नयी दिल्ली, पांच जुलाई (भाषा) सरकार के हस्तक्षेप के बाद दलहन के खुदरा दाम में गिरावट का रुख दिखने लगा है। केन्द्रीय खाद्य सचिव सुधांशु पांडे ने सोमवार को यह कहा। उन्होंने कहा कि दलहन के थोक, खुदरा विक्रेताओं, मिलों और आयातकों पर सरकार की ओर से हाल में लगाई गई स्टॉक सीमा का खुदरा दाम पर और प्रभाव पड़ेगा। पांडे ने वीडियो कांफ्रेन्स के जरिये संवाददाता सम्मेलन में कहा, ‘‘मसूर दाल को छोड़कर, अन्य सभी दालों के दाम पिछले 4- 5 सप्ताह से खुदरा और थोक बाजारों में लगातार कम हो रहे हैं।’’ परंपरागत तौर पर यहां मसूर का उत्पादन कम होता रहा है और इसका आयात किया जाता है। मसूर का आयात बढ़ा है और सरकार को उम्मीद है कि इसके दाम पर भी नरमी के रुख का असर होगा। उदाहरण के तौर पर दिल्ली में दलहनों के खुदरा दाम में एक महीने में सात रुपये तक की गिरावट आई है। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक राष्ट्रीय राजधानी में इन दिनों चना दाल का दाम 73 रुपये किलो के करीब चल रहा है। वहीं मसूर दाल का दाम 87 रुपये किलो, मूंग का 100 रुपये किलो, तूर दाल का दाम 110 रुपये किलो और उड़द दाम का दाम 114 रुपये किलो के आसपास चल रहा है। दालों के दाम पर अंकुश रखने के लिये सरकार के कदमों की जानकारी देते हुये सचिव ने कहा कि उड़द और मूंग के आयात को बढ़ावा देने के लिये आयात नीति में बदलाव किया गया। इनका आयात प्रतिबंधित श्रेणी से हटाकर इस साल अक्टूबर तक के लिये मुक्त श्रेणी में डाल दिया गया। इसी प्रकार, जमाखोरी को रोकने के लिये सरकार ने मूंग दाल को छोड़कर अन्य सभी दलहन पर अक्टूबर तक के लिये स्टॉक सीमा लागू की है। सचिव ने कहा, ‘‘स्टाक सीमा लगाये जाने और व्यापारियों को उनके पास उपलब्ध स्टॉक की सीमा के बारे में जानकारी उपलब्ध कराने की बाध्यता से आने वाले सप्ताहों में दाम और नीचे आयेंगे।’’ यह पूछे जाने पर कि सरकार की राशन की दुकानों के जरिये क्या खाद्य तेल और दलहनों का वितरण करने की योजना है? सचिव ने जवाब में कहा केन्द्र सरकार राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून के प्रावधानों के तहत केवल गेहूं और चावल का वितरण करती है। हालांकि, कुछ राज्य सरकारें खाद्य तेल और दलहनों का भी वितरण कर रहीं हैं। इस बीच भारत दलहन और अनाज संघ (आईपीजीए) ने दलहन पर स्टॉक सीमा लगाये जाने पर आश्चर्य जताया है और सरकार से इसे तुरंत वापस लेने का आग्रह किया है। आईपीजीए के उपाध्यक्ष बिमल कोठारी ने एक अलग बयान में कहा है कि थोक मूल्यों के मुकाबले खुदरा दाम ऊंचे होते हैं। आईपीजीए ने जून में एक अध्ययन किया था जिसमें यह दिखा की थोक और खुदरा दाम के बीच बड़ा अंतर है। कोठारी ने कहा कि सरकार को थोक और खुदरा मूल्य के बीच बढ़ते अंतर पर ध्यान देना चाहिये और इसकी गहराई से जांच पड़ताल करनी चाहिये। उन्होंने कहा कि जब भी दाम बढ़ने की कोई रिपोर्ट आती है तो थोक विक्रेताओं को भी महंगाई को लेकर निशाना बनाया जाता है लेकिन खुदरा विक्रेता चाहे वह ऑनलाइन हो या फिर ऑफलाइन, संगठित क्षेत्र में हों अथवा असंगठित क्षेत्र से, कभी कभार ही उनपर नजर जाती है। देश में औसतन 3.50 करोड़ टन सालाना दालों की खपत होती है। इस साल भी इनकी कमी रहने की संभावना है।