Chandrayaan-3 mission has components from various public and private companies

नई दिल्ली: चंद्रयान-3 (Chandrayaan-3) का लैंडर विक्रम (Vikram Lander) आज शाम को चांद की सतह पर सॉफ्ट लैंडिंग करने जा रहा है। अगर यह प्रयास सफल रहता है तो स्पेस सेक्टर में भारत की धाक जम जाएगी। अब तक कोई भी देश चांद के साउथ पोल पर नहीं पहुंच पाया है। इस मिशन की सफलता से निजी कंपनियों के लिए भी स्पेस सेक्टर में नए मौके खुलेंगे। चंद्रयान-3 मिशन में कई सरकारी और प्राइवेट कंपनियों ने योगदान दिया है। इनमें लार्सन एंड टुब्रो, भारत हेवी इलेक्ट्रिकल्स लिमिटेड, केरल स्टेट इलेक्ट्रॉनिक डेवलपमेंट कॉरपोरेशन और वालचंद इंडस्ट्रीज शामिल है। इन कंपनियों ने चंद्रयान-3 मिशन के लिए कई तरह की टेक्नोलॉजी सप्लाई की है।चंद्रयान-3 मिशन में योगदान देने वाली लिस्टेड कंपनियों में एलएंडटी, वालंचद, सेंटम, पारस, हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड, बीएचईएल, Linde और MTAR शामिल हैं। करीब 400 कंपनियां इसरो के बड़े वेंडर ईकोसिस्टम का हिस्सा हैं। इसरो ने पिछले 54 सालों में पूरी सतर्कता के बाद इस वेंडर सिस्टम को खड़ा किया है। ये कंपनियां इसरो की कंपोनेट्स, मटीरियल और फैब्रिकेशन की जरूरतों को पूरा करती हैं। जानकारों का कहना है कि इसरो के चंद्रयान मिशन में प्राइवेट सेक्टर की भी अहम भूमिका है। इन कंपनियों में चंद्रयान मिशन के लिए कई कंपोनेंट्स सप्लाई किए हैं। इसरो के वेंडर्स की लिस्ट में अनंत टेक्नोलॉजीज लिमिटेज (Ananth Technologies Ltd) और गोदरेज एंड बॉयस (Godrej & Boyce) शामिल हैं।Moon Economy : चांद के साउथ पोल पर पहुंचते ही भारत के हाथ कैसे लग जाएगा खजाना, जानिएकिस-किस कंपनी का है योगदानचंद्रयान-3 मिशन के लिए लॉन्च वीकल बूस्टर सेंगमेंट्स और सबसिस्टम्स को लार्सन एंड टुब्रो ने तैयार किया है। इसी तरह बैटरीज की सप्लाई भारत हेवी इलेक्ट्रकिल्स लिमिटेड ने की है। टेस्ट एंड इवैल्यूएशन सिस्टम केरल स्टेट इलेक्ट्रॉनिक्स डेवलपमेंट कॉरपोरेशन ने डेवलप किया है जबकि मिशन कंपोनेंट्स को वालचंद इंडस्ट्रीज ने बनाया है। हैदराबाद की कंपनी एटीएल के फाउंडर और सीएमडी सुब्बा राव पवुलूरी ने कहा कि कंपनी ने इसरो के लॉन्च वीकल्स, सैटेलाइट्स, स्पेसक्राफ्ट पेलोड्स और ग्राउंड सिस्टम्स के लिए कई तरह के इलेक्ट्रॉनिक्स और मैकेनिकल सबसिस्टम्स बनाए हैं।मुंबई की कंपनी गोदरेज एंड बॉयस ने चंद्रयान और मंगलयान मिशनों के लिए लिक्विड प्रपल्शन इंजन, सैटेलाइट थ्रस्टर्स और कंट्रोल मॉड्यूल जैसे क्रिटिकल कंपोनेंट्स की सप्लाई की है। भारत में 2020 में अपने स्पेस सेक्टर को प्राइवेट सेक्टर की भागीदारी के लिए खोला था। पिछले साल एचएएल और एलएंडटी के कंसोर्टियम को पांच पीएसएलवी बनाने के लिए न्यू स्पेस इंडिया लिमिटेड से 860 करोड़ रुपये की डील मिली थी। जानकारों का कहना है कि अब बड़ी कंपनियां टेक्नोलॉजी में इन्वेस्टमेंट कर सकती हैं और स्पेस सेक्टर में बड़ा दांव खेल सकती हैं।हमें विश्वास है सब अच्छा होगा… चंद्रयान-3 के चांद पर लैंडिंग से पहले ISRO चीफ का जोश देखिएकौन है नोडल एजेंसीदेश में कई कंपनियां रॉकेट, सैटेलाइट और स्पेस से जुड़े बड़े प्रोजेक्ट्स में कूदना चाहते हैं। देश में स्पेस सेक्टर में प्राइवेट कंपनियों को अथॉराइज, प्रमोट और रेगुलेट करने के लिए इंडियन नेशनल स्पेस प्रमोशन एंड अथरॉइजेशन सेंटर सिंगल विंडो नोडल एजेंसी है। देश में कुल 20 कंपनियों ने एसएसएलवी बनाने में दिलचस्पी दिखाई है। इसरो ने इस छोटे रॉकेट को डेवलप किया है। इससे पृथ्वी की निचली कक्षा में कम लागत पर सैटेलाइट भेजे जा सकते हैं।