हाइलाइट्स:आजमगढ़ में जिला पंचायत अध्यक्ष चुनाव के लिए नामाकंन 26 जनवरी को होना हैयहां बीजेपी और एसपी को छोड़कर किसी अन्य दल ने दावेदारी नहीं की हैचुनाव को लेकर बीएसपी की चुप्पी ने बीजेपी और एसपी की बेचैनी बढ़ा दी हैआजमगढ़उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ में जिला पंचायत अध्यक्ष चुनाव के लिए नामाकंन 26 जनवरी को होना है लेकिन यहां बीजेपी और एसपी को छोड़कर किसी अन्य दल ने दावेदारी नहीं की है। खासतौर पर बीएसपी का दावेदारी न करना किसी के गले नहीं उतर रहा है। कारण यह है कि बीएसपी दो बार इस कुर्सी पर कब्जा कर चुकी है। इस बार भी दूसरी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरने के बाद उसे दावेदारों में गिना जा रहा था। लेकिन चुनाव को लेकर बीएसपी की चुप्पी ने बीजेपी और एसपी की बेचैनी बढ़ा दी है। चुनाव न लड़ने की स्थिति में बीएसपी के 14 सदस्य निर्णायक की भूमिका में होंगे।एसपी-बीएसपी का हमेशा रहा वर्चस्वजिला पंचायत अध्यक्ष की सीट पर हमेशा से एसपी और बीएसपी का वर्चस्व रहा है। एसपी यहां 4 बार तो बीएसपी 2 बार अपना अध्यक्ष बना चुकी है। बीजेपी को आज तक जिला पंचायत अध्यक्ष चुनाव में जीत नहीं मिली है। इस चुनाव में एसपी 84 में से 25 सीटों पर जीत हासिल कर सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी है। वहीं बीएसपी 14 सीटों के साथ दूसरे नंबर पर है। बीजेपी को मात्र 11 सीटें मिली हैं। सर्वाधिक 27 सीटों पर निर्दलीयों को सफलता मिली है। इसके अलावा अपना दल, उलेमा कौंसिल, एसबीएसपी, एआईएमआईएम, कांग्रेस आदि दलों को एक-एक सीट मिली है। यहां निर्दलीयों को किंगमेकर माना जा रहा था लेकिन बीजेपी ने कई सदस्यों का समर्थन हासिल कर अपने सदस्यों की संख्या 24 पहुंचा ली है।एसपी-बीजेपी दोनों बहुमत से दूरअगर देखा जाए तो बीजेपी बहुमत से अभी 19 और एसपी 18 कदम दूर है। बीएसपी ने अब तक अपने उम्मीदवार की घोषणा नहीं की है जबकि बीजेपी ने संजय निषाद और एसपी ने विजय यादव को एक माह पहले ही मैदान में उतार दिया है। बीएसपी पहली बार इस चुनाव में चुप्पी साधे है। वहीं दूसरी तरफ पार्टी के निष्कासित 11 सदस्यों के एसपी मुखिया अखिलेश यादव से मुलाकात के बाद पार्टी के टूटने का खतरा बढ़ गया है।Azamgarh Zila Panchayat Election: आजमगढ़ में बीजेपी-एसपी के बीच जिपं अध्यक्ष के लिए कांटे की टक्कर, निर्दलीय साबित होंगे ट्रंप कार्डराजनीति के जानकारों का कहना है कि बीएसपी मुखिया का चुप रहना बड़ा संकेत है। आजमगढ़ में उनके पास इतना संख्या बल नहीं है कि अपने दम पर चुनाव जीत सकें। जिला पंचायत अध्यक्ष का चुनाव जीतने के लिए कम से कम 43 सदस्यों का समर्थन चाहिए। बीएसपी के पास 29 सदस्य कम हैं। अगर सारे निर्दलीय बीएसपी के साथ चले जाएं तब भी वह बहुमत हासिल नहीं कर पाएगी। पार्टी में मची उठापठक के बीच मायावती नहीं चाहेंगी कि विधानसभा चुनाव से पहले उन्हें हार का सामना करना पड़े। ऐसे में शायद बीएसपी प्रत्याशी उतारे ही नहीं।क्यों बेचैन हैं एसपी-बीजेपीबीएसपी के जिलाध्यक्ष अरविंद कुमार अभी इस मुद्दे पर कुछ बोलने को तैयार नहीं है। वहीं दूसरी तरफ बीएसपी की चुप्पी से एसपी और बीजेपी की बेचैनी बढ़ गई है। बीएसपी के 14 सदस्य किसके साथ खड़े होंगे यह कह पाना मुश्किल है। दोनों ही दल इन्हें साधने की कोशिश कर रहे हैं लेकिन सभी जानते हैं कि आलाकमान का जिधर इशारा होगा ये सदस्य उसी के साथ जाएंगे। एसपी में बेचैनी थोड़ी ज्यादा इसलिए है कि बीएसपी मुखिया इस समय एसपी से खासी नाराज हैं। वहीं दूसरी तरफ मायावती यह भी नहीं चाहेंगी कि बीजेपी आजमगढ़ में मजबूत हो। ऐसे में चुनाव दिलचस्प होता दिख रहा है। कारण कि वर्तमान में बीएसपी चुनाव लड़े या न लड़े लेकिन उसकी भूमिका किंग मेकर की जरूर होगी।अखिलेश के गढ़ में बीएसपी ने नहीं उतारा उम्मीदवार