यूएस फेड ने एक बार फिर रेपो रेट में बढ़ोतरी की है

नई दिल्ली: अमेरिका के सेंट्रल बैंक फेडरल रिजर्व (Federal Reserve) ने एक बार फिर ब्याज दरों में इजाफा किया है। इस बार इसमें 25 बेसिस पॉइंट की बढ़ोतरी की गई है। इसके साथ ही बेंचमार्क ओवरनाइट इंटरेस्ट रेट 5.25 परसेंट से 5.50 परसेंट की रेंज में चला गया है। यह 2001 के बाद इसका उच्चतम स्तर है। अमेरिका के केंद्रीय बैंक ने महंगाई का हवाला देते हुए ब्याज दरों में बढ़ोतरी की है। साथ ही बैंक ने संकेत दिया है कि ब्याज दरों में आगे और बढ़ोतरी हो सकती है। फेडरल रिजर्व के प्रमुख जेरोम पॉवेल ने कहा कि जब तक महंगाई काबू में नहीं आ जाती है, तब तक ब्याज दर में तेजी आ सकती है। जून में अमेरिका में महंगाई तीन प्रतिशत रही। फेडरल रिजर्व को इसे दो फीसदी से कम रखने का लक्ष्य मिला है। जानते हैं कि इसका भारतीय अर्थव्यवस्था पर क्या असर होगा…जानकारों का कहना है कि जब भी अमेरिका का सेंट्रल बैंक पॉलिसी रेट्स बढ़ाता है तो भारत और अमेरिका के इंटरेस्ट रेट में अंतर कम हो जाता है। अभी भारत में रेपो रेट 6.50 परसेंट है। इससे करेंसी कैरी ट्रेड में भारत जैसी एमर्जिंग इकॉनमी निवेशकों के लिए ज्यादा आकर्षित नहीं रह जाती है। इससे भारत से कैपिटल फ्लो बाहर जा सकता है। ऐसा होने पर रुपये में गिरावट आ सकती है और आयात महंगा हो सकता है। इससे आरबीआई भी रेपो रेट में तेजी ला सकता है। आरबीआई ने लगातार दो बार से रेपो रेट में कोई बदलाव नहीं किया है। लेकिन अब आरबीआई एक बार फिर रेपो रेट में बढ़ोतरी कर सकता है।Real Estate Crisis: RBI की सख्ती आई काम, नहीं तो बैंकों को हो जाता काम तमाम…क्या करेगा आरबीआईआरबीआई की कोशिश होगी कि भारत और अमेरिका के बीच इंटरेस्ट रेट में अंतर बना रहे। इससे भारत में डॉलर का इनफ्लो बना रहेगा। अमेरिका में ब्याज दरों में बढ़ोतरी से डॉलर इनवेस्टमेंट्स पर रिटर्न में तेजी आती है। इससे डॉलर मजबूत होता है। अगर ऐसा होता है तो विदेशी निवेशक भारत जैसी एमर्जिंग इकॉनमी से रिस्क एसेट्स को निकाल सकते हैं। इससे कैपिटल की कॉस्ट बढ़ जाती है और शेयर मार्केट में उतारचढ़ाव आ सकता है। जाहिर है कि अमेरिकी सेंट्रल बैंक के पॉलिसी रेट में बढ़ोतरी से आरबीआई पर भी मॉनीटरी कमेटी की अगली बैठक में रेपो रेट बढ़ाने का दबाव बढ़ेगा। आरबीआई की मॉनीटरी पॉलिसी कमेटी की अगली बैठक अगस्त में होनी है।अगर आरबीआई रेपो रेट में इजाफा करता है तो इससे सभी तरह के लोन महंगे हो जाएंगे और ग्रोथ प्रभावित हो सकती है। रुपये के कमजोर होने से महंगाई बढ़ेगी क्योंकि आयात की कॉस्ट बढ़ जाएगी। इससे कंपनियों के मुनाफे पर भी असर होगा। साथ ही डेट फंड्स पर रिटर्न भी प्रभावित होगा क्योंकि अगर रुपये में गिरावट आती है तो महंगाई बढ़ सकती है और आरबीआई को रेपो रेट में बढ़ोतरी करनी होगी। रेट बढ़ने पर डेट फंड्स का परफॉर्मेंस गिरता है। हालांकि इससे निर्यात करने वाली कंपनियों को फायदा होगा। रुपये में उनकी इनकम बढ़ेगी। लेकिन इम्पोर्ट करने वाली कंपनियों को नुकसान होगा।