Raymond success story:कभी अंग्रेजों के खिलाफ शुरू हुई थी ये कंपनी, अब टूटने की कगार पर – raymond success story: from making army uniform to suiting shirting raymond

नई दिल्ली: ‘द कंप्लीट मैन’ से लेकर ‘फील्स लाइक हैवन’ तक का सफर करने वाले रेमंड (Raymond) अपने कारोबार के कुछ हिस्सों को बेच रही है। गोदरेज कंज्यूमर प्रोडक्ट्स लिमिटेड रेमंड के एफएमसीजी कारोबार का अधिग्रहण करेगी। 2825 करोड़ रुपये में ये डील हुई है, जिसमें गोदरेज रेमंड के पार्क एवेन्यू और कामसूत्र जैसे बड़े ब्रांड का अधिग्रहण कर रहा है। अपने फैशन और लाइफस्टाइल कारोबार के लिए मशहूर रेमंड की शुरुआत की कहानी भी बेहद रोचक है।​100 साल पहले हुई थी रेमंड की शुरुआतरेमंड एक ऐसा ब्रांड है , जिसे बच्चा-बच्चा जानता है। एक वक्त ऐसा था, जब शादियों में अगर रेमंड के कपड़े ना मिले तो शादियां अधूरी मानी जाती थी। सूट मतलब रेमंड होता था, लेकिन आज ये ब्रांड घर-घर में पहुंच चुका है। अमीरों से लेकर आम लोगों के बीच इस ब्रांड की खास पॉपुलैरिटी मिली है। इस कंपनी की नींव आजादी से पहले रखी गई। साल 1900 में महाराष्ट्र के ठाणे में एक वुलन मिल के तौर पर इस कंपनी की नींव रखी गई, नाम था वाडिया मिल (Wadia Mill). ये मिल सेना के जवानों के लिए यूनिफॉर्म बनाती थी। कुछ सालों तक तो सब ठीक चलता रहा, लेकिन फिर बाद में मिल को बंद करने की नौबत आ गई। उसी वक्त सिंघानिया परिवार को पता चला कि मिल को बेचने की तैयारी हो रही है। साल 1925 में मुंबई के एक कारोबारी ने इस मिल को खरीदा, लेकिन साल 1940 में कैलाशपत सिंधानिया ने उससे वाडिया मिल खरीदकर इसका नाम रेमंड मिल (Raymond Mill) रखा। सिंघानिया का परिवार राजस्थान के छोटे से इलाका शेखावटी से फर्रुखाबाद में शिफ्ट हो गया। नए कारोबार और बेहतर मौके के लिए परिवार ने ये फैसला लिया। उन्होंने कानपुर में जेके कॉटन स्पीनिंग और वेविंग मिल्स को. की शुरुआत की। इस कंपनी की शुरुआत इंग्लैंड ने आने वाले कपड़ों को टक्कर देने के लिए की गई थी।​सस्ते कपड़े बनाने में माहिरजेके ग्रुप ऑफ कंपनीज (JK Group of companies) के मालिक कैलाशपत सिंघानिया ने रेमंड को खरीदने के बाद सस्ते वुलन कपड़े बनाने से शुरुआत की। सिंघानिया परिवार कानपुर का बड़ा कारोबारी घराना था। कॉटन कपड़ों के कारोबार में वो पहले से मौजूद थे। रेमंड के साथ उन्होंने अब वुलन ब्रांड में भी एंट्री कर ली।कैलाशपत सिंघानिया ने रेमंड को बड़ा करने पर अपना पूरा फोकस बढ़ा दिया। साल 1958 में मुंबई में रेमंड्स ने अपना पहला शोरूम खोला। साल 1960 तक रेमंड देश की पहली ऐसी मिल बन गई, जहां पर कपड़ा बनाने के लिए विदेशों से मशीनें मंगवाई गई।​सूटिंग फैब्रिक में बजा डंका​साल 1970 तक रेमेंड सूटिंग फैब्रिक में छा गया। रेमेंड के सूट, पैंट सबसे ज्यादा पसंद किए जा रहे हैं। हालांकि ये दौर वो था रेमंड के कपड़े अमीरों की आलमारी में ही मौजूद होते थे। कंपनी ने 11.4 माइक्रोन से एक ऐसा फेब्रिक तैयार किया था जो इंसान के बाल से भी पतला था। कंपनी समझ गई कि अगर बाजार में पकड़ बढ़ाना है तो आम लोगों तक पहुंचना होगा। कंपनी ने आम के लिए शर्ट, पैंट, सूटिंग फैब्रिक तैयार करना शुरू कर दिया। इस कदम ने रेमंड को आम लोगों के बीच पॉपुलर बना दिया। शहरों में रेमंड्स के शोरूम ताबड़तोड़ खुलने लगे।विजयपत सिंघानिया और बेटे का विवादसाल 1980 में कैलाशपत सिंघानिया के बेटे विजयपत सिंघानिया (vijaypat singhania) के हाथों में कंपनी की कमान आ गई। उसके आने के बाद रेमंड्स के ग्रोथ की रफ्तार तेजी से भागने लगी। रेमंड्स के शोरूम छोटे-छोटे शहरों में खुलने लगे। उन्होंने फैब्रिक के अलावा कंपनी का विस्तार दूसरे सेक्टर में करना शुरू कर दिया। साल1986 में सिंघानिया ने रेमंड का प्रीमियम ब्रांड पार्क एवेन्यु (Park Avenue) को लॉन्च किया। साल 1990 में भारत के बाहर उन्होंने ओमान में रेमंड का पहला शोरूम खोला। कपड़ों के अलावा कंपनी ने टेक्सटाइल, इंजीनियरिंग और एविएशन के सेक्टर में अपने पैर फैलाए।​बाप-बेटे की लड़ाई की खूब हुई चर्चा​विजयपत सिंघानिया और उनके बेटे गौतम सिंघानिया के बीच विवाद ने बदसूरत रंग ले लिया। साल 2015 में विजयपत सिंघानिया ने अपनी संपत्ति बेटे गौतम को सौंप दी। इसके बाद बेटे ने उन्हें कारोबार से, घर से बेदखल कर दिया। कभी वह 12 हजार करोड़ की कंपनी रेमंड के मालिक पाई-पाई को मोहताज हो गए। बेटे गौतम ने उन्हें अपने नाम के आगे चेयरमैन-एमेरिटस रेमंड लिखने से रोक दिया। विवाद यहीं नहीं थमा। बेटे ने पिता को मालाबार हिल स्थित 37 मंजिला घऱ जेके हाउस से भी बाहर कर दिया। कभी करोड़ों कंपनी के मालिक विजयपत सिंघानिया को किराए के घर में रहने के लिए मजबूर होना पड़ा। विवाद इतना बढ़ा कि एक पिता अपने बेटे के खिलाफ कोर्ट पहुंच गया।​घर और दौलत से बेदखल​विजयपत सिंघानिया और उनके बेटे गौतम सिंघानिया के बीच विवाद ने बदसूरत रंग ले लिया। साल 2015 में विजयपत सिंघानिया ने अपनी संपत्ति बेटे गौतम को सौंप दी। इसके बाद बेटे ने उन्हें कारोबार से, घर से बेदखल कर दिया। कभी वह 12 हजार करोड़ की कंपनी रेमंड के मालिक पाई-पाई को मोहताज हो गए। बेटे गौतम ने उन्हें अपने नाम के आगे चेयरमैन-एमेरिटस रेमंड लिखने से रोक दिया। विवाद यहीं नहीं थमा। बेटे ने पिता को मालाबार हिल स्थित 37 मंजिला घऱ जेके हाउस से भी बाहर कर दिया। कभी करोड़ों कंपनी के मालिक विजयपत सिंघानिया को किराए के घर में रहने के लिए मजबूर होना पड़ा। विवाद इतना बढ़ा कि एक पिता अपने बेटे के खिलाफ कोर्ट पहुंच गया।