Will Congress Hindu card work in madhya pradesh election 2023

अवधेश कुमार

कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और मध्य प्रदेश में पार्टी की चुनावी कमान संभाल रहे कमलनाथ की एक तस्वीर इन दिनों वायरल है, जिसमें वह एक भक्त हिंदू की तरह पूरे कपाल पर चंदन का लेप लगाए, हाथ जोड़े, कंधे पर लाल गमछा डाले दिख रहे हैं। तस्वीर अहम इसलिए भी हो गई है कि कमलनाथ के नेतृत्व में मध्य प्रदेश कांग्रेस आजकल स्वयं को सच्ची हिंदुत्ववादी पार्टी साबित करने की हर संभव कोशिश कर रही है। हिंदुत्व के मोर्चे पर वक्तव्य और व्यवहार में वह इतने मुखर हैं, जितने बीजेपी के नेता भी नहीं।

कमलनाथ ने बागेश्वर धाम के बाबा धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री की कथा का आयोजन अपने निर्वाचन क्षेत्र छिंदवाड़ा में करवाया। धीरेंद्र शास्त्री आह्वान कर रहे हैं कि भारत को हिंदू राष्ट्र बनाना है।‌
कमलनाथ से पूछा गया कि क्या आप भारत को हिंदू राष्ट्र मानते हैं तो उन्होंने कहा कि लेकिन इसे कहने की क्या जरूरत है।
यही नहीं, मध्य प्रदेश कांग्रेस ने धर्म प्रकोष्ठ इकाई का भी गठन किया है और उसने पुजारियों और संतों का सम्मेलन भी आयोजित किया है।

क्या है वजह
इन्हीं प्रयासों के मद्देनजर मध्य प्रदेश कांग्रेस के वरिष्ठ मुस्लिम नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री अजीज कुरैशी ने कहा कि वोट के लिए कांग्रेस नेता हिंदुत्व की माला जप रहे हैं और ऐसे नेताओं को चुल्लू भर पानी में डूब मरना चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि कांग्रेस सहित सभी पार्टियां अच्छी तरह समझ लें कि मुसलमान आपका गुलाम नहीं है कि जो कुछ कह देंगे, उसका पालन हो जाएगा।
साफ है कि मुस्लिम वोटों की लगातार चिंता करने वाली कांग्रेस उनकी नाराजगी मोल लेते हुए भी हिंदुत्व पर मुखर है। इसका अर्थ हुआ कि संघ परिवार और बीजेपी के हिंदुत्व अभियानों ने वोटरों की सोच को इतना बदल दिया है कि खुद को लिबरल- सेकुलर बताने वाले नेता और दल अब स्वयं को निष्ठावान हिंदू और हिंदुत्ववादी साबित करने में लग गए हैं। कई कारणों से चुनाव में उन पार्टियों को सफलताएं भी मिली हैं। इससे कुछ हलकों में यह राय बन रही है कि हिंदुत्व की जमीन पर भी बीजेपी को कमजोर किया जा सकता है। लेकिन क्या सचमुच कांग्रेस या दूसरी पार्टियां हिंदुत्व की राजनीति में उस पायदान पर खड़ी हो सकती हैं, जहां बीजेपी है? ऐसा मानना मुश्किल है और इसकी ठोस वजहें भी हैं।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ हिंदुत्व के विचार से निकला संगठन है। बीजेपी इस विचारधारा से निकली पार्टी है। कांग्रेस और अन्य दलों के बारे में ऐसा नहीं कहा जा सकता।
चुनावी दृष्टि से स्वयं को निष्ठावान हिंदू कहना और हिंदुत्व के कुछ मुद्दों पर आक्रामक होना विचारधारा में सहभागी होने का प्रमाण नहीं हो सकता।

अगर कांग्रेस सचमुच स्वयं को हिंदुत्व का पैरोकार मानती है तो उसे दिखाना होगा कि बीजेपी जिन मुद्दों और विषयों पर खुलकर सामने आती है, वह भी उसी तरह आ सकती है। लेकिन वह ऐसा नहीं करती, कुछ उदाहरण देखिए।

केंद्र सरकार ने जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 खत्म कर दिया। राहुल गांधी और अन्य नेता कहते हैं कि उनकी सरकार आई तो 370 लागू करेंगे। यह हिंदुत्व प्रेरित राष्ट्रवाद की परिधि में नहीं आ सकता।
काशी और मथुरा की कानूनी लड़ाई में भले बीजेपी सामने न हो, लेकिन उसे यह कहने में हर्ज नहीं है कि दोनों पहले मंदिर थे और उन्हें फिर मंदिर होना चाहिए। क्या कांग्रेस ऐसा कहने का साहस करेगी?
बीजेपी समान नागरिक संहिता लागू करना चाहती है, लेकिन क्या कांग्रेस के हिंदुत्व में इसके समर्थन की गुंजाइश है?
बीजेपी ने एक साथ तीन तलाक को कानूनी रूप से खत्म कर दिया। कांग्रेस ने संसद में विरोधी मुस्लिम संगठनों और नेताओं की तरह ही इसके विरुद्ध स्टैंड लिया था। क्या कांग्रेस का स्टैंड अब बदल गया है?
बीजेपी मानती है कि भारत के मुसलमानों के पूर्वज हिंदू थे। क्या कांग्रेस भी मुसलमानों के बारे में यही सोच रखती है?

समझना होगा कि हिंदुत्व विचारधारा मंदिरों में आस्था और पूजा-पाठ तक सीमित नहीं है। एक नास्तिक भी हिंदू हो सकता है और वह हिंदुत्ववादी कहला सकता है। आज का भारत पहले का नहीं है जिसमें कि आप हिंदुत्व विचारधारा के नाम पर लोगों में भ्रम पैदा कर दें। कई गलत धारणाएं पिछले आठ-नौ वर्षों में ध्वस्त हुई हैं।

पहला, आम धारणा यह बनाई गई थी कि हिंदू शब्द भारतीय धर्म ग्रंथों में नहीं है, यह अरबों द्वारा दिया गया है। शोधकर्ताओं ने बता दिया कि शुक्ल यजुर्वेद से लेकर अनेक धर्म ग्रंथों में सदियों से हिंदू शब्द का उल्लेख है।
दूसरा, इतिहास में मुगल काल, सल्तनत काल और कुछ शासकों को महान बताए जाने के विरुद्ध इतने प्रमाण और तथ्य शोधकर्ताओं ने दिए हैं कि अब भारत के इतिहास को देखने का दृष्टिकोण व्यापक रूप में बदल चुका है।
तीसरा, एक समय विश्व गुरु शब्द लोगों को फासीवादी लगता था, लेकिन धीरे-धीरे भारत के प्राचीन इतिहास, हिंदुत्व के दर्शन को समझने वाले मानने लगे हैं कि भारत में ही वह अद्भुत क्षमता है कि विश्व का मार्गदर्शन कर सके।

सामूहिक मानस
हिंदुओं का सामूहिक मनोविज्ञान बदलने के और भी बहुत सारे सबूत मिल जाएंगे। ऐसे जागरूक होते सामूहिक जनमानस के बीच केवल कथा कराने और चंदन लगाने से लोग यह नहीं मान लेंगे कि आप हिंदुत्व के अनुगामी हैं। वैसे संसदीय लोकतंत्र में राजनीति सर्वोपरि है और हर नेता, पार्टी का दायित्व है कि वह विचारधारा को लेकर ईमानदार रहे, उसे सिर्फ चुनावी रणनीति तक सीमित न रखे।
डिसक्लेमर : ऊपर व्यक्त विचार लेखक के अपने हैं