हाइलाइट्स:गरवारे ऑफशोर सर्विसेज के ओपन ऑफर के मामले पर सुप्रीम कोर्ट में आगामी 13 जुलाई को सुनवाई होगीग्लोबल ऑफसोर सर्विसेज द्वारा अपने ओपन ऑफर में तथ्यों को दबाने के लिए इंडिया स्टार मॉरीशस के खिलाफ जीआईसी और कुछ अन्य निवेशकों ने SEBI के पास शिकायत की थीसेबी ने बाद में इस मामले को सुप्रीम कोर्ट को भेज दिया थामुंबईगरवारे ऑफशोर सर्विसेज (अब ग्लोबल ऑफशोर सर्विसेज) के ओपन ऑफर के मामले पर सुप्रीम कोर्ट में आगामी 13 जुलाई को सुनवाई होगी। ग्लोबल ऑफसोर सर्विसेज द्वारा अपने ओपन ऑफर में तथ्यों को दबाने के लिए इंडिया स्टार मॉरीशस के खिलाफ जनरल इंश्योरेंस कारपोरेशन (GIC) और कुछ अन्य निवेशकों ने बाजार नियामक प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (SEBI) के पास शिकायत की थी। सेबी ने बाद में इस मामले को सुप्रीम कोर्ट को भेज दिया था।क्या है मामलामार्च 2008 में, इंडिया स्टार मॉरीशस (India Star Mauritius) ने गरवारे ऑफशोर सर्विसेज (Garware Offshore Services) में 20 प्रतिशत हिस्सेदारी खरीदने करने के लिए 234 रुपए प्रति शेयर के हिसाब से ओपन ऑफर लाया था। कंपनी के शेयरहोल्डर की हैसियत से जीआईसी ने ओपन ऑफर में अपनी हिस्सेदारी बेचने की पेशकश नहीं की थी। वर्ष 2011 में जीआईसी ने सिक्यूरिटीज अपीलेट ट्रिब्यूनल (SAT) में एक याचिका डाल कर कहा था कि इंडिया स्टार मॉरीशस ने ओपन ऑफर के दौरान कुछ तथ्यों का खुलासा नहीं किया था। इसलिए उसे नए सिरे से ओपन ऑफर (Open Offer) देने की सिफ़ारिश की जाए। जीआईसी ने कहा था कि अगर उन फैक्ट्स का खुलासा किया जाता तो वह अपने शेयरों की पेशकश करता। तब सैट ने जीआईसी को सेबी के पास जाने का निर्देश दिया था।यह भी पढ़ें: जमा करके भूल गए लोग, बैंकों में पड़े हैं 18 हजार 381 करोड़, लेने वाला कोई नहींजीआईसी ने सेबी के पास की शिकायतजनवरी 2012 में जीआईसी ने सेबी के पास लिखित शिकायत दायर कर कहा था कि इंडिया स्टार मॉरीशस ने कुछ तथ्य को छिपाया है। उसने इस बात का खुलासा नहीं किया कि उसके मूल इंडिया स्टार फंड एलपी का स्वामित्व साइकामोर मैनेजमेंट कॉर्पोरेशन के पास था। जो सबटेंशियल एक्विसिशन ऑफ शेयर्स एंड टेकओवर्स रेगुलशन्स 1997 के पर्याप्त अधिग्रहण के तहत और 8 मार्च, 2004 के सेबी सर्कुलर के तहत अनिवार्य था। जीआईसी ने कहा कि कंपनी ने इस बात का खुलासा नहीं किया कि ग्रुप की कंपनी साइकामोर वेंचर्स ने भारतीय इंफ्रास्ट्रक्चर कंपनियों और तेल और गैस में निवेश किया था। जीआईसी ने कहा कि इसके अलावा टारगेट कंपनी ऑयल एंड गैस बिजनेस में भी है। साथ ही यह भी दावा किया कि कंपनी के निदेशक रवि प्रताप सिंह के सेरा नोवा इंक, दहवा रिसोर्सेस और सिल्वरलाइन टेक्नोलॉजीज में कार्यकाल का खुलासा नहीं किया गया। जीआईसी ने अपनी शिकायत में कहा था कि सिल्वरलाइन टेक्नोलॉजीज ने उचित खुलासा अमेरिकी रेगुलेटर के पास नहीं किया था। इसलिए सेरा नोवा इंक के खिलाफ अमेरिकी अदालत द्वारा संक्षिप्त निर्णय पारित किया गया था। सेबी के होलटाइम मेंबर ने 21 नवंबर 2014 के ऑर्डर में हालांकि ये बात कही है कि अमेरिकी सिनेट की जांच में परमानेंट सब कमिटी ऑन इनवेस्टिगेशन ने यह पाया कि साइकोमोर वेंचर अमेरिकी में मनी लांड्रिंग करते हुए पकड़ा गया था। जिसकी वजह से उसका नाम ओपन ऑफर डॉक्युमेंट में उसका नाम छिपाया गया है। शेयरधारकों का यह भी आरोपशेयरधारकों का यह भी आरोप है कि अगर मनी लांड्रिंग के बारे में ओपन ऑफर में लिखा जाता तो वे ऐसी कंपनी के शेयर रखते ही नहीं, जिसमें अमेरिका के मनी लांड्रिंग वाले लोगों की सबसे ज्यादा हिस्सेदारी हो जाएगी। गौरतलब है कि ग्लोबल ऑफशोर के शेयर का भाव कभी 800 रुपए था। वह अब 12 रुपए पर ट्रेड कर रहा है। ऐसा इसलिए, क्योंकि बैंकों का सारा पैसा उसने डिफॉल्ट कर दिया है। इसके लिए सुप्रीम कोर्ट में शेयरधारकों ने अर्जी लगाई है कि मनी लांड्रिंग नजरिए से इस केस की जांच होनी चाहिए।टैक्स से जुड़े इन कामों के लिए आगे बढ़ गई डेडलाइन