​138 साल पहले कोलकाता की छोटी सी क्लिनिक से निकलकर कैसे आपके घर तक पहुंचा ‘डाबर’, नाम में छिपा है बड़ा राज – how a doctor who selling medicines on bicycle start dabur with worth of rs 80000 crore

​वैद्य से शुरू की डाबर कंपनी​साल 1884 का दौर था। उस वक्त देश में हैजा और मलेरिया जैसी बीमारियों उसी तरह से फैली थी, जैसे बीते दो सालों में कोविड। कोलकाता में रहने वाले आयुर्वेदिक डॉक्टर डॉ एस के बर्मन अपनी छोटी सी क्लीनिक में लोगों का आयुर्वेदिक इलाज करते थे। वो आयुर्वेद की मदद से हैजा और मलेरिया की बीमारी ठीक करने में लोगों की मदद कर रहे थे। उनका इलाज लोगों पर कारगर साबित हो रहा था। उन्होंने इस बीमारियों से लड़ने के लिए आयुर्वेदिक दवाई भी बनाई, जो लोगों के बड़े काम आ रही थी। यहीं से डाबर की शुरुआत हुई। वो खुद दवाईयां बनाकर साइकिल से बेचा करते थे।​कैसे मिला डाबर नाम​डॉ एस के बर्मन ने हैजा और मलेरिया बीमारियों के इलाज के लिए दवाईओं के साथ-साथ आयुर्वेदिक हेल्थकेयर प्रोडक्ट भी बनाने लगे। लोगों को उनके ये प्रोडक्टर खूब पसंद आने लगे। यहीं से उन्होंने अपनी कंपनी डाबर की शुरुआत की। ‘डाबर’ नाम के पीछे भी रोचक कहानी है। बंगाली बोलने वाले लोग इन्हें डॉक्टर के बजाए डाक्टर कहते थे। उन्होंने डाक्टर से ‘डा’ और बर्मन का ‘बर’ लेकर इस ब्रांड को नया नाम दिया डाबर तय किया। डॉ एस के बर्मन अपने हाथों से जड़ी-बूटियों की मदद से हर्बल प्रोडक्टप बनाने थे। लोगों को उनका ये प्रोडक्टर इतना पसंद आया कि उन्हें एक फैक्ट्री लगानी पड़ी।​बेटे ने करोबार को और बढ़ाया​डॉ एस के बर्मन ने साल1907 में डाबर की कमान अपने बेटे को सी एल बर्मन के हाथों में सौंप दी। बेटे ने पिता से मिली विरासत को तेजी से बढ़ाया। डाबर रिसर्च लैब की शुरुआत के साथ उन्होंने डाबर के प्रोडक्ट का विस्तार करना शुरू किया। काम तेजी से बढ़ रहा था, इललिए वो कंपनी को कोलकाता से लेकर दिल्ली चले आए। साल 1972 में साहिबाबाद में डाबर की बड़ी फैक्ट्री, रिसर्च और डेवलपमेंट सेंटर शुरू किया गया।​शेयर बाजार में पहुंचा डाबर​कंपनी का मुनाफा तेजी से बढ़ रहा था। जो कभी एक छोटी सी क्लिनिक में शुरू हुआ था, देश-दुनिया में उसका विस्तार होने लगा। साल 1994 में डाबर ने अपना आईरीओ लॉन्च कर शेयर बाजार में दस्तक दे दी। डाबर की लोकप्रियता इतनी थी कि IPO 21 गुना ज्यादा सब्सक्राइब किया गया। कंपनी लगातार अपने प्रोडक्ट का विस्तार कर रही थी। डाबर हाजमोला, डाबर च्यवनप्राश, डाबर हनी, डाबर हनीटस, डाबर पुदीन हरा, डाबर लाल तेल, डाबर आंवला, डाबर रेड पेस्ट, रियल जूस और वाटिका जैसे कई प्रोडक्ट्स की लिस्ट लंबी होती जा रही थी। हालत ये हुई कि साल 1996 में उन्हें अपने प्रोडक्टर को तीन हिस्सों में बांटना पड़ा। डाबर हेल्थकेयर, फैमिली प्रोडक्ट और आयुर्वेदिक प्रोडक्ट की कैटेगरी बांटकर इसका विस्तार करना शुरू किया गया।​बर्मन फैमिली ने कुर्सी का मोह छोड़ा​1998 में बर्मन परिवार ने पही बार कंपनी के सीईओ पद पर परिवार के बजाए बाहरी शख्स को बिठाया। कंपनी की कमान फैमिली के हाथों से निकालकर प्रोफेशनल्स के हाथों में सौंप दी गई । असका फायदा भी कंपनी को मिला। साल 2000 में पहली बार डाबर का टर्नओवर 1 000 करोड़ को पार कर दिया। अगले पांच सालों में डाबर का मार्केट कैप 2 अरब डॉलर तक पहुंच गया। कंपनी ने ओडोनिल, फेम केयर फार्मा, होबी कॉस्मेटिक जैसी बड़ी कंपनियों का अधिग्रहण कर अपने पैर और फैला लिए।