अरुण आनंद
अक्सर चुनावों के आसपास ये खबरें पढ़ने को मिलती हैं कि किस तरह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ चुनावों में BJP के समर्थन में काम करने जा रहा है। BJP के कामकाज, टिकटों के बंटवारे, पदाधिकारियों की नियुक्ति और पार्टी की सरकारों में मंत्रिमंडल में नियुक्तियों आदि को लेकर संघ की भूमिका की भी चर्चाएं होती रहती हैं। BJP विरोधी राजनीतिक दल अक्सर पार्टी के साथ संघ पर भी हमला बोलते हैं। ऐसे में प्रश्न यह उठता है कि संघ और भारतीय राजनीति कितने पास हैं और कितने दूर।
वैचारिक करीबी के चलते BJP को अक्सर संघ का राजनीतिक अंग मान लिया जाता है
इस बात में कोई दो राय नहीं कि BJP संघ का समविचारी संगठन है। लेकिन संघ का राजनीति में कभी कोई प्रत्यक्ष दखल नहीं रहा।
संघ की भारतीय राजनीति में क्या भूमिका होनी चाहिए, इसे लेकर संघ के भीतर 1949 में एक निर्णायक बहस हुई थी।
RSS ने महसूस किया था कि 1948 में महात्मा गांधी की हत्या के बाद उस पर गलत तरीके से प्रतिबंध लगाया गया। ऐसे संकट के समय में संगठन का समर्थन करने के लिए शायद ही कोई राजनीतिक आवाज उसके पक्ष में उठी। जब उसके कार्यकर्ताओं को हिंसा का निशाना बनाया गया था, तब भी कोई राजनीतिक दल उनके पक्ष में खुलकर नहीं आया।
1949 में जब RSS से प्रतिबंध हटा लिया गया, तब संगठन के भीतर भविष्य के रोडमैप को लेकर गहन चर्चा हुई। उस वक्त एक वर्ग ने कहा कि संघ सीधे राजनीति में आए।
कई स्तरों पर विस्तृत चर्चा के बाद, दूसरे सरसंघचालक एम.एस. गोलवलकर ने स्पष्ट किया कि संघ राजनीति में नहीं उतरेगा। उनके मुताबिक, राजनीति का चरित्र ऐसा है कि उससे समाज में स्थायी परिवर्तन नहीं हो सकता। विकल्प के तौर पर संघ ने श्यामा प्रसाद मुखर्जी की अगुआई में एक ऐसा दल गठित करने के प्रयासों का समर्थन किया, जो राष्ट्रीय विचारधारा की राजनीति कर सार्वजनिक जीवन में भारतीय प्रतिमानों को स्थापित करे। भारत और पाकिस्तान के बीच नेहरू-लियाकत समझौते के मद्देनजर डॉ. मुखर्जी, नेहरू के मंत्रिमंडल से इस्तीफा दे चुके थे।
जनसंघ की औपचारिक स्थापना से पहले, मुखर्जी ने 1951 की शुरुआत में नागपुर संघचालक बाबासाहेब घटाटे के घर पर गोलवलकर, बालासाहेब देवरस और भाऊराव देवरस से मुलाकात की थी। यह बैठक महत्वपूर्ण थी क्योंकि RSS ने न केवल जनसंघ को पूरी तरह से समर्थन देने का फैसला किया, बल्कि इसने अपने कुछ प्रचारकों (पूर्णकालिक कार्यकर्ताओं) को भी जनसंघ के संगठनात्मक काम के लिए भेजा। डॉ. मुखर्जी भारतीय जनसंघ के संस्थापक अध्यक्ष थे।
1975 का आपातकाल एक महत्वपूर्ण घटनाक्रम है, जिसे अपवाद माना जा सकता है। इस दौरान संघ ने पहली बार संगठन के तौर पर किसी राजनीतिक आंदोलन में हिस्सा लिया।
आपातकाल आरंभ होते ही संघ पर प्रतिबंध लगा दिया गया। बालासाहब देवरस, जो तीसरे सरसंघचालक थे, पूरे आपातकाल के दौरान जेल में रहे।
संघ इस दौरान लोकतंत्र को बचाने के लिए तत्कालीन इंदिरा सरकार के खिलाफ भूमिगत आंदोलन पूरे दमखम से चलाता रहा।आखिरकार आपातकाल हटा और 1977 में जनसंघ का जनता पार्टी में विलय हो गया।
लेकिन आपातकाल हटने के बाद जब देवरस रिहा हुए तो दिल्ली के कॉन्स्टिट्यूशन क्लब में हुई प्रेस कॉन्फ्रेंस में ही एक प्रश्न के उत्तर में उन्होंने कहा कि संघ कभी बदले की भावना से काम नहीं करता। आपातकाल में संघ पर हुई ज्यादतियों के बारे उन्होंने कहा कि जो बीत गया उसे भुला देना चाहिए। उनके शब्द थे ‘फॉरगिव एंड फॉरगेट’।
1980 में जनता पार्टी टूटी और BJP का गठन हुआ।
जनसंघ के दिनों से चल रही परंपरा बीजेपी के गठन के साथ भी जारी रही।
संघ मांगे जाने पर अपने पूर्णकालिक कार्यकर्ताओं को संगठनात्मक काम के लिए बीजेपी में भेजता है।
यह जानना महत्वपूर्ण है कि सैद्धांतिक रूप से संघ का कोई कार्यकर्ता किसी भी राजनीतिक दल के लिए काम करना चाहे तो कर सकता है, उस पर रोक नहीं है। कई और बातें हैं जो राजनीति से संघ की दूरी को स्थापित करती हैं।
संघ की शाखाओं में आने वाले कई कार्यकर्ताओं के परिवार BJP के अलावा अन्य राजनीतिक दलों का भी समर्थन करते हैं।
न तो संघ की किसी शाखा में आजतक किसी दल विशेष के समर्थन की बात कही गई है न ही किसी इसके किसी प्रशिक्षण वर्ग में।
जिस कार्यकर्ता के पास BJP सहित किसी भी राजनीतिक दल का कोई भी पद है, उसे संघ में कोई दायित्व नहीं दिया जाता है। लेकिन वह सामान्य कार्यकर्ता की तरह संघ की गतिविधियों में हिस्सा लेने के लिए स्वतंत्र है।
वर्ष 2018 में दिल्ली के विज्ञान भवन में आयोजित एक कार्यक्रम में वर्तमान सरसंघचालक मोहन भागवत से किसी पत्रकार ने प्रश्न पूछा था कि संघ के प्रचारक केवल BJP में ही संगठन मंत्री या सह संगठन मंत्री के रूप में क्यों जाते हैं, किसी अन्य दल में क्यों नहीं जाते। इस पर भागवत का जवाब था कि BJP, संघ से कार्यकर्ता मांगती है तो संघ देता है। अगर कोई दूसरा दल भी इस तरह की मांग करेगा तो संघ उस पर भी विचार करेगा।
असल में BJP के साथ वैचारिक समानता होने के कारण अक्सर यह गलतफहमी हो जाती है कि संघ का राजनीति में कोई प्रत्यक्ष दखल है। सभी सरसंघचालक स्पष्ट कर चुके हैं कि संघ का मानना है राजनीति की भूमिका राष्ट्रीय विषयों पर काम करने के लिए अनुकूल परिस्थितयां उपलब्ध करवाने तक ही सीमित है। समाज में स्थायी परिवर्तन राजनीति के माध्यम से नहीं हो सकता। उसके लिए सामाजिक और सांस्कृतिक स्तर पर काम करने की आवश्यकता है, यही संघ का कार्यक्षेत्र है और लक्ष्य भी।
डिसक्लेमर : ऊपर व्यक्त विचार लेखक के अपने हैं