नई दिल्ली: दुनिया की सबसे बड़ी एसेट मैनेजर कंपनी ब्लैकरॉक इंक (BlackRock Inc.) ने 2018 में भारत को अलविदा कर दिया था। लेकिन एक फिर यह अमेरिकी कंपनी भारत में वापसी कर रही है। इसके लिए उनसे देश की सबसे वैल्यूएबल कंपनी रिलायंस इंडस्ट्रीज (Reliance Industries Ltd) के साथ हाथ मिलाया है। मुकेश अंबानी (Mukesh Ambani) की जियो फाइनेंशिल सर्विसेज (JFS) और ब्लैकरॉक 50:50 फीसदी की हिस्सेदारी के साथ एक जॉइंट वेंचर बनाने की तैयारी हैं। जियो को ब्लैकरॉक के इनवेस्टमेंट मैनेजमेंट, रिस्क मैनेजमेंट, प्रोडक्ट, ऑपरेशंस, स्केल से जुड़ी विशेषज्ञता का फायदा मिलेगा तो वहीं ब्लैकरॉक को जियो के घरेलू बाजार में पहुंच, जानकारी और उसके डिजिटल इन्फ्रास्ट्रक्चर का लाभ मिलेगा। जानते हैं ब्लैकरॉक को कौन चलाता है और ये क्या करती है…अमेरिका की मल्टीनेशनल इनवेस्टमेंट कंपनी ब्लैकरॉक इंक दुनिया की सबसे बड़ी एसेट मैनेजर है। जून तिमाही में इसका एसेट अंडर मैनेजमेंट 9.43 ट्रिलियन डॉलर था। पिछले साल की तुलना में इसमें 11 फीसदी तेजी आई है जबकि पिछली तिमाही के मुकाबले यह चार फीसदी बढ़ा है। यह भारत की जीडीपी का करीब तीन गुना और अमेरिका की जीडीपी का आधा है। ब्लैकरॉक की हैसियत का अंदाजा आप इसी बात से लगा सकते हैं कि दुनिया के कुल शेयरों और बॉन्ड्स का 10 फीसदी यही कंपनी संभालती है। यानी यह दुनिया का सबसे बड़ा शेडो बैंक है। दुनिया के हर बड़े सेक्टर की बड़ी कंपनी में इसका हिस्सा है।RIL Share Price: रिलायंस रिटेल में हिस्सा बेच सकते हैं मुकेश अंबानी, जानिए कौन है खरीदारकौन हैं लैरी फिंकदुनिया की सबसे वैल्यूएबल कंपनी ऐपल में ब्लैकरॉक की 6.5 परसेंट हिस्सेदारी है। इसी तरह वेरिजॉन और फोर्ड में इसकी 7.25%, फेसबुक में 6.5%, वेल्स फर्गो में सात परसेंट, जेपीमोर्गन में 6.5% और डॉयचे बैंक में 4.8% हिस्सेदारी है। गूगल की पेरेंट कंपनी अल्फाबेट इंक में ब्लैकरॉक की 4.48% हिस्सेदारी है। भारत की भी कई बड़ी कंपनियों में इसकी हिस्सेदारी है। इससे आप अंदाजा लगा सकता है कि ब्लैकरॉक कितनी पावरफुल कंपनी है। इसकी स्थापना लैरी फिंक (Larry Fink) ने 1988 में की थी। फिंक कंपनी के सीईओ और चेयरमैन हैं। फिंक ने पॉलिटिकल साइंस की पढ़ाई की थी लेकिन पैसा कमाने का ऐसा चस्का लगा कि शेयर मार्केट में घुस गए। उन्होंने 23 साल की उम्र में बोस्टन डायनामिक्स से करियर की शुरुआत की।डेट सिंडिकेशन की शुरुआत करने का श्रेय फिंक को दिया जाता है। 31 साल की उम्र में वह बैंक के एमडी बन गए। एक साल में उन्होंने बैंक को एक अरब डॉलर कमाकर दिए। फिंक ने और जोखिम लेना शुरू किया लेकिन एक तिमाही में बैंक को 10 करोड़ डॉलर का घाटा हो गया। इससे बैंक ने उनकी छुट्टी कर दी। साल 1988 में 35 साल की उम्र में फिंक ने खुद की कंपनी खोलने का फैसला किया। तब जाने माने इन्वेस्टर स्टीव स्वार्जमैन ने उनका हाथ थामा। स्टीव की कंपनी ब्लैकस्टोन ने फिंक के साथ पार्टनरशिप की और 50 लाख डॉलर का इन्वेस्टमेंट किया। फिंक को सबसे पहले जीई ने कुछ एसेट संभालने को दी। फिंक ने इस काम को बखूबी अंजाम दिया। फिर तो उनकी गाड़ी चल निकली। पांच साल में कंपनी का एसेट अंडर मैनेजमेंट 20 अरब डॉलर जा पहुंचा।रिलायंस इंडस्ट्रीज़ : तेल की धार पर क्यों फिसल गये मुकेश अंबानी? मुनाफे में लगी सेंध से समझिएचीन भी नहीं रोक पायालेकिन फिंक और स्टीव में धीरे-धीरे मतभेद हो गए। फिंक ने इसके बाद अपनी अलग कंपनी ब्लैकरॉक बना ली। इसके बाद तो फिंक ने पीछे मुड़कर नहीं देखा। आज ब्लैकरॉक दुनियाभर में कंपनियों और सरकारों के एसेट को मैनेज करती है। इनमें पेंशन फंड भी शामिल है। दुनिया में फंड मैनेज करने वाली तीन बड़ी कंपनियां हैं। इनमें ब्लैकरॉक के अलावा Vanguard और State Street शामिल हैं। ये तीनों कंपनियां मिलकर अमेरिका की जीडीपी के 70 परसेंट के बराबर एसेट को मैनेज कर रही हैं। ब्लैकरॉक को दुनिया के सबसे प्रभावशाली फाइनेंशियल इंस्टीट्यूशन का अवॉर्ड मिल चुका है।इसकी ताकत का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी इकॉनमी वाले देश चीन की सरकार भी इसे अपने यहां आने से नहीं रोक पाई थी। साल 2008 में जब फाइनेंशियल क्राइसिस के कारण बड़ी-बड़ी कंपनियां डूबने के कगार पर थी तो अमेरिका की सरकार ने ब्लैकरॉक का सहारा लिया था। हालांकि कहा जाता है कि इस क्राइसिस की जड़ में ब्लैकरॉक ही थी। फिंक ने ही अमेरिका को इस संकट से उबारा था। इसके बाद जब 2020 में कोरोना महामारी के कारण जब बॉन्ड मार्केट बुरी तरह हिल गया था तो एक बार फिर ब्लैकरॉक ने स्थिति संभाली थी।