, अस्पतालों की वर्षों से चली आ रही धांधली पर लगाम लगाएंगे। साथ ही आईवीएफ के साथ सरोगेसी की प्रैक्टिस को कानूनी जामा पहनाते हुए स्वास्थ्य को और सुरक्षित बनाएंगे। इन कानूनों पर अमल सुनिश्चित करने के लिए एक नैशनल बोर्ड बनेगा।
अभी तक इस तरह के क्लिनिक आईसीएमआर की गाइडलाइंस के तहत चल रहे थे और इनका खुलेआम उल्लघंन भी कर रहे थे। लगातार ऐसे मामले आते रहे हैं, जिनमें निस्संतान दंपतियों का शोषण कर लाखों रुपये ऐंठे गए। आईवीएफ के लगातार फेल होने के बावजूद महिलाओं का गिनी पिग की तरह इस्तेमाल होता रहा, बार-बार उन्हें बच्चा पैदा करने के लिए आईवीएफ ट्रीटमेंट दिया गया।
कुछ साल पहले आंध्र प्रदेश में 74 साल की महिला ने आईवीएफ तरीके से दो लड़कियों को जन्म दिया था तो चारों तरफ इसकी निंदा हुई। इसे अनएथिकल बताते हुए कहा गया कि आईवीएफ से गर्भधारण में उम्र सीमा का निर्धारण जरूरी है। डॉक्टरों का कहना है कि आईवीएफ सुरक्षित तकनीक है, लेकिन बड़ी उम्र की महिलाओं में इससे बीपी और फायब्रॉइड्स जैसे हेल्थ इश्यू आते हैं, पैदा होने वाले बच्चे के विकृत होने की आशंका भी रहती है।
संसद से पारित बिल में आईवीएफ के लिए उम्र निर्धारित कर दी गई है और कहा गया है कि 50 साल तक की महिलाएं और 55 साल तक के पुरुष आईवीएफ सेवा ले सकते हैं। बिल में शुक्राणु और अविकसित एग सेल स्टोर करने वाले बैंकों पर भी लगाम कसी गई है। अब 21 से 55 साल के पुरुष और 23 से 35 की महिलाएं ही अपना शुक्राणु और अविकसित एग सेल डोनेट कर सकते हैं। यही नहीं, सिर्फ शादीशुदा महिलाएं या पहले शादी में रह चुकी महिलाएं (जिनके तीन साल का एक बच्चा हो) ही इन बैंकों को अपना एग दे सकती हैं। ये महिलाएं अपनी जिंदगी में सिर्फ एक बार अपना एग बेच सकती हैं, या डोनेट कर सकती हैं। और एक बार में सात अविकसित एग सेल के नमूने ही लिए जा सकते हैं। अभी तक पैसा कमाने के चक्कर में अविवाहित लड़कियां और काफी यंग लड़के अपने शुक्राणु और अविकसित एग सेल कई-कई बार बेच रहे थे।
ऐसे मामले भी लगातार सामने आए कि जेनेटिक डिफेक्ट को जानने के बहाने आईवीएफ सेंटर बेहिचक जेंडर टेस्ट करते हैं और लड़का पाने की चाह रखने वाले दंपतियों से मनमाने रुपये वसूलते हैं। भारत में ये टेस्ट गैरकानूनी हैं, सिर्फ कुछ ही परिस्थितियों में इन्हें किया जा सकता है। बिल में इसे रोकने के लिए विशेष प्रावधान रखा गया है और कहा गया है कि जेनेटिक डिफेक्ट जानने की परिस्थितियों के बारे में बाकायदा नैशनल बोर्ड गाइडलाइंस बनाएगा।
वहीं सरोगेसी बिल के जरिए सरोगेट मदर यानी किराए पर कोख देने वाली महिलाओं के बढ़ते शोषण को खत्म करने के लिए नियम बनाए गए हैं। अभी हाल यह है कि एक महिला की कोख एक-दो बार नहीं, बल्कि कई बार किराए पर ले ली जाती है। इसमें ना केवल उसका स्वास्थ्य दांव पर होता है बल्कि मानसिक शोषण भी होता है। हालांकि 2015 में कुछ गाइडलाइंस के तहत इस बिजनेस पर लगाम लगाने की कोशिश की गई थी और विदेशियों के सरोगेसी सेवा लेने पर बैन लगा दिया गया था। इसके अलावा इस बिल में इस तकनीक से पैदा बच्चे को दंपती की प्राकृतिक संतान ही माना जाएगा और उसे सारे अधिकार मिलेंगे।
अब आईवीएफ या सरोगेसी की सुविधा लेने से पहले दंपती को पूरी काउंसलिंग देनी होगी। उन्हें आईवीएफ और सरोगेसी की असफलता दर, सेहत पर इसके होने वाले असर और इसमें आने वाली समस्याओं के बारे में खुलकर बताना होगा। इस बिल के तहत पहली बार पकड़े जाने पर 5 से 10 लाख और दूसरी बार पकड़े जाने पर 10 से 20 लाख रुपये जुर्माने के साथ आठ साल की कड़ी सजा है। आईवीएफ और सरोगेसी ने बहुत से निस्संतान दंपतियों को संतान सुख तो दिया है, पर इसके गलत इस्तेमाल ने ढेरों दिक्कतें भी खड़ी की हैं। उम्मीद है कि इस बिल से काफी सारी दिक्कतें खत्म होंगी।
डिसक्लेमर : ऊपर व्यक्त विचार लेखक के अपने हैं