नयी दिल्ली, 27 जून (भाषा) कुछ राज्यों ने केंद्रीय उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय द्वारा प्रस्तावित नए ई-कॉमर्स नियमों को लेकर चिंता जताई है। इनमें ज्यादातर गैर-भाजपा शासित राज्य है। उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय ने गलत तथ्यों की जानकारी देकर अपने उत्पाद बेचने तथा धोखाधड़ी के तरीके से छूट पर अंकुश लगाने के लिए इन नियमों का प्रस्ताव किया है। प्रस्तावित नियमों पर आपत्ति जताने वाले राज्यों का कहना है कि इससे रोजगार पर नकारात्मक असर पड़ेगा। साथ ही इससे हाल के वर्षों में विभिन्न मंचों द्वारा एमएसएमई को पहुंच उपलब्ध कराने के लिए बनाई गई व्यवस्था भी प्रभावित होगी। इन राज्यों सरकारों की योजना प्रस्तावित नियमों में मजबूत रक्षोपाय उपायों का सुझाव देने की है, जिससे यह सुनिश्चित हो सकेगा कि उपभोक्ता संरक्षण (ई-कॉमर्स) नियम, 2020 में किसी बदलाव से उनकी आर्थिक वृद्धि और राजस्व संग्रहण प्रभावित नहीं होगा। सूत्रों ने कहा कि इसके साथ यह भी ध्यान रखा जाएगा कि उनके सुझाव प्रस्तावित नियमों द्वारा उपभोक्ता संरक्षण ढांचे को बेहतर करने के रास्ते में किसी तरह बाधक नहीं बनें। इन अधिकारियों ने अपना नाम न बताने की शर्त पर कहा कि यह संवेदनशील मामला है और इससे सावधानी से निपटने की जरूरत है, क्योंकि उपभोक्ता हितों के संरक्षण के साथ रोजगार, एसएमएसई तथा स्वरोजगार में लगे लोगों का बचाव भी बेहद जरूरी है। अधिकारियों ने कहा कि नियमों के मसौदे पर औपचारिक सुझाव केंद्र को सौंपे जाएंगे। केंद्र ने इस मुद्दे पर छह जुलाई तक टिप्पणियां मांगी हैं। ई-कॉमर्स कंपनियों में निवेश करने वाले विदेशी और घरेलू निवेशकों तथा अन्य कारोबारी इकाइयों ने भी प्रस्तावित नियमों को लेकर आशंका जताई है। विशेष रूप से ई-कॉमर्स कंपनियों में निवेश करने वाले निवेश ‘फॉल-बैक लायबिलिटी’, फ्लैश सेल्स या भारी रियायत तथा डाटा शेयरिंग के बारे में नियमों को लेकर आंशकित हैं।