हाइलाइट्सइस कानून को 2012 में तत्कालीन वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी (pranab mukherjee) ने अमली जामा पहनाया था।रेट्रोस्पेक्टिव टैक्सेशन (retrospective taxation) में कानून के पास होने की तारीख से पहले टैक्स लागू हो जाता है।इस कानून के तहत भारत सरकार ने केयर्न एनर्जी (Cairn Energy) और वोडाफोन को टैक्स डिमांड भेजा था।नई दिल्लीरेट्रोस्पेक्टिव टैक्स कानून (Retrospective tax law) को सरकार 9 साल बाद खत्म करने जा रही है। सरकार ने गुरुवार को टैक्सेशन लॉज (अमेंडमेंट) बिल, 2021 पेश किया। इस बिल के पारित होने के बाद पूर्व तारीख से टैक्स लगाने वाला विवादित कानून खत्म हो जाएगा। इस कानून को लेकर विवाद पैदा हुआ था। विदेश निवेश आकर्षित करने को लेकर भारत की साख को भी धक्का लगा था। दरअसल, इस कानून को तत्कालीन वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी ने अमली जामा पहनाया था। यह कानून उन पर दाग लगा गया था। कई टैक्स एक्सपर्ट ने भी इस पर सवाल उठाए थे।क्या है कानून और क्यों हुआ विवादरेट्रोस्पेक्टिव टैक्सेशन ऐसी प्रक्रिया है, जिसमें नए कानून के पास होने की तारीख से पहले टैक्स लागू हो जाता है। यह टैक्स इनकम टैक्स विभाग कंपनियों पर लगाता है। पहले की तारीख से टैक्स लगाने का कानून 2012 में बना था। उस समय प्रणब मुखर्जी देश के वित्त मंत्री थे। उन्होंने फाइनेंस ऐक्ट में बदलाव कर दिया। फाइनेंस ऐक्ट में बदलाव के कारण इनकम टैक्स डिपार्टमेंट को रेट्रोस्पेक्टिव टैक्स का पावर मिल गया।Sahara Investors case : सेबी ने 16909 मामलों का किया निपटारा, सहारा के निवेशकों को 129 करोड़ रुपये लौटाएइस कानून के तहत भारत सरकार ने ब्रिटिश कंपनी केयर्न एनर्जी और वोडाफोन को टैक्स डिमांड भेजा था। दोनों कंपनियों ने भारत सरकार के टैक्स की मांग को कोर्ट में चुनौती दी थी। लंबी कानूनी लड़ाई के बाद दोनों कंपनियों की जीत हुई है। वोडाफोन का मामलावोडाफोन ने 2007 में हच ( Hutchison Whampoa) को खरीद कर भारतीय बाजार में एंट्री की थी। वोडाफोन ने हच मे 67 फीसदी हिस्सेदारी उस समय 11 अरब डॉलर में खरीदी थी। इस डील में हच का इंडियन टेलिफोन बिजनस और अन्य असेट शामिल हैं। उसी साल सरकार ने वोडाफोन से कहा कि उसे कैपिटल गेन और विद होल्डिंग टैक्स के रूप में 7990 करोड़ रुपये चुकाने होंगे। ऐसे में वोडाफोन को पेमेंट से पहल यह पैसा टैक्स के रूप में काट लेना चाहिए।वोडाफोन इनकम टैक्स के इस दावे के खिलाफ बॉम्बे हाईकोर्ट पहुंचा। कोर्ट ने इनकम टैक्स डिपार्टमेंट के हक में फैसला सुनाया। बाद में यह मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा। 2012 में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वोडाफोन पर हिस्सेदारी खरीदने के कारण टैक्स लाएबिलिटी नहीं बनती है। उसने इनकम टैक्स ऐक्ट 1961 का जो अर्थ निकाला है, वह ठीक है।Swiggy ई-बाइक से आपके घर पहुंचाएगी खाना, इस कंपनी से किया समझौताकेयर्न का मामलाकेयर्न ने 2007 में भारत में अपनी कंपनी को सूचीबद्ध कराने के लिए आईपीओ पेश किया था। इससे एक साल पहले उसने केयर्न इंडिया के साथ भारत में अपनी कई इकाइयों का विलय किया था। लेकिन इससे इनके मालिकाना हक में कोई बदलाव नहीं हुआ था। केयर्न ने इसके लिए फॉरेन इन्वेस्टमेंट प्रमोशन बोर्ड (FIPB) से इजाजत ली थी। सात साल बाद भारत में टैक्स डिपार्टेमेंट ने उस पर कैपिटल गेंस टैक्स का नोटिस भेजा। उसने 2014 में केयर्न से कहा कि आईपीओ से पहले उसने अपनी कई इकाइयों को केयर्न इंडिया में मिलाया था। इससे उसे कैपिटल गेंस हुआ था। इसलिए उसे टैक्स चुकाना होगा। केयर्न इसके खिलाफ अदालत चली गई।भारत में टैक्स डिपार्टमेंट ने 10 हजार करोड़ से अधिक बकाये (Capital Gains Tax) के एवज में केयर्न इंडिया के 10 फीसदी शेयरों को अपने कब्जे में ले लिया। इस मामले की सुनावई के बाद नीदरलैंड्स में हेग के आर्बिट्रेशन कोर्ट ने भारत सरकार के खिलाफ फैसला सुनाया। उसने ब्याज सहित यह रकम केयर्न को चुकाने का निर्देश दिया।कॉरपोरेट टैक्स फाइलिंग में आसानी के लिए क्या-क्या कर चुकी है सरकार