नई दिल्ली : सुधा मूर्ति (Sudha Murthy) को कौन नहीं जानता। वे इंफोसिस (Infosys) के फाउंडर नारायण मूर्ति की प्रत्नी, ब्रिटेन के प्रधानमंत्री ऋषि सुनक की सास और जानी-मानी बिजनसवुमन तथा समाजसेविका हैं। जितना बड़ा नाम, उतना सरल स्वभाव। सुधा मूर्ति अब आपके बच्चों का सिलेबस तैयार करने वाली हैं। सुधा मूर्ति का नाम एनसीईआरटी (NCERT) के पैनल में शामिल किया गया है। केंद्र सरकार ने स्कूली सिलेबस में संशोधन करने और नया सिलेबस तैयार करने के लिए एक समिति गठित की है। इसमें सुधा मूर्ति शामिल हैं। टाटा ग्रुप की यह पहली महिला इंजीनियर एक लेखिका भी हैं। धीरे से बकुला गिरता है, कैसे मैंने अपनी दादी माँ को पढ़ना सिखाया और अन्य कहानियाँ, महाश्वेता, डॉलर बहू और तीन हजार टांके जैसी कई चर्चित किताबें सुधा मूर्ति ने ही लिखी हैं। सुधा मूर्ति के बच्चों से जुड़े कई किस्से हैं। आइए कुछ के बारे में जानते हैं।जब बेटे को बर्थडे पार्टी में खर्चा करने से रोकासुधा मूर्ति ने एक बार अपने बेटे से जुड़े एक किस्से का जिक्र किया था। उन्होंने अपने बेटे से कहा कि वो अपने बर्थडे की पार्टी पर 50 हजार रुपए खर्च करने की बजाय एक छोटी पार्टी करे और बाकी के रुपये अपने ड्राइवर के बच्चों की पढ़ाई के लिए दे दें। सुधा मूर्ति ने कहा, ‘पहले तो मेरे बेटे ने इसके लिए मना कर दिया। लेकिन 3 दिन के बाद वो मान गया। कुछ वर्षों बाद उनका बेटा अपनी स्कॉलरशिप लेकर खुद आया और बोला कि इन रुपयों को 2001 में संसद हमले में शहीद हुए जवानों के परिवारों की मदद में लगा दें।’ मूर्ति ने कहा कि बच्चों को पैसा, दया, प्यार और आशा बांटने का विचार सिखाना बहुत जरूरी है। इससे वे सभी को एक समान समझते हैं।ऐसी मदद कि बदल गई जिंदगीबेंगलुरु जा रही एक ट्रेन में टीसी की नजर सीट के नीचे दुबकी हुई 11 साल की एक लड़की पर पड़ी। लड़की ने रोते हुए कहा कि उसके पास टिकट नहीं है। टीसी ने उसे डांटते हुए गाड़ी से नीचे उतरने को कहा। वहां ट्रेन में सुधा मूर्ति भी बैठी हुई थीं। उन्होंने तुरंत कहा कि इस लड़की का बेंगलुरु तक का टिकट बना दो इसके पैसे मैं दे देती हूं। टीसी का कहना था कि मैडम टिकट बनवाने के बजाय इसे दो-चार रुपये दे दो तो ये ज्यादा खुश होगी। लेकिन मूर्ति ने लड़की का टिकट ही लिया। उन्होंने लड़की से पूछा कि वह कहां जा रही है तो उसने कहा, ‘पता नहीं मेम साब।’ लड़की का नाम चित्रा था। मूर्ति उसे बेंगलुरु ले गई और एक स्वयंसेवी संस्था को सौंप दिया। चित्रा वहां रहकर पढ़ाई करने लगी, मूर्ति भी उसका हालचाल पता करती रहती थीं।करीब 20 वर्ष बाद सुधा मूर्ति अमेरिका में एक कार्यक्रम में गई थीं। कार्यक्रम के बाद वे जब अपना बिल देने के लिए रिसेप्शन पर आई तो पता चला कि उनके बिल का पेमेंट सामने बैठे एक कपल ने कर दिया है। मूर्ति उस कपल की तरफ मुड़ी और उनसे पूछा कि आप लोगों ने मेरा बिल क्यों भर दिया? इस पर युवती ने कहा, ‘मैम, गुलबर्गा से बेंगलुरु तक के टिकट के सामने यह कुछ भी नहीं है।’ वह युवति चित्रा ही थी। मूर्ति की मदद ने उसका जीवन बदल डाला था।