नई दिल्ली: दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी इकॉनमी चीन से लगातार डराने वाली खबरें आ रही हैं। देश का एक्सपोर्ट लगातार तीसरे महीने गिरा है और जुलाई में देश की इकॉनमी भी डिफ्लेशन (deflation) में चली गई है। दो साल में पहली बार ऐसा हुआ है। वस्तुओं और सेवाओं की कीमतों में गिरावट को डिफ्लेशन कहते हैं। आम तौर पर इकॉनमी में फंड की सप्लाई और क्रेडिट में गिरावट के कारण ऐसी स्थिति पैदा होती है। इससे चीन की इकॉनमी में जापान की तरह ठहराव आने की आशंका जताई जा रही है। एक जमाने में जापान की इकॉनमी रॉकेट की रफ्तार से बढ़ रही थी और माना जा रहा था कि अमेरिका को पीछे छोड़ देगा। लेकिन 1990 के दशक में जापान की इकॉनमी में ठहराव आ गया था। चीन में डिफ्लेशन पूरी दुनिया के लिए चिंताजनक है।चीन के सरकारी आंकड़ों के मुताबिक कंज्यूमर प्राइस इंडेक्स में जुलाई में पिछले साल के मुकाबले 0.3 परसेंट की गिरावट रही। जानकारों का कहना है कि इससे चीन की सरकार पर इकॉनमी को रिवाइव करने का दबाव बढ़ गया है। जुलाई में चीन के एक्सपोर्ट और इम्पोर्ट में भी गिरावट आई। साथ ही देश में सरकार का कर्ज काफी बढ़ गया है और रियल एस्टेट मार्केट भी संकट का सामना कर रहा है। देश में युवाओं की बेरोजगारी रेकॉर्ड हाई पर पहुंच गई है। कीमतों में गिरावट से चीन के लिए अपने कर्ज को कम करना मुश्किल हो गया है। साथ ही दूसरी चुनौतियों से निपटना भी आसान नहीं है।Recession Update: आने वाली है मंदी! चीन से जर्मनी तक मिलने लगे हैं संकेत, मचने वाला है हाहाकारदुनिया पर क्या होगा असरजानकारों का कहना है कि इनफ्लेशन को बढ़ाना आसान नहीं है। सरकार को ज्यादा खर्च करना पड़ेगा। साथ ही टैक्स में कमी करने के साथ-साथ मॉनीटरी पॉलिसी में भी नरम रुख अपनाना होगा। कोरोना महामारी से जुड़ी पाबंदियों के हटने के बाद विकसित देशों में कंज्यूमर स्पेंडिंग में काफी तेजी आई है। लेकिन चीन में ऐसा नहीं हुआ। वहां कमजोर डिमांड के कारण पिछले कई महीनों से कीमतें सपाट बनी हुई थी। वहां फैक्ट्री गेट कीमतों में भी गिरावट आई है। यानी जहां दुनिया के दूसरे देशों में डिमांड जोर पकड़ रही है वहीं चीन में डिमांड कमजोर बनी हुई है। डिफ्लेशन से चीन की स्थिति और बदतर होगी। इससे डेट और बढ़ जाएगा। यह ग्लोबल इकॉनमी के लिए भी अच्छी खबर नहीं है।चीन को दुनिया की फैक्ट्री कहा जाता है। इसकी वजह यह है कि चीन बड़ी मात्रा में चीजों का उत्पादन करता है जिनकी पूरी दुनिया में बिक्री होती है। अगर चीन में ज्यादा समय तक डिफ्लेशन की स्थिति बनी रहती है तो इसका पूरी दुनिया पर असर होगा। इससे महंगाई पर अंकुश लगेगा। अगर सस्ता चीनी माल दुनिया के बाजारों में आता है तो इससे दूसरे देशों के मैन्युफैक्चरर्स पर असर पड़ेगा। इससे कंपनियों का निवेश प्रभावित हो सकता है और बेरोजगार बढ़ सकती है। साथ ही इससे चीन की कंपनियों के प्रॉफिट और कंज्यूमर स्पेंडिंग भी प्रभावित हो सकता है। इससे देश में एनर्जी, कच्चे माल और फूड की डिमांड कम हो सकती है। ऐसा होने पर ग्लोबल एक्सपोर्ट भी प्रभावित हो सकता है। चीन दुनिया का सबसे बड़ा मार्केट है।China Economy: चीन का बज गया बैंड! ड्रैगन को छोड़कर भाग रहे विदेशी निवेशक, जानिए कहां जा रहे?चीन के लिए क्यों है बुरी खबरचीन की इकॉनमी पहले से ही कई तरह की समस्याओं से जूझ रही है। देश की इकॉनमी अभी पूरी तरह महामारी के प्रभाव से नहीं निकल पाई है। मंगलवार को सरकार ने एक्सपोर्ठ के आंकड़े जारी किए। जुलाई में देश का एक्सपोर्ट 14.5 परसेंट गिरावट आई जबकि इम्पोर्ट भी 12.4 परसेंट गिरा है। इससे आशंका पैदा हो रही है कि देश की इकॉनमिक ग्रोथ में आगे और गिरावट आ सकती है। चीन का प्रॉपर्टी मार्केट संकट से गुजर रहा है। देश की सबसे बड़ी रियल एस्टेट कंपनी Evergrande कभी भी दिवालिया हो सकती है। चीन की सरकार यह बताने की कोशिश कर रही है कि सबकुछ अंडर कंट्रोल है लेकिन अब तक उसके इकॉनमिक ग्रोथ के लिए कोई बड़ा कदम नहीं उठाया है।