नयी दिल्ली, छह अक्टूबर (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने कहा है कि उपभोक्ता संरक्षण कानून के तहत सेवा में खामी का प्रमाण देना संबंधित ग्राहक की जिम्मेदारी है। न्यायालय ने राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निपटान आयोग (एनसीडीआरसी) के एक आदेश को खारिज करते हुए यह व्यवस्था दी। एनसीडीआरसी ने एक कंपनी को ब्याज के साथ 65.74 लाख रुपये अदा करने का आदेश दिया था, जिसे शीर्ष अदालत ने खारिज कर दिया। न्यायमूर्ति हेमंत गुप्ता और न्यायमूर्ति वी रामासुब्रमण्यम की पीठ ने कहा कि यदि शिकायतकर्ता एनसीडीआरसी के पास सेवा में खामी के प्रमाण के बिना जाता है, तो दूसरे पक्ष को सेवा में खामी के लिए जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता। पीठ ने कहा कि उपभोक्ता संरक्षण कानून, 1986 के तहत सेवा में खामी का प्रमाण देना शिकायतकर्ता की जिम्मेदारी है। पीठ एसजीएस इंडिया लि. द्वारा एनसीडीआरसी के आदेश को चुनौती देने की याचिका पर सुनवाई कर रही थी। एनसीडीआरसी ने अपने आदेश में कंपनी को 65.74 लाख रुपये ब्याज के साथ चुकाने का निर्देश दिया था। शिकायतकर्ता कंपनी डॉल्फिन इंटरनेशनल लि. ने निर्यात के मकसद से खरीदी गई मूंगफली की जांच के लिए एसजीएस इंडिया की सेवाएं ली थीं। अपील करने वाली कंपनी कई उत्पादों की गुणवत्ता जांच करती है। यह परीक्षण, निरीक्षण और प्रमाणन कंपनी है। शिकायकर्ता के अनुसार, एसजीएस इंडिया लि. ने निर्यात की जाने वाली मूंगफली का निरीक्षण और विश्लेषण किया था। इसका निर्यात यूनान को किया जाना था। ये मूंगफली दो गुणवत्ताओं बोल्ड और जावा किस्म की थी। इसके लिए गुणवत्ता, मात्रा, भारत और पैकिंग प्रमाणन जारी किया गया था। जब यह खेप यूनान पहुंची तो शिकायतकर्ता ने एसजीएस इंडिया को सूचित किया कि 20 कंटेनरों में से 11 कंटेनरों में मूंगफली की संख्या को लेकर विवाद है। इसके अलावा नीदरलैंड को भेजी गई खेप में एफ्लैटॉक्सिन की काफी ऊंची मात्रा पाई गई। इसी आधार पर एनसीडीआरसी ने निष्कर्ष दिया था कि अपील करने वाली कंपनी ने लापरवाही बरती है और उसकी सेवाओं में खामी है।