नई दिल्ली: किसी सीजन में खबर आती है कि टमाटर के भाव इतने गिर गए हैं कि किसानों ने उसे बाजार में बेचना मुनासिब नहीं समझा, उस पर ट्रैक्टर चला दिया। अगले सीजन में टमाटर से किसान बेरुखी दिखाते हैं, फिर उसकी सप्लाई शॉर्ट हो जाती है। बारिश का सीजन आते-आते उसकी कीमतें हैरतअंगेज ढंग से बढ़ जाती हैं। ये हम पहले भी देखते रहते हैं, लेकिन कोई बड़ी बात नहीं होती थी। मगर, बात अभी बड़ी है, क्योंकि टमाटर ही नहीं, प्याज और अनाज की महंगाई भी चुनावी मैदान में कूदने को तैयार है। इस साल के अंत में कई राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं। अगले साल लोकसभा के चुनाव होने वाले हैं।क्या महंगाई पर लगेगी लगामसवाल है कि क्या इससे पहले महंगाई को रोका नहीं जा सकेगा? एक वक्त प्याज की तेज कीमतों ने दिल्ली की सरकार गिराने में बड़ा रोल निभाया था। रिपोर्ट्स के मुताबिक हाल तक टमाटर बाजार में 300 रुपये किलो तक बिक रहा था। इसके साथ ही संकेत मिल रहे हैं कि प्याज भी आने वाले समय में मुश्किल हालात पैदा कर सकता है। असामान्य बारिश के कारण प्याज का स्टॉक पहले से ही दबाव में है। हो सकता है कि नई फसल आने के साथ ही प्याज और टमाटर की कीमतों का दबाव आने वाले महीनों में खत्म हो जाए। लेकिन चावल, गेहूं और दालों जैसे अनाजों के दबाव के कारण महंगाई दर ऊंची ही रहने की संभावना है।टमाटर की भूमिकासरकारी आंकड़ों के मुताबिक महंगाई में बढ़ोतरी जून में 4.81% ही थी। मई में यह दो साल में सबसे कम 4.25% थी। मगर, जुलाई में माहौल बदलने जा रहा है। टमाटर ने एक बड़ी भूमिका निभाई। अर्थशास्त्रियों के एक पोल में कहा गया है कि इसके कारण जुलाई की महंगाई दर 6.4% हो जाएगी। रिजर्व बैंक की प्राथमिकता ये रहती है कि महंगाई दर कभी 6 पर्सेंट से ऊपर न होने पाए। अगर महंगाई में बढ़ोतरी होती रही, तब रिजर्व बैंक ब्याज दरों में कटौती में देरी कर सकता है।औंधे मुंह गिरेंगे टमाटर के दाम, ₹70 किलो तक पहुंच जाएगी कीमत, सरकार ने कर ली तैयारीसमझा जाता है कि ब्याज दर ऊंची बनी रही तो मार्केट में मनी फ्लो कम होगा। इससे महंगाई तो काबू में रहेगी। लेकिन डिमांड कम होगी और ग्रोथ रेट पर दबाव पड़ना तय है। ग्रोथ रेट कम होने की स्थिति ज्यादा समय तक रही तो नौकरियों पर दिक्कत आ सकती है। खाद्य पदार्थों की महंगाई से गरीब परिवारों पर बुरा असर पड़ेगा।क्या हैं विकल्पसवाल है कि महंगाई के हालात को देखते हुए ही रिजर्व बैंक क्या कर सकता है? उसकी मौद्रिक नीति समिति ब्याज दरों में कमी या बढ़ोतरी करती है, जिससे मार्केट में डिमांड घटती या बढ़ती है। अभी महंगाई बढ़ने की वजह खाद्य पदार्थों की सप्लाई में कमी है। डिमांड में कमी नहीं है। सप्लाई में रिजर्व बैंक के हाथ बंधे हैं। इसी कारण अभी जो महंगाई की समस्या है, उसे हल करने में मौद्रिक नीति के औजार बहुत कम योगदान कर सकते हैं। महंगाई बढ़ने के बावजूद रिजर्व बैंक की मौद्रिक नीति समिति ने हाल में फैसला किया है कि उन पॉलिसी रेट में कोई बदलाव न किया जाए, जिससे ब्याज दरें प्रभावित होती हैं।समिति ने पहले अनुमान लगाया था कि इस वित्तीय वर्ष में महंगाई दर औसतन 5.1% रह सकती है। दो महीने बाद ही समिति ने अपना अनुमान बदल दिया। अब उसका कहना है कि महंगाई दर 5.4% रह सकती है। जुलाई से सितंबर के बीच तो इसके 6.2 पर्सेंट रहने का अनुमान है। महंगाई बढ़ने में कुछ और मुद्दे रोल निभा सकते हैं। 2000 के नोट की वापसी के बाद बैंकिंग सिस्टम में मनी फ्लो बढ़ गया है। ये अनुमान स्वाभाविक है कि बैंक इसके बाद ज्यादा लोन बांटने लगेंगे। इससे मार्केट में मनी फ्लो बढ़ जाएगा। नतीजतन महंगाई भी बढ़ जाएगी। रिजर्व बैंक अब कोशिश कर रहा है कि कुछ दूसरे तरीकों से बैंकों से नकदी खींच ली जाए।महंगाई की मार! टमाटर की कीमतों में उछाल से 34 फीसदी महंगी हो गई वेजेटेरियन थाली, रसोई का बिगड़ा बजटसरकार ने लिया फैसलाजहां तक सप्लाई का सवाल है, केंद्र सरकार ने इस सिलसिले में हाल में कुछ फैसले किए हैं। जैसे गैरबासमती चावल के निर्यात पर पाबंदी लगाई गई है। टमाटर का आयात किया गया है। प्याज का स्टॉक रिलीज करने का फैसला किया गया है। इन कदमों का नतीजा देखा जाना बाकी है। सरकार इस बात पर राहत ले सकती है कि खाद्य पदार्थों और ईंधन को छोड़कर बाकी आइटम्स के मोर्चे पर गंभीर चिंता की स्थिति नहीं है।