जानिए भारतीय अर्थव्यवस्था की 5 अच्छी बातें

नई दिल्ली : भारतीय बैंकों (Indian Banks) का एनपीए (NPA) 15 वर्षों के न्यूनतम स्तर पर आ गया है। जब दुनिया सुस्ती (Slowdown) और मंदी (Recession) से जूझ रही है, ऐसे समय में भारत सबसे तेज रफ्तार से ग्रोथ करने वाली इकॉनमी बना हुआ है। महंगाई दर आरबीआई (RBI) के सहनीय स्तर के अंदर है। भारत ने अपने राजस्व घाटे के लक्ष्य को प्राप्त कर लिया है। ऐसी कई अच्छी बातें हैं, तो इस समय हमारी इकॉनमी को खास बना रही हैं। पिछले 10 वर्षों में भारतीय अर्थव्यवस्था में काफी महत्वपूर्ण सुधार हुए हैं। साल 2014 में आरबीआई ने लोक लेखा समिति को बताया था कि महंगाई के कारण 1000 के नोट की कीमत घट रही है। फिर पीएम मोदी के सरकार में आने के तुरंत बाद रघुराम राजन ने कहा था कि भारत को 10,000 रुपये का नोट छापना शुरू कर देना चाहिए। यह इकॉनमी के अच्छा संकेत नहीं था। 9 साल बाद अब आरबीआई 2000 के नोट को भी सर्कुलेशन से बाहर कर चुका है। आइए जानते हैं कि भारतीय अर्थव्यवस्था (Indian Economy) में इस समय कौन-सी खास बातें देखने को मिल रही हैं।दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती इकॉनमीइस समय दुनिया में सब जगह मंदी छाई हुई है। 40 साल की सबसे तेज महंगाई और बैंकिंग संकट के बाद अब अमेरिका मंदी की दहलीज पर खड़ा है। यूरोप की सबसे बड़ी इकॉनमी जर्मनी मंदी में चला गया है। दुनिया के कई छोटे देश दिवालिया होने के कगार पर हैं। इस बीच भारत दुनिया के बड़े देशों में सबसे तेजी से ग्रोथ करती इकॉनमी बना हुआ है। मार्च तिमाही में भारत की जीडीपी ग्रोथ 6.1 फीसदी रही है, जो उम्मीद से अधिक है। इसकी तुलना में चीन की जीडीपी ग्रोथ 4.5 फीसदी ही रही। पिछले वित्त वर्ष के लिए जीडीपी ग्रोथ 7.2 फीसदी रही है।महंगाई के मामले में जो कोई न कर सका भारत ने कियामहंगाई के मोर्चे पर भारत को बड़ी जीत मिली है। अप्रैल 2023 में भारत में महंगाई 4.7 फीसदी पर थी। अमेरिका में यह 4.9 फीसदी थी। यूपीए-2 के कार्यकाल से इसकी तुलना करें, तो तब महंगाई दर औसत 10 फीसदी थी। वहीं, 2009 से 2014 के दौरान अमेरिका में महंगाई दर 1 से 3 फीसदी के बीच थी, जो कि किस विकसित देश के लिए स्टैंडर्ड है। पिछले कुछ वर्षों में बाकी दुनिया की तुलना में भारत में महंगाई काफी कम रही है। कुछ महीने पहले अमेरिका में महंगाई दर 40 साल के उच्च स्तर 9.1 फीसदी पर पहुंच चुकी थी। यूके में अप्रैल 2023 में महंगाई दर 8.7 फीसदी थी। साल 2022 में यह 9 फीसदी के आस-पास रही थी। अक्टूबर 2022 में 11.1 फीसदी के उच्च स्तर पर पहुंच गई थी। उधर एक विकासशील देश भारत इस दौरान महंगाई दर को 6-7 फीसदी के बीच बनाए रखने में कामयाब रहा।कभी मुश्किल में रहे बैंक आज दे रहे बंपर मुनाफासाल 2015 में सरकारी बैंकों में एसेट क्वालिटी रिव्यू शुरू हुआ था। उस समय एक के बाद एक बेड लोन सामने आए थे। मार्च 2018 में पता लगा था कि सरकारी बैंकों का वास्तविक एनपीए 14.6 फीसदी के भयानक स्तर पर पहुंच गया है। वित्त वर्ष 2017-18 में सरकारी बैंकों को 85,390 करोड़ रुपये का घाटा हुआ था। साल 2015-16 से 2019-20 के बीच सरकारी बैंकों को घाटा हुआ। यह कुल 2.07 लाख करोड़ रुपये का था। एक समय 21 सरकारी बैंकों में से 11 आरबीआई के पीसीए फ्रेमवर्क के अंदर आ गए थे। यह संकट अब पूरी तरह खत्म हो गया है। अकाउंटिंग प्रैक्टिस को सही किया गया है। कुछ बैंकों को रिकैपिटलाइज्ड किया गए। कुछ को मर्ज किया गया। इसके परिणामस्वरूप सरकारी बैंकों का ग्रॉस एनपीए गिरकर 5 फीसदी के करीब रह गया है। वित्त वर्ष 2021-22 में सरकारी बैंकों का कुल मुनाफा 66,543 करोड़ रुपये रहा। साथ ही सभी बैंकों ने मुनाफा बनाया।वित्त वर्ष 2022-23 में बैंकों की स्थिति और अच्छी हुई। साल 2017-18 के 85,390 करोड़ के घाटे से सरकारी बैंक 2022-23 में 1.04 लाख करोड़ रुपये के प्रॉफिट में आ गए हैं। एसबीआई टॉप पर है। इसके मुनाफे में 59 फीसदी सालाना का उछाल आया है। फिच ग्रुप से जुड़ी इंडिया रेटिंग्स एंड रिसर्च के अनुसार पिछले 10 वर्षों में बैंकों की सबसे बेहतर एसेट क्वालिटी देखने को मिली है।दुनिया की 5वीं सबसे बड़ी इकॉनमीसाल 1950 में भारत दुनिया की छठी सबसे बड़ी इकॉनमी था। इसके बाद शुरुआती 40 साल की आर्थिक नीतियां इसे ऊपर ले जाने के बजाए नीचे ही लेकर गईं। साल 1990 में भारतीय अर्थव्यवस्था गिरकर 12वें स्थान पर आ गई। साल 1991 के सुधारों के बाद थोड़ी रिकवरी हुई। साल 2014 तक हम 10वें स्थान पर आए। अब हमारी इकॉनमी दुनिया की 5वीं सबसे बड़ी इकॉनमी बन गई है। आईएमएफ का अनुमान है कि भारत साल 2027 तक तीसरी सबसे बड़ी इकॉनमी बन सकता है।राजस्व घाटे का टार्गेट किया हासिलवित्त वर्ष 2022-23 में देश का राजस्व घाटा 6.4 फीसदी पर रहा था। यह पिछले साल जीडीपी के 6.7 फीसदी से कम है। इस तरह सरकार ने बजट में जो टार्गेट तय किया था, उसे पूरा किया जा चुका है। अगले वित्त वर्ष तक भारत इसे और गिराकर 5.9 फीसदी पर लाना चाहता है। राजस्व घाटे में गिरावट के पीछे कई कारण रहे हैं।आर्थिक गतिविधियों में उम्मीद से अधिक विस्तार हुआ। इससे डायरेक्ट टैक्स कलेक्शन 16.61 लाख करोड़ पर पहुंच गया। यह भी 16.5 लाख करोड़ के अनुमान से अधिक रहा।